आरके सिन्हा
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पटनाः चरमपंथी संगठन हमास ने इजराइल पर अचानक हमला करके जिस तरह का नृशंस भीषण कत्लेआम किया, उसकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से की गई त्वरित निंदा से यह साफ हो गया है कि भारत अब इजराइल से किसी प्रकार की दूरी बनाने के लिए तैयार नहीं है। हां, भारत की यह दिली चाहत है कि फिलिस्तीनी संकट का कोई स्थायी समाधान निकले। हमास के इजराइल पर बिना कारण अचानक हमले के बाद दुनिया के बहुत से देश इजराइल के साथ स्वाभाविक रूप से खड़े हो गए। भारत भी इजराइल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। इजराइल भारत के सच्चे मित्र के रूप में संकट के समय लगातार सामने आता रहा है। यह बात अलग है कि फिलिस्तीन मसले पर इंदिरा गाँधी के समय आजतक भारत आंखें मूंद कर अरब संसार के साथ खड़ा रहा। कश्मीर के सवाल पर अरब देशों ने सदैव पाकिस्तान का ही साथ दिया। लेकिन, इजराइल ने संकट के समय तो हमेशा भारत की हर तरह से मदद की। हमारे यहां के कुछ तत्व हमेशा इजराइल का खुलकर विरोध ही करते रहते हैं। उनमें वामपंथी मित्र सबसे आगे ही रहते हैं। वे भूल जाते हैं कि इजराइल हमारा संकट का मित्र है। वे युद्ध काल में भी हर पल हमारे साथ रहा है। इन सब तथ्यों की अनदेखी करते हुए हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के छात्रों द्वारा फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन किया गया। वर्तमान परिस्थितियों में यह भारत के राष्ट्रहित के खिलाफ ही कारवाई मानी जायेगी I इन छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में विरोध मार्च भी निकाला। एएमयू के छात्रों का कहना है कि जिस तरह इजराइल द्वारा फिलिस्तीन पर ज़ुल्म किया जा रहा है, वह सही नहीं है। लेकिन, वास्तव में अभी तो कारवाई बिना वजह फिलिस्तीनी आतंकी गुट हमास द्वारा इजराईल के खिलाफ हो रही है I इन छात्रों ने स्थानीय पुलिस प्रशासन से बिना अनुमति लिए ही प्रदर्शन किया। ये भी अस्वीकार्य है। उन्होंने प्रदर्शन के दौरान आतंकी संगठन हमास के कत्लेआम की कोई निंदा नहीं की। ये शर्मनाक भी है। इसे कहते हैं, “उल्टे चोर कोतवाल को डांटे ”

बहरहालअगर हम भारत- इजराइल संबंधों के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि भारत ने 17 सितम्बर 1950 को इज़राइल को ही आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान कर दी थी। वह सरदार पटेल का जमाना था उसके बाद इज़राइल के साथ भारत के 1992 में राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हुए। वह भी तत्कालीन प्रधानमन्त्री नरसिंह राव ने इज़राइल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध शुरू करने को मंजूरी दी। इसके लिए वे बधार्ई के पात्र हैं। उसके बाद नई दिल्ली और तेल अवीव में दोनों देशों की एबेंसी भी स्थापित हुईं। इजराइल ने शुरू में राजधानी के बाराखंभा रोड पर स्थित गोपालदास टावर्स में अपनी एंबेसी स्थापित की थी। हालांकि कुछ सालों के बाद इजराइल ने लुटियंस दिल्ली के पृथ्वीराज रोड पर अपनी एंबेसी स्थापित कर ली। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्वकाल  में इज़राइल के साथ सम्बन्धों को नए आयाम तक पहुँचाने की ठोस कोशिशें भी की गईं। इजराइल तब भी भारत के साथ खड़ा थाजब उसे मदद की सर्वाधिक आवश्यकता थी।  इजराइल ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाइयों के दौरान भी भारत को मदद दी। उसने 1965 और 1971 में  भारत को गुप्त जानकारियां देकर मदद की थी। 1999 के करगिल युद्ध में इजराइल मदद के बाद भारत और इजराइल खासतौर पर करीब आए। तब इजराइल ने भारत को एरियल ड्रोनलेसर गाइडेड बमगोला बारूद और अन्य हथियारों की मदद दीजबकि इसके लिये भारत को अमेरिका से भी मदद नहीं मिली थी । बेशकपाकिस्तान के परमाणु बम ने दोनों देशों को नज़दीक लाने में मदद की। इजराइल को यह स्वाभाविक डर रहा है कि कहीं यह परमाणु बम ईरान या किसी इस्लामी चरमपंथी संगठन के हाथ न लग जाए।

भारत- इजराइल संबंधों को मजबूती कृषि क्षेत्र में आपसी सहयोग से भी मिलती है।  दोनों देशों की सरकारें कृषि सहयोग में विकास के लिए प्रतिब्द्ध हैं। दोनों देशों के बीच लगातार बढ़ती द्विपक्षीय साझेदारी की पुष्टि करते हुए द्विपक्षीय संबंधों में कृषि और जल क्षेत्रों की प्रमुखता को मान्यता दी गई है।

 भारत-इजराइल को करीब लाने में भारत में सदियों से बसे हुये यहूदियों के योगदान को कम करके नहीं देखा जा सकता है। भारत में केरलमहाराष्ट्रदिल्ली वगैरह में हजारों यहूदी बसे हुए हैं। राजधानी के हुमायूं रोड पर जूदेह हयम सिनगॉग है। ये उत्तर भारत का एक मात्र सिनगॉग है। इसे आप यहूदियों का मंदिर भी कह सकते हैं। यहां राजधानी में रहने वाले यहूदी परिवार नियमित रूप से पूजा करने के लिए आते हैं। इस बीचआप जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ से पहाड़गंज मेन बाजार में दाखिल होते हैंतो आपको यहूदियों का खाबड़ हाउस मिलेगा। इधर अंग्रेजी और हिब्रु में लिखा है ‘खाबड़ हाउस’। आप कह सकते हैं कि ये राजधानी में यहूदियों का घर से दूर का घर है। यहां पर दुनियाभर से दिल्ली आने वाले यहूदियों को छत मिल जाती है। इजराइल-हमास जंग का असर  खाबड़ हाउस पर भी नजर आता है। यहां पर सन्नाटा पसरा हुआ है। फिलहाल इसकी कुछ सुरक्षा कर्मी निगाहबानी कर रहे हैं।

इजराइल के टूरिस्ट पहाड़गंज को पसंद करने लगे हैंतो इसके लिए खाबड़ हाउस को भी क्रेडिट देना होगा। उन्हें पहाड़गंज में आकर लगता है कि वे अपने घर में हैं। पहाडगंज बीते कम से कम तीन दशकों से इजराइल के टूरिस्टों की सबसे पसंदीदा जगह के रूप में उभरा है। वे यहां आकर ठहरते हैं और यहां से हिमाचल प्रदेश और दूसरे राज्यों में घूमने के लिए निकल जाते हैं। इजराइल से आने वाले टूरिस्ट गर्मियों के मौसम में पहाड़गंज के होटलों में भर जाते हैं। इन्हें हर तरह से बहुत बढ़िया टूरिस्ट माना जाता है। ये वक्त पर अपना बिल दे देते हैं और कोई गैर-कानूनी काम भी नहीं करते। जानकार बताते हैं कि मुंबई में 2009 में हुए हमलों के बाद भारत में विदेशी टूरिस्ट आने लगभग बंद हो गए थे। भारत का टूरिज्म सेक्टर घुटनों पर पहुंच गया था। उस दौर में भी इजराइली टूरिस्ट पहाडगंज को गुलजार कर रहे थे। ये भारत को प्यार करते हैं। इन्हें भारत पसंद है। हांकोविड काल में तो सब कुछ ही बंद हो गया था। बता दें कि खाबड़ हाउस और सिनगॉग में वही फर्क होता है जो मंदिर और गुरुकुल या मस्जिद और मदरसे में होता है। मुंबई में भी काफी यहूदी हैं। इनका मुंबई के महालक्ष्मी में ज्यूइश सेमेटरी भी है। जैसा कि इसके नाम से ही साफ है कि ये मुंबई के यहूदियों का कब्रिस्तान है। इस कब्रिस्तान में 1927 से दफनाए जा रहे हैं शहर के यहूदी। हिन्दी फिल्मों के गुजरे दौर के एक्टर   डेविड भी यहाँ ही दफन हैं। वे भी यहूदी ही थे। अंग्रेजी के नामवर लेखक और कवि निजिम एजिकल और दूसरे कई यहूदी भी यहां दफन हैं। महाराष्ट्र के सभी यहूदी मराठी बोलते हैं। भारतीय यहूदियों की हमेशा चाहत रही है कि भारत-इजराइल आपसी सहयोग और मैत्री आगे बढ़ता रहे। अच्छी बात यह है कि वे जैसा चाहते हैंवैसा हो भी रहा है। मतलब भारत-इजराइल लगातार करीब आ रहे हैं। फिलहाल इजराइल एक कठिन दौर से गुजर रहा है। इस समय भारत और भारत की जनता को इजराइल का हर मुमकिन में साथ देना ही चाहिए। दोस्तों की पहचान संकट के वक्त में ही होती है I

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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