तटबंध और सड़कों पर ही मनेगा बाढ़ पीड़ितों का दशहरा सहरसा में दुर्गा पूजा को लेकर मायूसी, प्रकृति की मार ने किया बर्बाद

By Team Live Bihar 93 Views
3 Min Read

सहरसा: दुर्गा पूजा के कलश स्थापन से ठीक पांच दिनों पहले बीते 28 सितंबर की देर रात पश्चिमी कोसी तटबंध के टूटने से बाहर स्थित गंडौल, ब्रह्मपुर, मोहनपुर, रही टोल, पुनाछ, जलई, मनोवर, खोरा बर्तन, शंकरथुआ, घोंघेपुर सहित अन्य पंचायतों के दर्जनों गांवों में बाढ़ आ गया। इससे लोगों को गांव छोड़कर तटबंध या सड़कों के किनारे शरण लेना पड़ा। गांवों से अब तक पूरा पानी नहीं निकल सका है।

गांव तक जाने के लिए रास्ते भी अब तक डूबे हुए है। अगर अब बारिश नहीं होती है, तो पानी कम होने में कम से कम 15 दिनों का और समय लगेगा। लिहाजा इस साल दुर्गा पूजा नहीं मना सके। घरों में गृहदेवता के समक्ष कलश की स्थापना नहीं कर सके और दुर्गा सप्तशती का पाठ भी नहीं कर सके। इस बार प्रकृति की मार ने उनके दशहरा को फीका कर दिया।
सहरसा-दरभंगा सीमा पर पुनाछ में सड़क के किनारे दुर्गा पूजा मनाई जा रही है। देवी दुर्गा के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा बनाई गई है।

दर्जनों कलश स्थापित किए गए है। पुजारी सहित गांवों की महिलाएं हर रोज आकर पूजा कर रही है। धार्मिक-आध्यात्मिक माहौल के बीच लोगों के चेहर पर बाढ़ का दर्द दिख रहा है। मोहनपुर अमाही की सावित्री देवी कहती है कि सब कुछ बर्बाद हो गया है। घर में भगवान भी बाढ़ के पानी में डूबे हुए है। हर साल कलश स्थापन कर सुबह-शाम नियम निष्ठा के साथ पूजा करती है। इस बार ऐसा कुछ नहीं कर सकी। पुनाछ की पल्लवी देवी ने कहा कि कलश स्थापन से दो दिन पहले से ही पूजा की तैयारी में व्यस्त हो जाते थे।

इस साल सब खत्म हो गया। शंकरथुआ की वंदना कुमारी ने कहा कि दशहरा में नौ दिनों तक बिना लहसून-प्याज के अरवा खाना खाती थी. इस बार राहत शिविर में जो बन रहा है, खाना पड़ रहा है. मोहनपुर के सत्यनारायण प्रसाद कहते है कि दशहरा में कलश स्थापन कर सुबह-शाम सप्तशती का पाठ करते थे, फलाहारी करते थे। इस बार बाढ़ ने दशहरा के अध्याय को ही मिटा दिया।

Share This Article