रोहतासगढ़ किला के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने देश-विदेश से आ रहे सैलानी

By Team Live Bihar 21 Views
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रोहतासगढ़ किला

आरा: विंध्य पर्वत माला की कैमूर पहाड़ी पर स्थित रोहतास गढ़ किला जितना प्राचीन है उतना ही समय इसकी प्राचीनता और सौंदर्य को बनाये रखने में बिहार की सरकारों ने लिया है. ग्रंथों में यह वर्णन है कि भगवान राम के वंशज रजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने इस किले का निर्माण कराया था. उस समय से लेकर अबतक बिना देखभाल के इस किले का आकर्षण बना रहा लेकिन विकास की दृष्टि से इसे अधुनातन रूप देने का ख्याल सरकारों को नहीं आया. इस उपेक्षा की परिणति निकट अतीत में यह भी रही कि नक्सलियों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया लेकिन आज यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. रोहतास और शाहाबाद के साथ साथ बिहार और देश भर के पर्यटक समय-समय पर इस किले को देखने आते हैं.

कभी नक्सलियों के कब्जे को लेकर खौफ का पर्याय बना यह किला अब पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण हो चुका है.यहां प्रतिदिन आने वाले सैलानियों की संख्या हजारों में हैं. प्रकृति एवं पर्यावरण की खूबसूरती को समेटे रोहतासगढ़ किला पर प्रशासन और सरकार की नजर अब पड़ी है. यही कारण है कि यहां अब सड़कें बन रही हैं तो रोपवे का निर्माण भी चल रहा है. विंध्य पर्वत श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी पर स्थित इस किले के आसपास के क्षेत्र को बिहार का हिल स्टेशन भी कहा जाने लगा है.
यह किला 28 वर्ग मील मे फैला हुआ है जिसमे 83 दरवाजे हैं. प्रवेश द्वारा पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों की कलात्मक आकृति और पेंटिंग को देख कर इस प्राचीन वास्तुशिल्प और सौंदर्य का आंकलन संभव नहीं लगता और लोग हैरान रह जाते हैं. यहां समय-समय पर शासन करने वाले राजाओं ने अपने आधिपत्य के दौरान इस किले को अपने तरिके से रखरखाव जैसे कार्य करवाये. रोहतास गढ़ किले मे रंगमहल, शीशमहल, पंच महल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मान सिंह की कचहरी और फांसी घर को आज भी देखा जा सकता है.

किले के चारों तरफ हरियाली का विस्तृत साम्राज्य है. विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधे, पहाड़ी पर हरे भरे पेड़ पौधे और घासों पर विचरती पहाड़ी गायें, बरसात में जगह-जगह से गिरते झरने, पहाड़ी नदियों का उद्‌गम, उन्मुक्त वातावरण में उछलकूद मचाते बंदर, किले के सामने समतल भूमि पर लहलहाते मौसम अनुकूल फसलें, सबकुछ प्राकृतिक सुंदरता का सहज अहसास कराती है.

कैमूर की पहाड़ी पर रहने वाले वनवासी रोहतासगढ़ किले को अपना तीर्थस्थल और अपनी मूल भूमि रोहतासगढ़ को ही मानते हैं. समय-समय पर ये वनवासी कैमूर की पहाड़ी से विस्थापित होकर देश के अन्य प्रांतों में जाकर बसते गए. किन्तु किला परिसर में स्थित प्राचीन करम वृक्ष के प्रति उनकी आस्था इतनी गहरी है कि उसकी पूजा-अर्चना के लिए देश के विभिन्न स्थलों पर बसे आदिवासी समुदाय के लोग प्रतिवर्ष आते हैं, महोत्सव मनाते हैं और पूर्वजों की धरती को नमन करते हैं.
किला परिसर में अतिप्राचीन रोहितेश्वरनाथ महादेव मंदिर है. इसे त्रेताकालीन माना जाता है. यहां पहुंचने के लिए नीचे मां पार्वती के मंदिर के बगल से 84 सीढ़ियां बनी हुई है. इस कारण इसे चौरासन मंदिर भी कहा जाता हैं. मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है. गर्भगृह के बाहर दो स्तंभों के ऊपर छोटा सा मंडप है. मान्यता है कि इस शिवलिंग की प्राण, प्रतिष्ठा राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराई थी. उस कालखंड में उन्होंने मंदिर के आसपास वन क्षेत्र में रोहितपुर नामक नगर भी बसाया था.

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