mahesh khare
महेश खरे की तस्वीर
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महेश खरे


विकास में प्रवाह होता है और प्रवाह से परिवेश बदलता है..इंसान भी बदलता है और इंसानियत के मायने भी…शहर भी, गांव भी…आचार भी, व्यवहार भी। बदलेंगे नहीं तो जहां थे वहीं बने रहेंगे। जीवन है तो हलचल है। वरना तो सब नश्वर है। विकास अनिवार्य प्रक्रिया है। सतत है। तभी तो गांव बदल रहे हैं। शहर बदल रहे हैं। रेल पटरियां बिछेंगी तो बस्तियों को रास्ता देना ही होगा। मतलब कुछ नया बसाया जाता है तो कुछ उजड़ता जरूर है। विकास के साथ सभी को चलना है। हमें भी और आपको भी। अमीर को भी और गरीब को भी।
सोशल मीडिया में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का एक वीडियो खूब देखा जा रहा है। वे बता रहे हैं कि हाईवे के लिए उन्होंने कैसे दिल पर पत्थर रखकर अपने श्वसुर का मकान तुड़वा दिया था। मुस्कुराते मुस्कुराते उन्होंने यह भी बताया कि अपना घर भी सौंदर्यीकरण के आड़े आ रहा था…तो वह भी टूटने दिया। सबके लिए…समाज के लिए स्व को कुर्बान होना ही पड़ता है।

ध्यान केवल इतना रखना चाहिए कि उजड़ने वाले कहीं बसा भी दिए जाएं। जो बस नहीं पाएं उन्हें पर्याप्त ही नहीं मूल्य से अधिक मुआवजा मिल जाए। विरासत ढ़हने…उजड़ने के दर्द की क्या कीमत लगाई जा सकती है? लेकिन, जितना संभव हो उतना अधिक से अधिक मिलना ही चाहिए। दुर्भाग्यवश कभी कभी ऐसा नहीं हो पाता…अथवा दिया जाता है तो उम्मीद से बहुत कम। नतीजतन रोष उपजता है…विवश आंखें नम हो जाती हैं। सक्षम तो अपने धन बल से बच या सह जाता है। पर, अक्षम क्या करें? भेद हो या भाव साफ साफ दिखाई देता है।
अयोध्या में भगवान राम 500 साल की प्रतीक्षा के बाद बिराज पाए। भगवान अमीर और गरीब में भेद नहीं करते। यह इंसान के ही स्वभाव में है। पर संयोग यह रहा कि अयोध्या के सौंदर्यीकरण में उजड़ने वाले ज्यादातर गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार थे। सौंदर्यीकरण के लिए ऐसा क्यों होता है? धर्म और आस्था की नगरी अयोध्या में ऐसा हुआ। मुआवजा भी दिया गया। यह भी सच है पीड़ित मुआवजे से कभी संतुष्ट नहीं हो पाते। हमने स्वयं स्थल मुआयना तो नहीं किया… जो मीडिया में छप रहा है… अखिलेश यादव आरोप लगा रहे हैं…उसने आक्रोश उपजाया। इसका असर लोकसभा चुनाव में भी दिखा। चुनाव में वोटर ने अपना गुस्सा उतारा तो महंगाई ने चुनाव में हुए भारी-भरकम खर्च की बढ़-चढ़कर गवाही दी। मई के आंकड़े आ गए। जून, जुलाई के भी आएंगे। अर्थशास्त्री बताते हैं कि अभी तो यह झांकी है…असली तस्वीर बाकी है। यानी आने वाले महीनों में महंगाई और अधिक गर्मी दिखाएगी… होई है सोई जो राम रचि राखा…को करि तर्क बढ़ावहिं शाखा। लोकतंत्र में चुनाव अपरिहार्य हैं और उसका बोझ जनता पर पड़ना स्वाभाविक है… लोकतंत्र की असली खूबसूरती शायद यही है।

पत्थरों से इंसान का बड़ा लगाव रहा है। परंपरा का निर्वाह फिल्मों ने भी किया… खूब निभाया। पत्थर के सनम की थीम पर फिल्में भी बनीं और गीत भी रचे गए। कहते हैं दीवारों की नींव में भी पत्थर मजबूती की गारंटी होते हैं। बिहार के दशरथ माँझी पत्नी प्रेम में पहाड़ काट कर ‘माउंटेन मैन’ कहलाए। दशरथ ना पहाड़ काटते और ना उनका यह नामकरण होता। सच ही कहा है इंसान ठान ले तो क्या नहीं कर सकता। पत्थर, प्रेम और चोट का गहरा नाता है। दिल चोट खाकर पथरा जाए तो चट्टान से भी मजबूत हो जाता है। दशरथ की पत्नी फाल्गुनी के इलाज में पहाड़ बाधक बना और वह असमय चल बसी। पत्नी की मौत का बदला उन्होंने पहाड़ से लिया। बिहार में गया के करीब गहलौर गांव के इस गरीब लेकिन जुनूनी मजदूर ने केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर अकेले ही 360 फुट लंबे 30 फुट चौड़े और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट कर एक सड़क बना डाली। लोग दशरथ को पागल कहते रहे लेकिन वे छैनी से पहाड़ का सीना चीरते रहे। कहते हैं 22 साल लगे लेकिन दशरथ रास्ता बनाकर ही माने और माउंटेन मैन के नाम से इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। कवि और शायरों की कल्पनाओं में भी पत्थरों का अपना खास महत्व है। दुष्यंत कुमार अपनी गजल के नामचीन शेर में पत्थर का महत्व बता गए। ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता…एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।’

पत्थर में भगवान और पत्थर दिल इंसान! 1

चलते-चलते बताते चलें कि संसद भवन में स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियां शिफ्ट करने के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच ‘संग्राम’ चल रहा है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने जानबूझकर मूर्तियों को किनारे पर शिफ्ट कर दिया है। ताकि, विपक्षी सांसद समय-समय पर मूर्तियों के सामने एकजुट होकर विरोध-प्रदर्शन ना कर सकें। जैसी भूमिका वैसी सुविधा की दरकार होती है। हालांकि, इस पर पूर्व लोकसभा स्पीकर ओम बिरला का कहना है कि मूर्तियों को हटाया नहीं गया। संविधान भवन के सामने ‘प्रेरणा स्थल’ पर शिफ्ट किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक ही जगह पर सभी प्रतिमाएं होने से लोगों को देश की महान शख्सियतों के बारे में जानने में आसानी होगी। लोग अपने ऐतिहासिक नायकों की गाथाओं से एक ही स्थान पर अवगत हो सकेंगे। पहले अलग अलग होने के कारण सभी प्रतिमाओं को विजिटर्स देख भी नहीं पाते थे।

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