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पटना डेस्कः देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज 139वीं जयंती है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने संविधान के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई थी। मोहनदास करमचंद गांधी के सबसे प्रिय थे। बापू ने एक बार कहा था कि अगर राजेंद्र बाबू को विष का प्याला भी पीने के लिए दें तो वो बिना हिचकिचाहट के पी लेंगे। चंपारण सत्याग्रह के दौरान भी राजेन्द्र प्रसाद की काफी अहम भूमिका थी. इस आंदोलन के दौरान वो बापू के काफी निकट रहें. इस दौरान महात्मा गांधी राजेंद्र बाबू से इतने प्रभावित हुए कि वो उन्हें अपना दायां हाथ मानने लगे थे. राजेंद्र बाबू का जन्म आज ही के दिन तीन दिसंबर 1884 को जिरदोई में हुआ था। 

देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के जिरादेई में 3 दिसंबर 1884 को एक कायस्थ परिवार में हुआ था। पढ़ने लिखने में काफी तेज राजेंद्र बाबू किसी भी जाति या धर्म के लोगों के साथ आसानी से घुल-मिल जाते थे। जब वो 13 वर्ष के थे तो राजवंशी देवी से उनकी शादी करा दी गई। उन्होंने 18 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय की परीक्षा पास की थी. इतना ही नहीं उन्होंने प्रथम स्थान हासिल किया था जिसके लिए उन्हें 30 रुपये की स्कॉलरशिप भी दी गई थी. इसके बाद साल 1902 में उन्होंने कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया. यहां से उन्होंने लॉ में डॉक्टरेट किया. राजेंद्र बाबू की बुद्धिमता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक बार परीक्षा कॉपी चेक करने वाले अध्यापक ने उनकी शीट पर लिख दिया था कि ‘परीक्षा देने वाला परीक्षा लेने वाले से ज्यादा बेहतर है’ 

बता दें संविधान पर हस्ताक्षर करने से पहले संविधान सभा के अध्यक्ष डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने बेनेगल नरसिंह राऊ को धन्यवाद देते हुए कहा था कि उन्होंने न सिर्फ़ अपने ज्ञान और पांडित्य से संविधान सभा की मदद की है बल्कि दूसरे सदस्यों को भी पूरे विवेक के साथ अपनी भूमिका निभाने में मदद की है.राऊ संविधान सभा के सदस्य नहीं थे, लेकिन वो मसौदा कमेटी के सबसे महत्वपूर्ण सलाहकार थे.संविधान बन जाने के बाद 25 नवंबर, 1949 को डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, ‘संविधान बनाने का जो श्रेय मुझे दिया जा रहा है, वास्तव में मैं उसका अधिकारी नहीं हूँ. उसके वास्तविक अधिकारी बेनेगल नरसिंह राऊ भी हैं जो इस संविधान के संवैधानिक परामर्शदाता हैं और जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का मोटे रूप में मसौदा बनाया.’यह सुनने के लिए बेनेगल नरसिंह राऊ संविधान सभा में मौजूद नहीं थे क्योंकि तब तक उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और वो संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि बन गए थे.1946 में, उन्हें जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में चुना गया। इसके बाद, उन्हें 11 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया, जो एक अस्थायी संसद के रूप में कार्य करती थी।

15 अगस्त 1947 को संविधान से संबंधित एक समस्या उठ खड़ी हुई. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में व्यवस्था थी कि भारत के आज़ाद होते ही असेंबली भंग हो जाएगी और संविधान सभा उसका स्थान ले लेगी.सवाल उठा कि राजेंद्र प्रसाद जो कि मंत्रिमंडल के सदस्य होने के साथ साथ संविधान सभा के अध्यक्ष की भूमिका साथ-साथ कैसे निभा सकते हैं?मशहूर पत्रकार दुर्गा दास अपनी किताब ‘फ़्रॉम कर्ज़न टू नेहरू एंड आफ़्टर’ में लिखते हैं, ‘नेहरू और पटेल दोनों चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद मंत्रिमंडल में रहें और संविधान सभा के लिए एक दूसरा अध्यक्ष चुना जाए. जब नेहरू ने अपना मत व्यक्त किया कि प्रजातंत्र में एक मंत्री के संविधान सभा की अध्यक्षता करने से उचित संदेश नहीं जाएगा तो बेनेगल नरसिंह राऊ से सुझाव दिया कि संविधान सभा के अध्यक्ष के नाम पर एक डिप्टी स्पीकर का चुनाव किया जाए जो कि असेंबली की अध्यक्षता कर सके..”इसकी वजह से सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद के बीच तनाव पैदा हो गया और मंत्रमंडल में इन दोनों के बीच तीखी झड़प हुई. बाद में गाँधीजी की हत्या से एक सप्ताह पहले ये मामला उनके सामने उठाया गया.”राजेंद्र प्रसाद इस मामले में संविधान सभा में एक वक्तव्य देना चाहते थे, लेकिन गाँधीजी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. बाद में बेनेगल राऊ की सलाह पर बीच का रास्ता निकाला गया जिसके अनुसार राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने रहे और जी वी मावलंकर ने असेंबली के स्पीकर की ज़िम्मेदारी सँभाली.’

डॉ. राजेंद्र प्रसाद 1934 से 1935 तक भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. डॉ. प्रसाद को 1935 में कांग्रेस के बॉम्बे अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद 1939 में सुभाष चंद्र बोस के जाने के बाद उन्हें जबलपुर अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद राजेंद्र बाबू ने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी भाग लिया. राजेंद्र बाबू आजादी से पहले 2 दिसंबर 1946 को अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री बने. वहीं जब देश स्वाधीन हुआ तो राजेंद्र बाबू देश के पहले राष्ट्रपति बने. राजेंद्र प्रसाद देश के इकलौते राष्ट्रपति हैं जो लगातार दो बार राष्ट्रपति चुने गए. वह 12 सालों तक राष्ट्रपति रहे. राष्ट्रवादी आंदोलन के दौरान और भारत के राष्ट्रपति रहने के दौरान देश की तरक्की में योगदान देने के लिए उन्हें 1962 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

राष्ट्रपति रहने के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद की बड़ी बहन भगवती देवी का 25 जनवरी 1960 की देर शाम निधन हो गया. बहन की मृत्यु से उन्हें गहरा सदमा लगा. वह पूरी रात शव के पास ही बैठे रहे. रात के अंत में, उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें अगली सुबह राष्ट्रपति के रूप में गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने की याद दिलाई. इसके बाद उन्होंने अपने आंसू पोंछे और तैयार होकर सुबह गणतंत्र दिवस समारोह में परेड की सलामी लेने पहुंच गए. समारोह के दौरान वह पूरी तरह शांत रहे।

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