शम्भूनाथ शुक्ल
(वरिष्ठ पत्रकार)
केरल में स्थानीय निकाय चुनाव में जो परिणाम देखने को मिले, वे अप्रत्याशित नहीं हैं. अभी आठ दिसंबर को मैंने अपने कॉलम में यहीं लिखा था। त्रिवेंद्रम (तिरुअनंतपुरम) नगर निगम में भाजपा ने 101 सीटों में से 50 सीटों पर जीत दर्ज की है. इसकी दो वजहें हैं,एक तो पिछले चुनाव में भाजपा यहां के निगम में एलडीएफ के बाद सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी. दूसरे यहां पर कांग्रेस से लोकसभा सदस्य शशि थरूर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले हैं. शशि थरूर 2024 के लोकसभा चुनाव में लगातार चौथी बार चुनाव जीते थे. वे सोनिया गांधी को तो प्यारे हैं किंतु राहुल गांधी उनको पसंद नहीं करते इसलिए अंदर-खाने वे मोदी कैम्प में चले गये. अब अगर वे स्वयं कांग्रेस छोड़ें तो लोकसभा सदस्यता चली जाएगी. अलबत्ता यदि कांग्रेस उनको निकालती है तो उनकी सांसदी बची रहेगी और वे अपने क्षेत्र में शहीद कहलाएंगे.
भाजपा ने प्रचार में सबसे ज्यादा ताक़त तिरुअनंतपुरम में झोंकी थी. कांग्रेस यहां एकदम ग़ायब थी. लेकिन माकपा के झंडे मुझे अवश्य दिखे थे. यूं भी राजधानी तिरुअनंतपुरम एक एलीट क्लास का शहर है और यह माहौल वहां दिखता भी. देश के सर्वाधिक संपन्न हिंदू मंदिरों में से एक पद्मनाभ स्वामी का मंदिर इस शहर के मध्य में है. यहां खाता-पीता वर्ग है जो भाजपा को किसी न किसी रूप में पसंद करता है. लेकिन, यही वर्ग माकपा का भी वोट बैंक है. एक पढ़े-लिखे उच्च मध्य वर्ग का प्रभावशाली तबका अपने उदारवादी रुझान के कारण माकपा को पसंद करता है. मॉडर्न जीवन शैली अपनाने वाले वर्ग में कम्युनिस्ट मिडल क्लास सोच भी होती है, जो मानसिक रूप से उसे ऊंचे पायदान पर बिठाती है.
लेकिन राजधानी के आसपास के क्षेत्र में कांग्रेस का प्रचार तंत्र सक्रिय नहीं दिखा था. परंतु याद रखना चाहिये कि केरल वह राज्य है, जहां आज भी कांग्रेस की ज़मीन है. भले पिछले दो टर्म से वहां एलडीएफ की राज्य सरकार हो किंतु कांग्रेस का प्रभाव वहां काफ़ी है. याद करिये, जब 2019 में राहुल गांधी उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव हारे थे तब केरल की वायनाड ने उन्हें उबारा था. वहां के लोकसभा सदस्य मोहम्मद इब्राहिम शानवास की 2018 में मृत्यु हो गई थी इसलिए राहुल गांधी 2019 में मुस्लिम बहुल इस सीट से भी चुनाव लड़े थे. राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में दो सीट से परचा भरा था. अपनी परंपरागत लोकसभा सीट अमेठी के अलावा वायनाड से भी. वे अमेठी हारे किंतु वायनाड लोकसभा सीट जीत गए थे.
ससुर-दामाद की जोड़ी डूबी
2024 में वे उत्तर प्रदेश की राय बरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और वायनाड से भी. इस बार वे दोनों जगह से जीते. बाद में उन्होंने वायनाड सीट छोड़ दी और उप चुनाव में उनकी बहन प्रियंका गांधी यहां से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं. 2025 के ये स्थानीय निकाय चुनाव परिणाम 2026 में होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए लिटमस टेस्ट हैं. एलडीएफ से पिनरायी विजयन यहां मुख्यमंत्री हैं, जो माकपा की टिकट पर चुनाव जीतते रहे हैं. उनके प्रचंड प्रतिद्वंदी और माकपा के ज़मीनी नेता वीएस अच्युतानंदन की की कुछ महीनों पहले 99 साल की अवस्था में मृत्यु हो गई थी. इसलिए सारा दारो-मदार अब पिनरायी विजयन पर ही है. उन्होंने अपने दामाद मोहम्मद रियास को पहली बार विधायक चुने जाने पर भी पर्यटन मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया इसलिए एलडीएफ में असंतोष भी फैला था. शायद इसीलिए 2024 के लोकसभा चुनाव में एलडीएफ को सिर्फ एक सीट मिली थी.
शायद यही कारण है कि कांग्रेस की अगुआई वाली यूडीएफ ने केरल स्थानीय निकाय चुनाव में एलडीएफ पर भारी पड़ी है. यूं वहां भाजपा की अगुआई वाले एनडीए का कुछ भी दांव पर नहीं था इसलिए करारा झटका एलडीएफ को मिला है. तिरुअनंतपुरम नगर निगम की 101 सीटों में से भाजपा को 50 सीटें मिल गई हैं.
ग्राम पंचायत पर यूडीएफ (कांग्रेस) को 173371 में से 8021 सीटों पर जीत मिली है. वहीं ब्लॉक पंचायत पर 2267 में से 1241 सीटों पर जीत मिली है. जिला पंचायत पर 346 में से 195 सीटों पर जीत हासिल हुई है. म्यूनिसिपालिटी में 3240 में से 1458 और कॉर्पोरेशन में 421 में से 187 सीटों पर जीत दर्ज की है. इन आंकड़ों के साथ यूडीएफ सबसे आगे रही है. एलडीएफ (माकपा लीड) की ग्राम पंचायत में 6,568, ब्लॉक पंचायत में 923, जिला पंचायत में 147, म्यूनिसिपैलिटी में 1,100 और कॉर्पोरेशन में 125 सीटों पर जीत मिली. केरल के इन चुनावों में सब ने पैसा झोंका था क्योंकि 2026 में कुछ महीनों के भीतर विधान सभा चुनाव होने वाले हैं. केरल का असर पड़ोस के तमिलनाडु पर भी पड़ना अवश्यंभावी है. ख़ासकर पद्मनाभ नगर, नागरकोईल और कन्या कुमारी तो इसकी लपेट में आएंगे ही.
केरल में तिरुअनंतपुरम में मेरा तीन दिनों का प्रवास था और दो दिनों का कन्या कुमारी में. वहां मैंने देखा कि तिरुअनंतपुरम में तो भाजपा के प्रचार में कमी नहीं है किंतु केरल से सटे तमिलनाडु के इलाक़े में कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पंजे की वाल चॉकिंग खूब है. अलबत्ता मदुरई में एयरपोर्ट से लेकर शहर तक के 20 किमी तक सिर्फ़ डीएमके के झंडे दिख रहे हैं. हालाँकि तमिलनाडु में स्थानीय निकाय चुनाव नहीं हो रहे हैं किंतु केरल के साथ ही वहां भी विधान सभा चुनाव हैं. इसलिए तैयारी ज़ोरों पर है. जिन राज्यों में 2026 में विधान सभा चुनाव होने हैं, वहां के सत्तारूढ़ दल अभी एक महीने पहले आए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों से बेचैन हैं. केरल में एनडीए की जीत से वे जितने सन्न हैं उससे कहीं अधिक इंडिया गठबंधन की पराजय पर.
यहां भी डीएमके और एलडीएफ तथा यूडीएफ को लग रहा है कि भाजपा पता नहीं कितने वोटकटवा दल खड़े कर दे. क्योंकि केरल के स्थानीय निकाय चुनाव में त्रिशूर नगर निगम के कन्ननकुलंगरा वार्ड से भाजपा ने मुमताज़ बेगम को खड़ा किया और कांग्रेस से यह सीट छीन ली. यह सीट हिंदू बहुल है परंतु भाजपा ने दांव एक मुस्लिम महिला पर लगाया. केरल के स्थानीय निकाय की वोटिंग 9 और 11 दिसंबर को हुई. वोटों का प्रतिशत 73.69 रहा जो 1995 के बाद का सर्वाधिक आंकड़ा है. इन चुनावों में सत्तारूढ़ फ़्रंट माकपा की अगुआई वाले एलडीएफ का पिछड़ना इस बात का संकेत है कि एलडीएफ के अंदर बग़ावत है. मुख्यमंत्री के दामाद को इतनी अधिक वरीयता मिलने से एलडीएफ के सहयोगी तो नाराज़ हैं ही खुद माकपा में फूट पड़ गई है. ऊपर से वीएस अच्युतानंदन की कमी आज सबको खल रही है.
जो भाजपा केरल में कहीं कोई दख़ल नहीं रखती थी, उसके अनायास बढ़ने से भी केरल में राजनीति करने वाली पार्टियां हैरान हैं. राज्य माकपा के सचिव एमवी गोविंदन ने कहा है कि केरल में एलडीएफ को हराने के लिए कांग्रेस (यूडीएफ ) और भाजपा (एनडीए) ने परस्पर समझौता किया हुआ है. लेकिन वे भूल जाते हैं कि कारपोरेट द्वारा संचालित ट्वेंटी 20 को हराने के लिए किझक्कमबलम में एलडीएफ , यूडीएफ और भाजपा ने साझा उम्मीदवार को समर्थन दिया था. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, इस फ़ार्मूले पर सभी पार्टियां राजनीति करती हैं, वही केरल में हुआ. बहरहाल केरल के चुनाव परिणाम से राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड्गे और शशि थरूर ने यूडीएफ की भारी जीत पर राज्य की जनता को धन्यवाद ज्ञापित किया है. एनडीए की जीत पर भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने.

