विरासत में मिले जज्बे को निखारतीं सोफिया

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अरुण नैथान
कभी-कभी नकारात्मक परिदृश्य में ऐसी सकारात्मकता उभर कर आती है कि देश-दुनिया चौंकती है। पहलगाम हमले और उसमें शामिल आतंकियों को सबक सिखाने के लिये किए ऑपरेशन सिंदूर के बाद एक ऐसा ही नगीना चमका जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा। प्रतीकों को बेहतर ढंग से इस्तेमाल करके जनमानस को चौंकाने वाली मोदी सरकार ने इस बार भी ऐसा किया। उसने जहां पहलगाम में मारे गए पर्यटकों की विधवाओं के हक में हमले को ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया, वहीं मीडिया को जानकारी देने के लिये विदेश सचिव के साथ सेना की दो महिला अधिकारियों को जिम्मेदारी दी। ये योग्य व गुणी सैन्य अधिकारी थीं कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह। लेकिन ज्यादा ध्यान खींचा सोफिया ने जिसकी कई पीढ़ियां सेना में देश की सेवा कर राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देती रही हैं। चौंकाया इस लिए भी क्योंकि मुस्लिम पृष्ठभूमि से कम ही महिलाएं सेना में आती हैं। सोफिया ने विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ हिंदी में हमले का ब्योरा देकर भी लोगों का ध्यान खींचा।
दरअसल, सिग्नल कोर की कर्नल सोफिया कुरैशी की पारिवारिक पृष्ठभूमि ने भी उसे सेना में जाने के लिये प्रेरित किया। वे संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भी काम कर चुकी हैं। सोफिया बताती हैं कि एक फौजी के परिवार में जन्म लेने के कारण सेना को लेकर उसके मन में हमेशा एक खास सम्मोहन था। वह पिता के सेना में होने के कारण सैन्य परिवेश से वाकिफ रही हैं। वह बताती हैं, ‘मेरी मां की भी दिली इच्छा थी कि मैं और मेरी जुड़वा बहन सेना में शामिल हों। मेरा संकल्प था सेना में जाने का, मैंने आवेदन किया और मैं सेना के लिए चुन ली गई।’
उल्लेखनीय है कि सोफिया कुरैशी गुजरात की रहने वाली हैं। उनका जन्म वर्ष 1981 में वडोदरा में हुआ। सोफिया के जन्म के कुछ मिनट बाद ही उनकी छोटी बहन सानिया का जन्म हुआ। सानिया वर्ष 2017 में मिस इंडिया अर्थ रह चुकी हैं। सोफिया ने बायोकेमिस्ट्री में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर वर्ष 1999 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से प्रशिक्षण हासिल किया। जिसके बाद लेफ्टिनेंट के रूप में उन्हें सेना में कमीशन मिला। उस समय उनकी उम्र सत्रह साल थी
सोफिया कहती हैं कि मेरे दादा भी सेना में थे। वे कहा करते थे कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह मुश्किल वक्त में देशहित में उठ खड़े हों और राष्ट्र रक्षा को तत्पर रहे। सोफिया के पिता कुछ समय तक सेना में धार्मिक शिक्षक रहे हैं। वे अपनी बेटी की उपलब्धियों पर फूले नहीं समाते हैं। देश के लिये उनके योगदान पर वे गर्व करते हैं। कर्नल सोफिया की मां हलीमा कुरैशी ने घटनाक्रम के बाद कहा कि बेटी ने बहनों और माताओं के सिंदूर का बदला ले लिया है। सोफिया बचपन से सेना में जिम्मेदारी निभाना चाहती थी।
वहीं सोफिया के पति भी मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री में सैन्य अधिकारी हैं। सोफिया कहती हैं कि पारिवारिक विरासत व सम्मानजक पेशे के साथ राष्ट्रीय उत्तरदायित्व और बढ़ जाते हैं। सोफिया याद करती हैं कि वह जब सैन्य अकादमी के लिये चुनी गई तो देश विषम चुनौतियों का सामना कर रहा था। यह कारगिल युद्ध का समय था।
उल्लेखनीय है कि सोफिया ने वर्ष 2016 में बहुराष्ट्रीय क्षेत्र प्रशिक्षण अभ्यास में भारतीय सेना के प्रशिक्षण दल का नेतृत्व भी किया था। प्रशिक्षण अभ्यास पूणे शहर में हुआ था। बताते हैं कि यह भारत में आयोजित सबसे बड़ा ग्राउंड फोर्सेज अभ्यास था, जिसमें आसियान प्लस देश शामिल थे। तब चालीस सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व कर्नल सोफिया ने किया था। उन्हें इतने बड़े बहुराष्ट्रीय अभ्यास में भारतीय सेना के प्रशिक्षण दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला सैन्य अधिकारी होने का गौरव मिला था।
दरअसल, सोफिया के सैन्य कैरियर में कई जगमगाते सितारे जड़े हुए हैं। वर्ष 2001-2002 में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वह पंजाब सीमा पर तैनात थी। उसे उल्लेखनीय सेवा के लिये जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ से प्रशस्ति पत्र मिला। वर्ष 2006 में कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में सैन्य शिक्षक के तौर पर उन्होंने कार्य किया। वहां छह साल तक काम किया, जहां उनकी भूमिका शांति अभियान में ट्रेनिंग संबंधित योगदान प्रदान करने की थी।
वहीं दूसरी ओर वह सिग्नल रेजिमेंट के आतंकविरोध मिशन में भी शामिल रही हैं। उन्हें सिग्नल रेजिमेंट में रहते हुए सैन्य संवाद में दक्ष माना जाता है। उन्होंने उत्तर-पूर्व भारत में आया विनाशकारी बाढ़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। यही वजह है कि पूर्वोत्तर में आपदा राहत के दौरान कम्युनिकेशन के जरिये असाधारण काम करने के कारण सिग्नल ऑफिसर-इन-चीफ से प्रशस्ति पत्र मिला था।
निस्संदेह, राष्ट्रसेवा व सैन्य दायित्वों में सोफिया के योगदान का विशिष्ट महत्व रहा है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में उनकी सेवाओं का विशेष रूप से उल्लेख किया। दरअसल, सेना में स्थायी कमीशन के लिये सुप्रीम कोर्ट में 11 महिला सैन्य अधिकारियों ने एक याचिका दायर की थी कि सेना में लैंगिक समानता को प्राथमिकता दी जाए। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2020 में दिए गए अपने फैसले में सोफिया की उपलब्धियों का विशेष रूप से उल्लेख किया था। निस्संदेह, ऑपरेशन सिंदूर को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने एक सैन्य प्रतिभा से पूरे देश को अवगत करा दिया।

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