भोपाल से मौलाना मदनी का बयान और देश में बढ़ता सियासी विवाद
जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान बड़ा बयान देते हुए कहा कि आज सड़क पर चलते हुए मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं और उन्हें कदम-कदम पर नफरतों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी देश में लॉ एंड ऑर्डर और क्राइम-फ्री समाज इंसाफ के बिना संभव नहीं है।
- भोपाल से मौलाना मदनी का बयान और देश में बढ़ता सियासी विवाद
- Supreme court: राजनीतिक दल और धार्मिक नेता युवाओं को कर रहे गुमराह?
- कोर्ट ने ही कई बेगुनाहों को आतंक के आरोपों से किया बरी
- Supreme court: वक्फ कानून और सुप्रीम कोर्ट की अहम रोक
- ट्रिपल तलाक और मुस्लिम महिलाओं को कानूनी अधिकार
- लाल किले के धमाके पर महबूबा मुफ्ती का विवादित बयान
- Supreme court: उमर अब्दुल्ला का बुलडोजर एक्शन पर बयान
- वोट बैंक की राजनीति और मुख्तार अंसारी का उदाहरण
- Supreme court: देश के मतदाताओं ने कई बार ऐसे प्रयासों को किया खारिज
मौलाना मदनी ने अपने बयान में सुप्रीम कोर्ट पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में खासकर बाबरी मस्जिद और ट्रिपल तलाक जैसे मामलों में आए फैसलों के बाद यह सोच बन गई है कि कोर्ट सरकारी दबाव में काम कर रहे हैं। इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
Supreme court: राजनीतिक दल और धार्मिक नेता युवाओं को कर रहे गुमराह?
मौलाना मदनी के बयान के बाद यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या राजनीतिक दल और कुछ धार्मिक नेता मुस्लिम युवाओं को गुमराह कर रहे हैं। आरोप लग रहा है कि मुसलमानों में पैठ मजबूत करने और खुद को उनका सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की होड़ में युवाओं को भ्रमित किया जा रहा है।
इसी क्रम में दिल्ली के लाल किले के पास विस्फोट की साजिश का मामला भी चर्चा में है। जांच एजेंसियों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े डॉक्टरों के संपर्क में रहे संदिग्ध आतंकी मॉड्यूल ने 6 दिसंबर को एनसीआर में छह स्थानों पर विस्फोटों की योजना बनाई थी। यह वही तारीख है जब 1992 में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी।
गिरफ्तार संदिग्ध आतंकियों ने पूछताछ में बताया था कि यह तारीख जानबूझकर चुनी गई थी क्योंकि वे बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला लेना चाहते थे। ऐसे में मौलाना मदनी का बयान उन युवाओं को प्रेरित करने और गुमराह करने वाला माना जा रहा है जो पहले से ही कट्टर सोच के प्रभाव में हैं।
कोर्ट ने ही कई बेगुनाहों को आतंक के आरोपों से किया बरी

सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाने वाले मौलाना मदनी यह भी भूल जाते हैं कि अदालतों ने ही कई मामलों में निर्दोष लोगों को आतंक के आरोपों से बरी किया है।
वर्ष 2006 में मुंबई बम धमाकों के मामले में 12 लोगों को मकोका कोर्ट ने दोषी ठहराया था, लेकिन 18 साल बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस द्वारा पेश किए गए 44,500 पन्नों के दस्तावेजों में से एक भी दस्तावेज दोष सिद्ध नहीं कर सका।
इसी तरह गुजरात में वर्ष 2001 में 127 मुस्लिम नागरिकों को प्रतिबंधित संगठन से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें 19 साल बाद अदालत ने बरी कर दिया। ऐसे कई और उदाहरण हैं जहां अदालतों ने जांच एजेंसियों की कार्रवाई को अपर्याप्त मानते हुए आरोपियों को रिहा किया।
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Supreme court: वक्फ कानून और सुप्रीम कोर्ट की अहम रोक
मुस्लिम हितों की बात करने वाले मौलाना यह भी भूल गए कि यही सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के वक्फ बोर्ड कानून पर रोक लगाने वाला संस्थान है।
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई थी।
विशेष रूप से कोर्ट ने—
• कम से कम 5 साल तक इस्लाम का अनुयायी होने की शर्त पर रोक लगाई
• विवादित संपत्तियों को तुरंत वक्फ मानने के फैसले पर भी रोक लगाई
यह फैसला याचिकाकर्ताओं के हितों की रक्षा और संतुलन बनाए रखने के लिए अंतरिम आदेश के रूप में दिया गया।
ट्रिपल तलाक और मुस्लिम महिलाओं को कानूनी अधिकार
मौलाना मदनी और अन्य धार्मिक नेता यह भी भूल जाते हैं कि देश की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को मनमाने तलाक से कानूनी सुरक्षा सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही मिली।
मनमाने तलाक की शिकार महिलाओं को उनका हक दिलाने की पहल किसी भी मौलवी या मौलाना ने नहीं की, बल्कि यह अधिकार अदालत के फैसलों से संभव हुआ।
लाल किले के धमाके पर महबूबा मुफ्ती का विवादित बयान
दिल्ली के लाल किले के पास हुए ब्लास्ट को लेकर पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने विवादित बयान दिया। उन्होंने कहा कि
“जम्मू-कश्मीर का गुस्सा अब लाल किले पर दिख रहा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि एक व्यक्ति के अपराध की सजा पूरे जम्मू-कश्मीर के लोगों को नहीं दी जा सकती। साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से अपील की कि वे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से बात करें क्योंकि राज्य के बाहर रहने वाले कश्मीरी डरे हुए हैं।
महबूबा का यह बयान कहीं न कहीं दिल्ली की वारदात को जायज ठहराने जैसा प्रयास माना गया।
Supreme court: उमर अब्दुल्ला का बुलडोजर एक्शन पर बयान
इससे पहले जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी दिल्ली में आत्मघाती हमलावर के परिवार के घर को गिराए जाने पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा कि
“ऐसे कदम सिर्फ गुस्सा बढ़ाएंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि अगर आतंकवाद ऐसे कदमों से रुक जाता तो बहुत पहले खत्म हो चुका होता।
सुरक्षा एजेंसियों ने पुलवामा जिले के कोइल गांव में डॉ. उमर उन नबी के दो मंजिला घर को नियंत्रित विस्फोट से ध्वस्त किया था।
इसके अलावा गांदरबल जिले में गैर-स्थानीय मजदूरों पर हुए आतंकी हमले में 7 लोगों की मौत हो गई थी, लेकिन उस पर भी कुछ नेताओं ने अपने पोस्ट में “आतंकी” शब्द तक का इस्तेमाल नहीं किया।
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वोट बैंक की राजनीति और मुख्तार अंसारी का उदाहरण
वोट बैंक की राजनीति का एक और उदाहरण पंजाब सरकार और मुख्तार अंसारी का मामला बताया गया। आरोप है कि तत्कालीन पंजाब सरकार ने मुख्तार अंसारी को यूपी सरकार से बचाने के लिए 55 लाख रुपये से अधिक खर्च किए थे।
मुख्तार को हाई-प्रोफाइल सुविधाएं दी गईं और उसे यूपी भेजने से रोकने की पूरी कोशिश हुई।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट के आदेश के बाद ही मुख्तार अंसारी को यूपी लाया जा सका।
Supreme court: देश के मतदाताओं ने कई बार ऐसे प्रयासों को किया खारिज
चाहे मौलाना मदनी हों या राजनीतिक दल, यह बात बार-बार सामने आ रही है कि वोट बैंक की राजनीति के लिए देश के युवाओं को गुमराह किया गया।
लेकिन देश के मतदाताओं ने ऐसी हरकतों को कई बार नकारा भी है।
धार्मिक भावनाओं, सुरक्षा, आतंकवाद और न्यायपालिका जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बयानबाजी देश में सामाजिक तनाव को और गहरा करने का काम करती है। अब सवाल यही है कि ऐसी बयानबाजी से समाज को क्या संदेश मिल रहा है और इसका असर आने वाले समय में क्या होगा।
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