डॉ. शशांक द्विवेदी
पिछले दिनों चीन के नए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम डीपसीक आर-1 ने आते ही अमेरिका सहित पूरी दुनिया में हड़कंप मचा दिया। डीपसीक ने अमेरिका के एआई वर्चस्व को तोड़ते हुए एनवीडिया सहित कई अमेरिकी टेक कंपनियों के भविष्य पर भी सवाल खड़े कर दिए। चीन के एक छोटे से स्टार्टअप ने काफी कम खर्च में इतना शक्तिशाली एआई मॉडल बनाया है, जिसके बारे में दुनियाभर के एआई एक्सपर्ट सोच ही नहीं सकते थे कि चीन भी ऐसा कर सकता है। अब इस एआई ने पूरी दुनिया के टेक महारथियों को हिलाकर रख दिया है।
चाइनीज़ स्टार्टअप कंपनी ने एक एआई चैट मॉडल, डीपसीक आर -1 पेश किया। इस चाइनीज़ एआई मॉडल ने एआई एफिसिएंसी, लागत में कमी और स्केलेबिलिटी में शानदार सफलता प्राप्त की है। चीनी कंपनी डीपसीक ने इन ख़र्चों में 94 प्रतिशत की कटौती की और सिर्फ 6 मिलियन डॉलर के ट्रेनिंग खर्च के साथ एक पॉवरफुल एआई मॉडल बना लिया। एआई मॉडल को बनाने के लिए खर्च को 94 प्रतिशत तक कम करना पूरी दुनिया के लिए हैरान करने वाली बात है। डीपसीक ने इसके लिए कई क्रांतिकारी तकनीकों का उपयोग किया है। उदाहरण के लिए, ओपन एआई 32-बिट फ्लोटिंग प्वाइंट्स का उपयोग करता है, जिसमें एक संख्या को स्टोर करने के लिए 4 बाइट्स मेमोरी की आवश्यकता होती है। डीपसीक एआई मॉडल 8-बिट फ्लोटिंग प्वाइंट्स का उपयोग करता है, जिससे इसकी मेमोरी की जरूरतें कम हो जाती हैं। इसे सिर्फ 1 बाइट मेमोरी की आवश्यकता होती है।
दुनिया की शीर्ष कंपनियां आमतौर पर अपने चैटबॉट को सुपरकंप्यूटर से प्रशिक्षित करती हैं, जिसमें 16,000 या उससे ज़्यादा चिप्स का इस्तेमाल होता है। डीपसीक के इंजीनियरों ने कहा कि उन्हें सिर्फ़ 2,000 एनवीडिया चिप्स की ज़रूरत थी। दुनियाभर के ज्यादातर एआई मॉडल्स एक बार में एक ही शब्द को पढ़ते हैं और प्रोसेस करते हैं, लेकिन डीपसीक एक बार में पूरे वाक्य को पढ़ सकता है और प्रोसेस कर सकता है, जिससे प्रोसेसिंग टाइम भी कम हो जाता है। चैट जीपीटी-4 को एक जवाब देने में दो सेकंड लगते हैं, जबकि डीपसीक के लिए दावा किया गया है कि यह 90 प्रतिशत सटीकता के साथ एक सेकंड में जवाब दे सकता है।
दरअसल, एआई मॉडल ट्रेनिंग साइकिल के दौरान अरबों शब्दों को प्रोसेस करते हैं। ऐसे में प्रोसेसिंग टाइम को कम करना, इस एआई कंपनी के लिए बड़ी सफलता है। ओपन एआई का जीपीटी-4 हर कैल्कुलेशन के दौरान 1.8 ट्रिलियन पैरामीटर्स को एक्टिव रखता है। वहीं, डीपसीक एक एडवांस एल्गोरिथ्म का उपयोग करके सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही स्पेसिफिक न्यूरल पाथवे को एक्टिव करता है। इससे एक समय में सिर्फ 37 बिलियन सक्रिय पैरामीटर्स होते हैं। इससे हमें यह समझ में आता है कि ओपन एआई की तुलना में डीपसीक के एआई मॉडल्स में किसी क्वेरी के प्रति कैल्कुलेशंस की संख्या काफी कम हो जाती है। यह मॉडल इतनी अच्छी तरह से काम करता है कि टेस्ला के पूर्व एआई निदेशक आंद्रेज करपैथी ने कहा कि डीपसीक ने कम बजट में एक एआई मॉडल को प्रशिक्षण देना बहुत आसान बना दिया है।
वर्ष 2022 के अंत में जब ओपन एआई ने एआई बूम की शुरुआत की, तब से प्रचलित धारणा यह थी कि विशेष एआई चिप्स में अरबों डॉलर का निवेश किए बिना सबसे शक्तिशाली एआई सिस्टम नहीं बनाए जा सकते। इसका मतलब यह होगा कि केवल सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियां, जैसे कि माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और मेटा, जो सभी संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित हैं, ही अग्रणी तकनीकों का निर्माण कर सकती हैं। डीपसीक के आने के बाद अब तस्वीर बदल गई है, ये लगने लगा है कि एआई मॉडल को कम पैसे में भी बना सकते हैं। डीपसीक विशेषज्ञों के अनुसार उन्हें अपने नए सिस्टम को तैयार और ट्रेंड करने के लिए केवल 6 मिलियन डॉलर की कच्ची कंप्यूटिंग शक्ति की आवश्यकता थी। यह मेटा द्वारा अपनी नवीनतम एआई तकनीक बनाने में खर्च की गई राशि से करीब 10 गुना कम था।
दरअसल, यह शानदार उपलब्धि सिर्फ एआई रिसर्च और व्यवसायों के लिए ही नहीं, बल्कि सैन्य रणनीति, वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा, और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी भारी महत्व रखती है। नि:संदेह, एआई टेक्नोलॉजी अब युद्ध की रणनीतियों को भी बदल रही है। चीन के पास पहले से ही एक एडवांस साइबर युद्ध सिस्टम है। एआई की मदद से चीन सोशल मीडिया पर असली जैसी दिखने वाली झूठी कहानियां तेजी से फैला सकता है, ताकि लोगों की राय, मानसिकता और कानूनी युद्ध को प्रभावित किया जा सके। इसके कारण भारत की एकता पर भी खतरा हो सकता है। इसके अलावा चीन अपनी डीपसीक वाली एआई टेक्नोलॉजी की मदद से हैकिंग टूल्स भारत के रक्षा ढांचे, परमाणु सुविधाओं और फाइनेंशियल सिस्टम को भी निशाना बना सकता है। भारत को अपने एआई इकोसिस्टम को जल्द से जल्द मजबूत करने की जरूरत है। भारत के लिए सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में इन्वेस्ट करना, एआई द्वारा संचालित रक्षा तकनीक को प्राथमिकता देना काफी महत्वपूर्ण है।