अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर शनिवार को एक चुनावी रैली के दौरान हुआ जानलेवा हमला हर लिहाज से दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाएगा। गनीमत है कि हमले में ट्रंप को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ और वह सुरक्षित हैं। हालांकि उन पर हुए इस हमले ने पहले से ही दो ध्रुवों में बंटे अमेरिकी जनमत को बुरी तरह आलोड़ित कर दिया है।
अमेरिका में राष्ट्रपतियों पर इस तरह का हमला कोई नई बात नहीं है। वहां ऐसे हमलों का लंबा इतिहास रहा है। चार राष्ट्रपति और एक राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी ऐसे हमलों में जान तक गंवा चुके हैं। पिछले चार-पांच दशकों की बात करें तो रोनाल्ड रीगन, बिल क्लिंटन और जॉर्ज डब्ल्यू बुश जैसे चर्चित राष्ट्रपति हमलों का निशाना बन चुके हैं।
फिर भी ट्रंप पर हुए इस हमले की अतीत की घटनाओं से तुलना नहीं की जा सकती। ट्रंप न सिर्फ अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति हैं बल्कि आगामी चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से इस पद के प्रत्याशी भी हैं। अब तक के तमाम सर्वे उन्हें लोकप्रियता में सबसे आगे बता रहे हैं। यही नहीं, ट्रंप राजनीति और शासन की अपनी विशिष्ट शैली के लिए जाने जाते रहे हैं। अमेरिकी इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई पूर्व राष्ट्रपति चुनाव परिणामों को पलटने के लिए दंगे भड़काने जैसे आरोपों का सामना कर रहा है या चुनाव नतीजों को स्वीकार करने से लगातार इनकार करता रहा है। इसके बावजूद लोकप्रियता में सबसे आगे नजर आ रहा है।
ऐसे में ट्रंप पर हमले की इस घटना की गंभीरता बहुत बढ़ जाती है। इसका अमेरिका के आम लोगों की सोच पर, वहां की राजनीति और चुनावों पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। हालांकि ट्रंप समर्थकों का एक धड़ा इसके लिए उनके राजनीतिक विरोधियों की आक्रामक प्रचार शैली को अभी से जिम्मेदार ठहराने लगा है। देखना होगा कि यह सिलसिला चुनावों में वोटरों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिशों तक सीमित रहता है या राजनीति में और ज्यादा कड़वाहट घोलता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे अमेरिका के घरेलू राजनीतिक माहौल की बात हो या चुनाव परिणामों की, उनका असर अमेरिका तक सीमित नहीं रहता। पूरा विश्व उसके दायरे में आता है। ऐसे में जरूरी है कि जांच एजेंसियां इस घटना के असली कारणों तक जल्द से जल्द पहुंचें। हालांकि हमलावर के मारे जाने की वजह से यह काम थोड़ा और मुश्किल हो गया है। फिर भी उम्मीद है कि जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी और साजिशों के तार खुलेंगे, वैसे-वैसे बहस भी समाज को हिंसक बनाने वाले और गन कल्चर को बढ़ाने वाले कारकों पर केंद्रित होगी। याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र में बुलेट नहीं, बैलट ही सबसे कारगर हथियार होता है।