बक्सर: बक्सर में दीपावली के बाद गांवों में दरिद्रता को दूर भगाने की एक परंपरा आज भी जारी है। यहां दीपावली के अगले दिन सूर्योदय से पहले घर का पुराना सूप, डाली आदि पीट कर प्रथा निभाई जाती है। इसे घर से बाहर निकाल कर खेतों में जला दिया जाता है। फिर लोहा को गर्म कर काजल बनाया जाता है।
चौसा गांव के कई बुजुर्गों को पता नहीं है कि इसके पीछे का तथ्य क्या है। वे सिर्फ पूर्वजों को बताये नियम का पालन करती है। उसे करने में उसे निभाने में आज भी जुटी पड़ी है।
शुक्रवार की अहले सुबह सूर्योदय से एक घंटे पहले प्रत्येक घर से महिला और पुरुष परंपरा निभाते हैं। हाथ में, किसी टूटे हुए सूप, टूटी झाड़ू और हंसुआ या उसके जैसी किसी और चीज को घर से पीटते हुए बाहर निकालने है। मान्यता है कि सूप पीटने की आवाज से घर के सभी कोने से दरिद्रता बाहर निकल जाती है। इसके बाद खेत में जला दिया जाता है। इस दौरान सभी एक ही बात बोलते है कि, दरिद्र भागे ।
घर की बुजुर्ग महिलाएं निभाती है परंपरा
दीवाली के बाद यह परंपरा घर की बुजुर्ग महिलाएं, दादी या नानी करती है। जहां महिलाएं नहीं है या घर से बाहर नहीं निकलती वहां घर के पुरुष परंपरा निभाते हैं। एक पुराना सूप और लोहे का हंसुआ या ऐसी ही कोई चीज लेकर पूरे घर में सूप पीटती हैं। साथ में बोलती है कि ईश्वर पइसे, दलिद्दर भागे। यानी कि ‘ईश्वर आकर बैठें और दरिद्र भागे’। यह प्रथा यूपी बिहार के अधिंकाश गांवो में निभाया गया। स्थानीय बोलचाल में इसे दलिद्दर पीटना या दरिद्रता भगाना कहा जाता है।
चौसा गांव की महिला उर्मिला देवी ने बताया कि उनके पूर्वज दीपावली पर घर में जिस तरह से पूजा पाठ करते आये ठीक उसी प्रकार से हम लोग निभा रहे है। सूप पीटने को लेकर इनका कहना है कि इससे घर के कोने-कोने में छिपी दरिद्रता भागती है। उसे खदेड़कर वह घर में धन वैभव बुलाती है।
दरिद्रता को खेतों या डीह के पास जला दिया जाता है। जहां दीपक के आग पर लोहे को गर्म कर काजल भी बनाया जाता है। जिसे घर के सभी सदस्यों के आंखों में लगाया जाता है। मान्यता है कि इससे शरीर रोग मुक्त होता है।