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आसिफ अली जरदारी करप्शन के आरोपों के सिलसिले में 11 साल जेल में रहे। परकिस्मत का खेल देखिए कि अब वह दूसरी बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए हैं। यही पाकिस्तान की राजनीति के स्याह चेहरे का सच है। पिछले तीन दशकों सेवे जेल और सत्ता के नजदीक रहे हैं। उन्हें संभवतः पाकिस्तान का सबसे बदनाम राजनेता माना जा सकता हैजो सत्ता के सर्वोच्च पद तक पहुंचने में कामयाब रहा। व्हीलिंग और डीलिंग में माहिर रहे हैं जरदारी। वो 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद देश की राजनीति में आए थे। उसके बाद जरदारी अपने देश के राष्ट्रपति बन गए। बेशकजरदारी से बेहतर सत्ता की राजनीति कोई नहीं कर सकता। एक दशक से अधिक समय तक जेल में रहने और लगातार विवादों में घिरे रहने के बादवह पाकिस्तानी राजनीति में अछूत से लेकर निर्विवाद किंगमेकर बन गए। जरदारी एक चतुर और चालाक राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं। उन्होंने दिसंबर 2007 में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) नेतृत्व की कमान संभाली। उन्होंने 2008 के संसदीय चुनावों में पीपीपी को जीत दिलाई और सैन्य नेता जनरल परवेज़ मुशर्रफ को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।

बेनजीर भुट्टो के पहले कार्यकाल के दौरानजरदारी पर संपत्ति हड़पने के लिए अपनी पत्नी के पद का दुरुपयोग करने के आरोप लगे। विपक्ष ने आरोप लगाया कि जरदारी ने हर सरकारी परियोजना पर कमीशन लिया और उन्हें “मिस्टर टेन परसेंट” का लेबल दिया। उन्हें अपनी पत्नी की पहली सरकार के पतन के लिए भी दोषी ठहराया गया। उन्हें पहली बार 1990 में गिरफ्तार किया गया।

जरदारी ने ऐसे समय में राजनीतिक मैदान में उतरने का फैसला कियाजब सब कुछ उनके खिलाफ होता दिख रहा था। उन्होंने 1990 में अपने गृह नगर सिंध के नवाबशाह से नेशनल असेंबली सीट के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया था। कुछ हफ़्ते बादउन्हें कई आरोपों में गिरफ़्तार कर लिया गया। वह चुनाव भी हार गएलेकिन वे 1993 में नेशनल असेंबली के लिए चुने गए। जब उनकी बेगम बेनजरी भुट्टो प्रधानमंत्री थींतब जरदारी पर्दे के पीछे से खेल खेलते थे और उन्होंने खुद को देश का सुपर प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित कर लिया था। जरदारी ने 200 से अधिक आरोपों में विशेष अदालतों में मुकदमे का सामना किया, जिसमें फिरौती के लिए अपहरण से लेकर बैंकों को धोखा देने से लेकर राजनीतिक विरोधियों की हत्या की साजिश रचने तक के केस शामिल थे। लेकिन उन पर लगे कोई भी आरोप साबित नहीं हुए। 1992 में जमानत पर रिहा होने के बाद जरदारी का सितारा फिर से चमक उठा। यह पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में एक अविस्मरणीय क्षण थाजब जरदारी को जेल से रिहा किया गया और 1993 में नवाज शरीफ की पहली संघीय सरकार को हटाने के बाद बनी अंतरिम सरकार में उन्होंने संघीय मंत्री के रूप में शपथ ली। विडंबना यह है कि शपथ राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने दिलाई। उन्होंने ही जरदारी को जेल भेजने का रास्ता साफ किया था।

दरअसल 1993 के चुनावों में पीपीपी की जीत के बादजरदारी उन सभी विवादों के साथ सत्ता में वापस आ गएजिनके चलते बेनजीर भुट्टो सरकार गिरी थी। अब संघीय मंत्री जरदारी पर एक बार फिर भ्रष्टाचार और राजनीतिक हेराफेरी के आरोप लगने लगे।

हालाँकि जरदारी को अतीत में कभी भी निर्णायक रूप से दोषी नहीं ठहराया गयालेकिन पाकिस्तानी अवाम को जन्नत की हकीकत पता है। उनकी बहनों सहित उनके परिवार के कुछ सदस्य भी भ्रष्टाचार में कथित रूप से अकंठ डूबे हुए थे।

इमरान खान के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के बाद लग रहा था कि अब आसिफ अली जरदारी की पारी का अंत हो गया। परआपको याद होगा कि जरदारी की पार्टी ने अप्रैल 2022 में अविश्वास मत के माध्यम से इमरान खान की सरकार को हटाने के लिए  मुस्लिम लीग (नवाज) और अन्य विपक्षी दलों के साथ हाथ मिला लिया था। तब इमरान खान की सरकार गिर गई थी और उसके बाद देश में गठबंधन सरकार बनी। जिसके प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ बने और विदेश मंत्री जरदारी के पुत्र बिलावल भुट्टो जरदारी।

अगर जरदारी की भारत को लेकर रही सोच की बात करें तो वे कम से कम अपने ससुर जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह भारत विरोधी कभी नहीं लगे। वे कभी भारत नहीं आए हैं। उनकी अजमेर में गरीब नवाज की चौखट पर हाजिरी देने की ख्वाहिश थी। सन 2008 में पूरी होते-होते रह गईं थीं। तब जरदारी भारत आने वाले थे। पर वे चाहकर भी भारत नहीं आ पाए। उनका इरादा यही था कि दिल्ली आएंगे तो अजमेर में ख्वाजा मुईनउद्दीन चिश्ती की मजार पर चादर तो चढ़ा ही लेंगे।  दरअसल तब उन्हें राजधानी में एक अंग्रेजी अखबार की तरफ से आयोजित किए जा रहे कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए दावत दी गई थी। पर अफसोस कि तब भारत-पाकिस्तान के संबंधों में मौजूदा गर्मजोशी नहीं थी। तनाव को साफतौर पर महसूस किया जा सकता था। जाहिर है,जरदारी भारत नहीं आ पाए थे। जरदारी को इस बात जानकारी होगी ही कि उनके ससुराल का भारत के दो शहरों क्रमश: जूनागढ़ और मुम्बई से बहुत गहरा रिश्ता रहा है। जब जरदारी की पत्नी बेनजीर भुट्टो की निर्मम हत्या हुई थी तब जूनागढ़ में भी शोक की लहर दौड़ गई थी। यहां के वांशिदें बेनजीर भुट्टो को कहीं न कहीं अपना ही मानते थे। जूनागढ़ शहर की जामा मस्जिद में इमाम मौलाना हाफिज मोहम्मद फारूक की अगुवाई में उनकी आत्मा की शांति के लिए नमाज भी अदा की गई थी। उनके ससुर का मुंबई से गहरा नाता रहा।

हालांकि जरदारी उस अखबार के कार्यक्रम में शिरकत तो नहीं कर पाए थे पर सेटेलाइट लिंक के माध्यम से उन्होंने सम्मेलन को संबोधित किया था। उन्होंने सात-आठ सवालों के उत्तर भी दिए थे। भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर पूछे गए चुभने वाले सवालों के सुलझे हुए जवाबों ने उनके पक्ष में माहौल भी बनाया था। जरदारी का भाषण समाप्त होने के बाद उनसे एक सवाल यह भी किया गया ‘ क्या आपको लगता है कि कभी भारत-पाकिस्तान दोनों के रिश्तों में मिठास आएगी कुछ पल ठहरने के बाद उनका जवाब आया। उन्होंने कहा था- “मुझे तो यकीन है कि भारत-पाकिस्तान अपने तमाम आपसी मसले हल कर लेंगे। मैं मानता हूं कि हर पाकिस्तानी के दिल में भारत और पाकिस्तानी के दिल में भारत बसता है।” जरदारी के इस उत्तर को सुनकर राजधानी के उस पांच सितारा होटल के भव्य कांफ्रेस रूम में तालियां गड़गड़ाने लगीं। दरअसल यही जुमला उनकी पत्नी और पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने भी बोला था जब वे इसी सम्मेलन सन 2002 में आईं थीं। तब तक दोनों पति-पत्नी दुबई में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे। फिलहाल तो वे अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को पीछे छोड़ दूसरी बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन चुके हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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