
उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल जिले संभल की घटनाओं पर एक फिल्म ‘द संभल फाइल्स’ बननी चाहिए । एक हिंदू शिक्षक की बेटी और पत्नी को अगवा कर बेटी का बलात्कार करने के कारण 1976 में संभल में दंगा भड़का था। फिर 1978 के दंगे में मुस्लिमों के आपसी झगड़े में एक मौलवी की मृत्यु हो गई , पर इसके लिए हिन्दुओं को जिम्मेवार बताकर उनका सामूहिक नरसंहार किया गया था । मुस्लिम डीएम के राज में जलाकर मारे गए थे 180 हिंदू । बनवारी लाल गोयल ने तड़पकर कहा था, गोली मार दो, हाथ ना काटो । अब मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का बुलडोजडर ढूंढ रहा है पद्म पुराण में वर्णित 22 कुएं, 58 तीर्थ और 68 सराय। इससे जिहादियों में हड़कंप का माहौल है। संभल में कथित जामा मस्जिद और पूर्व के प्राचीन हरिहर मंदिर के आसपास अतिक्रमण हटाया जा रहा है, जिसमें 2 कुएं और 2 मंदिर मिल गए हैं । खग्गू सराय के अलावा पद्म पुराण में वर्णित बाकी 68 सरायों की तलाश जारी है ।
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के विधानसभा में दिए बयान के मुताबिक संभल मे 209 हिंदुओं की हत्या की गई । इन दंगों में हिंदुओं की मौत के इस आँकड़े की पुष्टि संभल जिला प्रशासन की इंटरनल रिपोर्ट भी करती है। जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार 29 फरवरी 1976 को मुस्लिमों ने अफवाह उड़ाई कि पेतिया गाँव के अर्धविक्षिप्त राजकुमार सैनी ने मौलवी को मार दिया है, जबकि असलियत ये थी कि मस्जिद कमेटी के झगड़े में एक मुस्लिम ने ही मौलवी को मारा था। संभल जिले की इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने मंजर शफी और अताउल्ला ततारी की अगुवाई में सूरजकुंड और मानस मंदिर को तोड़ दिया था । इसके बाद सरथल चौकी पर मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने किशनलाल का घर जलाने की कोशिश की। हिंदुओं के प्रतिरोध के बाद वे पत्थरबाजी कर भाग खड़े हुए। इसी दौरान सोतीपुरा के हरि सिंह और कोटीपूर्वी मोहल्ले के राकेश वैश्य की हत्या की गई थी ।
इस घटना के करीब दो महीने बाद 24 अप्रैल 1976 को कोटपूर्वी मोहल्ले में कल्लू के घर भयानक विस्फोट हुआ। इलाज के दौरान उसके बेटे सलाम की मौत हो गई। इसकी प्रतिक्रिया में सिर्फ गुस्सा निकालने के लिए ही सरायतरीन के मोहल्ला लाल मस्जिद के पास बुजुर्ग कामता प्रसाद की बिना किसी वजह के चाकू मारकर हत्या कर दी गई। इसके अलावा जयचंद रस्तोगी की गोली मारकर हत्या की गई। एक अन्य हिंदू की भी हत्या की गई थी, जिसके नाम का उल्लेख इस रिपोर्ट में नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि इन मामलों में जब दोषी 20-22 मुस्लिमों को गिरफ्तार किया गया तो संतुलन बनाने के लिए इतने ही ‘निर्दोष’ हिंदुओं को भी प्रशासन ने गिरफ्तार किया था।
वर्ष 1976 के ये दंगे जब हुए थे लगभग उसी समय शफीकुर्रहमान बर्क भी राजनीतिक रूप से उभर रहा था । बाद में 1978 के भीषण दंगे में बर्क की खासी भूमिका थी । 1978 का यह दंगा होली के बाद 29 मार्च से शुरू हुआ था। इस दंगे में करीब 184 लोगों की हत्या की गई थी। 30 दिनों तक कर्फ्यू रहा था। इसी दंगे के दौरान संभल के जाने माने कारोबारी बनवारी लाल गोयल की तड़पा-तड़पाकर हत्या की गई थी। एक हिंदू शिक्षक की बेटी और पत्नी को मंजर शफी ने उठा लिया था। बेटी का रेप करके छोड़ दिया गया जबकि शिक्षक की पत्नी को किसी तरह से बचाया जा सका । इस दंगे को भड़काने के पीछे भी मंजर शफी की बड़ी भूमिका थी। परिवार संभल छोड़कर जा चुका है ।
दंगे भड़कने के बाद बनवारी लाल गोयल ने कई हिंदू दुकानदारों को अपने साले मुरारी लाल की कोठी में छिप जाने को कहा था। मुस्लिम आढ़तियों ने इसकी सूचना दंगाइयों को दी। इसके बाद मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने ट्रैक्टर लगाकर मुरारी लाल की कोठी का गेट तोड़ दिया। यहाँ 24 हिंदुओं की हत्या कर उन्हें गन्ने की खोई और टायर का ढेर लगाकर जला दिया गया । लाशें ना मिलने की वजह से अधिकतर हिंदुओं ने कपड़ों के पुतले बनाकर बृजघाट पर अपनों का अंतिम संस्कर किया था ।
जिला प्रशासन की इंटरनल रिपोर्ट बताती है कि दंगे भड़कने की सूचना मिलने पर बनवारी लाल गोयल प्रभावित इलाके में जाने लगे। उनकी पत्नी और बेटे ने उन्हें रोका। लेकिन वे यह कहते हुए दंगा प्रभावित इलाके में चले गए, सब मेरे अपने ही लोग हैं मुस्लिम मेरी बात नहीं काटेंगे लेकिन बनवारी लाल गोयल को मुस्लिम दंगाइयों ने पकड़ लिया। उनसे कहा कि तुम इन पैरों से पैसे लेने आए हो और उनके पैर काट दिए। फिर कहा कि तुम इन हाथों से पैसे लेने आए हो और हाथ भी काट दिए। इसके बाद गर्दन काट कर उनकी हत्या कर दी गई। इस दौरान मुस्लिम दंगाइयों के सामने बनवारी लाल जी गिड़गिड़ाते रहे कि मुझे काटो मत, गोली मार दो। पर किसी ने उनकी नहीं सुनी। इस घटना को हरद्वारी लाल शर्मा और सुभाष चंद्र रस्तोगी ने अपनी आँखों से देखा था। इस कत्लेआम के दौरान दोनों ने एक ड्रम में छिपकर अपनी जान बचाई थी।
शर्मा और रस्तोगी भी इस कत्लेआम के गवाह थे। इरफान, वाजिद, जाहिद, मंजर, शाहिद, कामिल, अच्छन जैसे नाम आरोपित थे। लेकिन 2010 में यह केस बंद करना पड़ा, क्योंकि गवाह ही हाजिर नहीं हुए। जज ने यह टिप्पणी करते हुए केस बंद किया कि मैं सोच भी नहीं सकता कि इनलोगों (आरोपितों) को फाँसी नहीं हो रही है। गवाहों पर किस तरह का दबाव रहा होगा इसे इस बात से समझा जा सकता है कि बनवारी लाल के बेटे विनीत गोयल के कारोबारी साझेदार रहे प्रदीप अग्रवाल के भाई की वसीम ने गोली मारकर हत्या कर दी। साथ ही धमकी दी कि यदि उसके खिलाफ किसी ने एफआईआर लिखवाई तो उसकी भी हत्या कर दी जाएगी। उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। जिला प्रशासन की इस इंटरनल रिपोर्ट के अनुसार बनवारी लाल के परिवार पर डॉक्टर शफीकुर रहमान बर्क की ओर से भी दबाव डाला गया था। बर्क संभल से समाजवादी पार्टी से सांसद रहे हैं। फिलहाल उनके बेटे जियाउर रहमान बर्क इस सीट से सपा के सांसद हैं।
संभल के इतिहास के जानकार 58 साल के संजय शंखधर के अनुसार इस दंगे से पहले संभल में हिंदुओं की आबादी 35% थी, अब करीब 20 प्रतिशत ही है। उन्होंने कहा, ‘1978 का दंगा संभल का सबसे बड़ा दंगा है। लाला मुरारी लाल की कोठी में दंगे से बचने के लिए कई लोग छिपे थे। इसका पता चलते ही दंगाइयों ने उनकी कोठी पर हमला कर दिया। जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई। इनमें 24 हिंदू थे।’