पिघलने लगी रिश्तों पर जमी बर्फ

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महेश खरे
(वरिष्ठ पत्रकार)
भारत-अमेरिकी रिश्तों में आया नया मोड़ सत्ता में बैठे हर व्यक्ति के लिए एक संदेश है। संदेश यह है कि सत्ता का अहंकार ज्यादा नहीं चलता। दुनिया अपने हिसाब से चलती है। हम अपने हिसाब से दुनिया को नहीं हांक सकते। कमजोर झुक सकते हैं लेकिन खुद्दार दवाब में नहीं आते। दांव उल्टा भी पड़ सकता है। हमारी कूटनीतिक कामयाबी यही है कि हम किस तरह बदलती हवा का हिस्सा बन जाएं। फिर कूटनीति में जो दिखाई देता है जरूरी नहीं कि वही सच्चाई हो। कभी-कभी वह भी हो सकता है जो दिखाई नहीं देता अथवा दिखाया नहीं जाता।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत से तीन फेवर चाहते थे। पहला- पाकिस्तान के साथ सीजफायर कराने में ट्रंप की भूमिका को भारत स्वीकार कर ले। दूसरा- रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दे और तीसरा – नोबल शांति पुरस्कार के लिए उनके नाम की सिफारिश कर दे। इसके लिए उन्होंने जो रास्ता चुना वह टैरिफ के दवाब का था। भारत को यह कतई मंजूर नहीं था। भारत ने स्पष्ट शब्दों में बस इतना कहा कि सीजफायर पाकिस्तान के अनुरोध पर किया गया इसमें तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं है। द्विपक्षीय मामलों में किसी तीसरे देश का दखल स्वीकार नहीं करना भारत की नीति है। ट्रंप कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने लगभग तीस बार सीजफायर कराने का दावा दोहराया।
जब ट्रंप ने 25 फीसदी जुर्माने के साथ 50 फीसदी टैरिफ लगाया तो बात बिगड़ गई। ट्रंप की महीनों चली बयानबाजी पर भारत मौन साधे रहा। जहां जरूरी हुआ वहीं सधे शब्दों में जवाब दिया। साथ ही अपने प्रोडक्ट के निर्यात के लिए नए बाजार तलाशता रहा। चीन खुद ट्रंप के टैरिफ से परेशान है। उसे भारत की 140 करोड़ आबादी लुभाती रही है। दोनों देशों के बीच सबसे बड़ी बात सीमा विवाद की है। इस मुद्दे पर बात कितनी आगे बढ़ी है यह अभी तक सामने नहीं आया है। आने वाले समय में इस दिशा में कुछ ठोस फैसले होने की उम्मीद की जा सकती है। चीन के कुछ चुनिंदा सामानों की भारत को भी जरूरत थी। रूस ने दोनों को करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोनों देशों के नेताओं के परस्पर दौरे हुए। भारतीय नेताओं के मन में चीन के साथ पिछले कड़वे अनुभवों की हिचक अवश्य रही। यह असमंजस अभी भी है।
प्रश्न यह भी है कि क्या चीन पाकिस्तान का साथ निभाता रहेगा? एससीओ शिखर ने तीन देशों के नेताओं को करीब आने का अवसर दे ही दिया। रूस तो पहले ही भारत का मित्र देश रहा है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में स्थायी कुछ नहीं होता। चीन के तियानजिन में पुतिन, मोदी और शी जिनपिंग की कैमिस्ट्री ने भारत की ताकत भी दिखाई और बिना कहे अमेरिका को बेचैन भी कर दिया। कूटनीति में कभी- कभी मौन बड़ा काम करता है। तियानजिन से पुतिन, मोदी और जिनपिंग की जो तस्वीरें आईं उन्होंने ट्रंप को कितना परेशान किया यह उनके बयान से समझ में आता है। नरेंद्र मोदी, जिनपिंग और पुतिन की तस्वीर पोस्ट करते हुए ट्रंप ने लिखा- ‘लगता है हमने भारत और रूस को सबसे गहरे, सबसे काले चीन के हाथों खो दिया है। उनका भविष्य एक साथ लंबा और समृद्ध हो!’ यह टिप्पणी सामान्य व्यापारिक विवाद से कहीं ज्यादा गहरी रही। अमेरिका की बदलती सोच और निराशा खुलकर सामने आ गई। वास्तव में अमेरिका को जितनी भारत की जरूरत है भारत को भी अमेरिका की उतनी ही जरूरत है। शायद इसीलिए हमारी इकोनोमी को ‘डेड इकोनोमी’ बताने के बाद भी भारत मौन साधे रहा। संयम बरतता रहा।
भारत पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले पर ट्रंप अपने देश में भी आलोचनाओं से घिरे रहे। एक अमेरिकी अपीलीय अदालत ने इन शुल्कों को अवैध ठहरा दिया। टैरिफ की आलोचना अमेरिकी राजनीतिक हलकों में भी हुई। लेकिन ट्रंप रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत की आलोचना करते हुए अपने फैसले पर डटे रहे। साथ ही ‘फेज-2 और 3’ टैरिफ की धमकी भी देते रहे। उन्होंने कहा कि अगर भारत रूसी तेल खरीदता है, तो उसे बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने ‘द स्कॉट जेनिंग्स रेडियो शो’ पर कहा, ‘चीन हमें टैरिफ से मार रहा है, भारत हमें टैरिफ से मार रहा है… भारत दुनिया में सबसे अधिक टैरिफ वाला देश था, और उन्होंने मुझे अब भारत में कोई टैरिफ न लगाने की पेशकश की है।
पल-पल बदलते ट्रंप के बयानों के मद्देनजर दुनिया में यह कहा जाने लगा कि वे सुबह कुछ बोलते हैं लेकिन शाम को क्या बोलेंगे यह सिर्फ वही जानते हैं। हुआ भी यही। कुछ घंटों के बाद ही ट्रंप के सुर बदले हुए नजर आए। भारत अमेरिकी रिश्तों पर जमी बर्फ फिर पिघलती नजर आयी। ट्रंप ने कहा कि दोनों देशों के बीच ‘विशेष संबंध’ हैं और चिंता की कोई बात नहीं है बस कभी-कभी कुछ ऐसे पल आ जाते हैं…मैं हमेशा मोदी का दोस्त रहूंगा…वह महान प्रधानमंत्री हैं। लेकिन मुझे इस समय उनके द्वारा किए जा रहे काम पसंद नहीं आ रहे हैं। लगा वे भारत के साथ संबंधों को फिर सुधारने के लिए तैयार हैं। पीएम मोदी ने भी एक बार फिर दोस्ती का हाथ बढ़ाने में समय नहीं गंवाया। उन्होंने कहा-‘राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं का मैं सम्मान करता हूं। भारत और अमेरिका के बीच दूरदर्शी और व्यापक साझेदारी है।’
देखना यही होगा कि ट्रंप टैरिफ कट कब तक करते हैं। अमेरिका के साथ हमारे व्यापारिक रिश्तों का खास महत्व है। वह इसलिए क्योंकि चीन से लगभग पांच गुना अधिक अमेरिका को हम निर्यात करते रहे हैं। इसके बावजूद यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हम शांति के पक्षधर हैं और जहां हमारे राष्ट्रीय हित सधेंगे हम उसी दिशा में कदम बढ़ाएंगे। चीन और अमेरिका के साथ रिश्तों में संतुलन भारत किस तरह बनाए रखता है। इस पर भी दुनिया की नजर रहेगी।
अब अंत में सौ टके का सवाल यही है कि ट्रंप अपने रुख पर कब तक कायम रहेंगे? एक बात और कहना जरूरी है कि दोनों देशों के बीच परस्पर जो विश्वास पहले था क्या वह आगे भी बना रह सकेगा? इस प्रश्न के उत्तर में रहीम का एक दोहा याद आ रहा है- ‘रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गांठ परी जाय।’ अर्थात् प्रेम का संबंध धागे के समान नाजुक होता है, जिसे झटके से नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि एक बार टूट जाने पर इसे दोबारा जोड़ना मुश्किल होता है और यदि जोड़ा भी जाए, तो उसमें एक गांठ पड़ जाती है, जो रिश्ते में एक दरार का प्रतीक होती है।

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