तुर्की को सबक सिखाता देश

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अशोक भाटिया (वरिष्ठ लेखक और समीक्षक )
हम तो डूबे सनम तुम्हे भी ले डूबेंगे कहावत पूरी तरह से पाकिस्तान व उसे मदद करने वाले दोस्तों पर लागू हो रही है । भारत द्वारा किए जा रहे ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की तो हालत ख़राब हुई ही हुई अब उसकी मदद करने वाले देशों की भी हालत ख़राब हो रही है । ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन और तुर्की ने किस तरह पाकिस्तान का साथ दिया, इसे पूरी दुनिया ने देख लिया है। तुर्की और चीन निर्मित ड्रोनों का भरपूर इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए किया लेकिन भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने उन सभी ड्रोनों और मिसाइलों की हवा निकाल दी। अभी भी पाकिस्तान द्वारा दागी गईं चीनी और तुर्की के मिसाइलों और ड्रोनों के अवशेष भारत में मौजूद हैं।
हालांकि, भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो गया है लेकिन चीन और तुर्की के अलावा एक और देश अजरबैजान का चेहरा बेनकाब हो गया है, जिसने भाईजान बनकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए तुर्की के 350 से ज्यादा ड्रोन का इस्तेमाल किया। सवाल यह उठता है कि क्या तुर्की भी पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत से लड़ाई लड़ रहा था? तुर्की के सैन्यकर्मी भारत के खिलाफ ड्रोन हमले कराने के लिए पाकिस्तान में मौजूद रहे यानी ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत पर ड्रोन हमले कराने में तुर्की के सलाहकारों ने पाकिस्तानी सेना की मदद की। सोनगार ड्रोन्स हथियार ले जाने में सक्षम यूएवी यानी मानव रहित हवाई वाहन हैं जिनके पास टारगेट को पहचानने और उसे नष्ट करने की विशेष क्षमता होती है। ये तुर्की का पहला राष्ट्रीय हथियारबंद ड्रोन सिस्टम है जिसे क्रॉस बॉर्डर सैन्य अभियानों में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी रेंज 5 से 10 किलोमीटर होती है। इसमें कैमरे और ऑटोमैटिक मशीनगन लगी होती है। इसे 2020 में पहली बार तुर्की की सशस्त्र सेना में शामिल किया गया था।
पाकिस्तान की तरफ से कामिकाजे ड्रोन भी भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए गए। ऐसे ही एक ड्रोन का मलबा नौशेरा में मिला। इस ड्रोन से रिहायशी इलाकों को निशाना बनाया गया था। लेकिन भारत के आकाश जैसे मेड इन इंडिया प्लैटफॉर्म के आगे इनकी एक न चली। सूत्रों से आई इस खबर को इस बात से पुख्ता किया जा सकता है कि तुर्की के दो ड्रोन ऑपरेटरों का पाकिस्तान में भारत के हमले में मारे जाने का दावा है, जिसे पाकिस्तान छिपा ले गया।
बड़ी बात ये है कि इन देशों की अर्थव्यवस्था में भारत का बड़ा योगदान है। चीन जहां भारत में अपने सस्ते माल बेचकर बड़ी कमाई करता है, वहीं तुर्की और अजरबैजान भारतीय पर्यटकों से गाढ़ी कमाई करता है। यानी ये देश भारत से कमाई राशि भारत के ही खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में भारतीयों ने अब इनका विरोध करना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर भी तुर्की और अजरबैजान के बहिष्कार का आह्वान किया जा रहा है। व्यापारियों के संगठन, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी ) ने भी भारतीय व्यापारियों और नागरिकों से मौजूदा शत्रुता के बीच पाकिस्तान का खुला समर्थन करने के जवाब में तुर्की और अजरबैजान की यात्रा का पूरी तरह से बहिष्कार करने का आह्वान किया है। बता दें कि सीएआईटी लंबे समय से चीनी उत्पादों के बहिष्कार के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहा है, जिसका काफी प्रभाव पड़ा है, और अब इसका इरादा इस आंदोलन को तुर्की और अजरबैजान तक बढ़ाने का है। संगठन इस अभियान को तेज करने के लिए ट्रैवल और टूर ऑपरेटरों और अन्य संबंधित हितधारकों के साथ सहयोग करेगा। सीएआईटी के महासचिव और चांदनी चौक से सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने बुधवार को यह अपील की और इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान के भाईजान तुर्की और अजरबैजान की यात्रा का बहिष्कार करने से इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं, खासकर उनके पर्यटन क्षेत्र पर काफी असर पड़ सकता है।अब तो तुर्की से कारोबार बंद करने और उसके सामानों के बहिष्‍कार की मांग भी देशभर से उठनी शुरू हो गई है।
सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि पाकिस्‍तान ही नहीं, भारत भी तुर्की से हथियारों की खरीद करता है। इसके अलावा दोनों देश केमिकल, इलेक्‍ट्रॉनिक सामान और कपड़ों का भी आयात-निर्यात करते हैं। तुर्की के पर्यटन में भी भारत की हिस्‍सेदारी लगातार बढ़ रही है। साल 2024 में तुर्की जाने वाले पर्यटकों में दूसरी सबसे ज्‍यादा हिस्‍सेदारी भारतीयों की रही है।भारत के व्‍यापार आंकड़े देखें तो पता चलता है कि अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 तक भारत ने तुर्की को 5।2 अरब डॉलर (करीब 45 हजार करोड़ रुपये) का सामान निर्यात किया है। इससे पहले 2023-24 में यह आंकड़ा 6।65 अरब डॉलर का रहा था। हालांकि, निर्यात का यह आंकड़ा भारत के कुल एक्‍सपोर्ट का महज 1।5 फीसदी ही है। आयात की बात करें तो तुर्की से भारत ने अप्रैल, 2024 से फरवरी, 2025 तक 2।84 अरब डॉलर (करीब 24।4 हजार करोड़ रुपये) का सामान आयात किया था, जो भारत के कुल आयात का महज 0।5 फीसदी हिस्‍सा है।
तुर्की सबसे ज्‍यादा खरीदारी कपड़ों, अपैरल, सूती धागे, इंजीनियरिंग सामान, केमिकल और इले‍क्‍ट्रॉनिक सामानों की करता है। सबसे ज्‍यादा डिमांड भारतीय सूती धागे, कपड़े और रेडिमेड कपड़ों की रहती है। इसके अलावा खनिज तेल और ईंधन की भी तुर्की में बड़ी डिमांड है। एल्‍युमीनियम प्रोडक्‍ट, ऑटो कंपोनेंट और इलेक्ट्रिकल मशीनरी का ज्‍यादातर निर्यात भारत ही तुर्की को करता है। एयरक्राफ्ट और उसके पार्ट्स, टेलीकॉम उपकरण, इलेक्ट्रिक मशीनरी और उसके उपकरण, कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन का भी तुर्की खूब आयात करता है। खाने-पीने के सामानों में खनिज तेल, चावल, चायपत्‍ती, कॉफी और मसालों के लिए तुर्की हमारे ऊपर ही निर्भर है। प्‍लास्टिक, रबर और दवाओं का भी तुर्की बड़ा खरीदार है।
भारत का सबसे ज्‍यादा आयात मार्बल का होता है। इसके अलावा कुल आयात में करीब 86 करोड़ रुपये के सेब शामिल होते हैं। भारत सोना, सब्जियां, चूना और सीमेंट के लिए भी तुर्की से कारोबार करता है। 2023-24 में भारत ने 1।81 करोड़ डॉलर (करीब 155 करोड़ रुपये) का खनिज तेल आयात किया था। इसके अलावा केमिकल, मोती, आयरन और स्‍टील की खरीदारी भी हम तुर्की से करते हैं। तुर्की द्वारा पाकिस्तान का खुलेआम समर्थन करने के बाद देशभर में ‘बॉयकॉट तुर्की’ अभियान ने जोर पकड़ लिया है। महाराष्ट्र के पुणे से लेकर राजस्थान के उदयपुर तक व्यापारियों ने तुर्की से आयातित वस्तुओं का बहिष्कार कर तुर्की को आर्थिक मोर्चे पर जवाब देने का ऐलान कर दिया है। एजेंसी के अनुसार, महाराष्ट्र के पुणे में व्यापारियों ने तुर्की से आयात होने वाले सेबों की बिक्री पूरी तरह बंद कर दी है।
साल 2024 में 3 लाख 30 हजार से ज्यादा भारतीय, तुर्की में छुट्टियां मनाने गए थे। जबकि साल 2023 में ये संख्या 2 लाख 74 हजार थी। यानी 1 साल में तुर्की जाने वाले भारतीय सैलानियों की संख्या में करीब 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।- इसी तरह से पिछले साल 2 लाख 43 हजार से ज्यादा भारतीय अजरबैजान घूमने गए थे। जबकि 2023 में ये संख्या करीब 1 लाख 20 हजार थी। यानी एक साल में अजरबैजान जाने वाले सैलानियों की संख्या में करीब 108 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। तुर्की और अजरबैजान जाने वाले भारतीय घूमने फिरने पर लाखों रुपये खर्च करते हैं।- एक डेटा बताता है कि तुर्की और अजरबैजान में भारतीय सैलानी औसतन 1 लाख रुपये प्रति व्यक्ति खर्च तक करते हैं और इस तरह से पिछले साल इन दोनों देशों में भारत के लोगों ने करीब 4 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
सवाल यह भी है कि दो साल पहले भयानक भूकंप आने पर भारत ने जिस देश की मदद की थी, वो आज अपनी वॉरशिप में ड्रोन वाली मदद लेकर पाकिस्तान के पाास क्यों गया। तुर्की में आए भीषण भूकंप के बाद हिंदुस्तान उसे मदद भेजने वाले मुल्कों में सबसे आगे था। फिर तुर्की ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की मदद क्यों की? क्यों उसकी तरफ से पाकिस्तान को अपने खतरनाक ड्रोन दिए गए, जिन्हें हिंदुस्तान ने ठिकाने लगा दिया?

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