बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सभी पार्टियों में टिकट के दावेदारों की हलचल शुरु हो गई है। जिसमें सभी पार्टियों को जीतने वाले पहलवान की खोज है। ऐसे में राजद के चार बागी विधायकों की चर्चा के बीच कई नए दावेदार भी खड़े हो गए है। जिसको संभाल पाना लालू और तेजस्वी के लिए काफी मुश्किल हो सकती है। लेकिन इन तमाम गुफ्तगू के बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी कि असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी के चार बागी विधायकों का इस बार के चुनाव में कैसी हालत है? सीमांचल के साथ-साथ पूरे बिहार की जनता की नजरे इस बार चारों विधायकों पर टीकी हुई है। तो दूसरी तरफ सियासी जानकार मान रहे हैं कि 2025 के चुनाव में राजद के सींबल पर काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
दरअसल बिहार में एमआईएम को उस वक्त तगड़ा झटका लगा था, जब पांच में से चार विधायकों ने राजद में शामिल होने का फैसला लिया था। एमआईएम विधायकों के इस फैसले के बाद बिहार विधानसभा में तत्कालीन समय में राजद सबसे बड़ी पार्टी हो गई थी। जिन विधायकों ने राजद का दामन थामा था उनमें कोचाधामन के मुहम्मद इजहार अस्फी, जोकीहाट के शाहनबाज आलम, बायसी के रुकनुद्दीन अहमद और बहादुरगंज के अंजार नइमी हैं। हालांकि एमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने ओवैसी का साथ नहीं छोड़ा था। मौजूदा वक्त में वो बिहार में एमआईएम के इकलौते विधायक रह गए हैं।
बहरहाल, इस सियासी छटनाक्रम ने बिहार के सियासी आंकड़ों को बदल दिया है। इन चार विधायकों के आरजेडी में शामिल होने के बाद राजद को विधानसभा में कुछ समय के लिए ताकत मिली, लेकिन अब विधानसभा चुनाव को लेकर कई बातें हो रही है। सियासी गलियारों में जो सवाल घूम रहा है वो यह है कि क्या सियासी आंकड़ों के बदलने से राज्य में सियासी समीकरण भी बदल जाएगा?
एमआईएम के चार विधायकों के राजद में शामिल होने से इस बार सीमांचल की राजनीति में भी बदलाव देखने को मिलेगी। पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी की वजह से मुस्लिम बहुल सीमांचल में अल्पसंख्यक वोट में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला था, जिसका फायदा एमआईएम को हुआ भी था। 2024 लोकसभा चुनाव के बाद बिहार की राजनीति में हालात बहुत हद तक बदल गई है। खासकर मुसलमानों में राजद के प्रति नाराजगी खुलकर देखने मिली है। जैसा कि उपचुनाव में देखने को मिला है, जहां चारों सीट पर महागठबंधन उम्मीदवार की हार हुई थी। मुसलमानों का बड़ा समूह अब राजद से अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है। जो तेजस्वी यादव के लिए भारी परेशान करने वाली बात साबित हो सकती है।
वहीं एमआईएम इसी नाराजगी को अपने वोट के रुप में देख रही है। यहां ये बताना जरूरी है कि पिछले चुनावों में एमआईएम ने बिहार में मुस्लिम-बहुल सीमांचल में पहली बार अपनी दमदार मौजूदगी का एहसास करवाया था। सीमांचल के 24 सीटों पर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी। लेकिन इन 24 में से पांच सीटों पर एमआईएम ने कब्जा जमाकर महागठबंधन को खासा झटका दिया था।
बहरहाल, आने वाले दिनों में बिहार की सियासत का क्या रूख़ होगा? अभी कहना मुश्किल होगा. लेकिन इतना जरूर है कि जोड़-तोड़ की इस राजनीति में तेजस्वी यादव के लिए काफी मुश्किलें आने वाली है। खासकर मुसलमानों में जिस तरह की नाराजगी देखी जा रही है। उसका सबसे ज्यादा असर सीमांचल में ही देखने को मिलने वाला है। असदउद्दीन ओवैसी ने खुले मंच से बागी विधायकों को गद्दार तक कह दिया। साथ ही राजद पर मुसलमानों की सियासत को कमजोर करने का भी इल्जाम लगाया है। लेहाजा कहा जा सकता है कि एमआईएम के चारों बागी विधायकों को इस बार चुनाव में जीत दिलाना राजद के लिए कड़े चना चबाना जैसे होगा।
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