पटनाः बिहार में हो रही जातिगत जनगणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर पटना हाई कोर्ट अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाएगा. लेकिन, हाई कोर्ट के फैसले के ठीक पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति गणना की जरूरत पर फिर से बल दिया है. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हर किसी को याचिका दायर करने का अधिकार है. साथ ही कहा कि जाति गणना का विरोध क्यों किया जा रहा समझ से परे है।
नीतीश कुमार ने कहा कि जाति आधारित गणना कराने की मांग बिहार में काफी पहले से चल रही थी.उन्होंने कहा कि साल 2019 में हम लोगों ने बिहार विधान सभा और विधान परिषद में सर्वसम्मति से बिहार में जाति गणना कराने के प्रस्ताव को पारित किया था. उसके बाद बिहार से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी. लेकिन, पीएम मोदी ने जाति गणना कराने से मना कर दिया तो बिहार सरकार ने अपने बलबूते इसे कराने का निर्णय लिया. इस पर सभी दलों की सहमति रही।
उन्होंने कहा कि इससे यह भी पता चलेगा कि कौन किस जाति का है और उसकी आर्थिक स्थिति क्या है. यह सब के हित में किया जा रहा है. पता नहीं कुछ लोग विरोध क्यों कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि मौलिक चीजों की समझ जिन लोगों को नहीं है वही जाति गणना का विरोध कर रहे हैं. सीएम नीतीश ने कहा कि अंग्रेजों के दौर में भी जाति गणना होती थी. लेकिन 1931 के बाद यह बंद हुआ. ऐसे में समाज के विभिन्न वर्गों की संख्या और उनकी आर्थिक स्थिति जानने से ही समाज कल्याण की योजनाएं प्रभावी होंगी. इसलिए यह बिहार में सभी के हित के लिए कराया जा रहा है।
सीएम नीतीश ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि चिंता का मूल का विषय तो यह है कि हर दस साल पर होने की जनगणना वर्ष 2021 में नहीं हुई. देश में जब भी जनगणना होती है तो उसमें अल्पसंख्यक समुदाय में अलग अलग जातियों के लोगों की गिनती होती है. इसी तरह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की अलग अलग गिनती होती है. इसलिए हमने मांग की थी कि इस बार की जनगणना में जाति आधारित गणना हो जिसमें अति पिछड़ा और उच्च वर्ग के लोगों की संख्या का भी पता चले. लेकिन इस बार तो हर दस साल पर होने वाली जनगणना ही नहीं हुई है. वहीं बिहार में हर जगह जाति गणना का समर्थन किया जा रहा है. कुछ लोगों को छोड़ दिया तो हर जगह समर्थन मिल रहा है।