VIP Darshan Ban: सुप्रीम कोर्ट की ‘गूंज’, मंदिरों में वीआईपी दर्शन खत्म होने का खुला रास्ता

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VIP दर्शन व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
Highlights
  • • VIP दर्शन याचिका तकनीकी आधार पर खारिज • सुप्रीम कोर्ट ने विशेष व्यवहार को बताया मनमाना • नीति निर्धारण की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर • आम श्रद्धालुओं के पक्ष में मजबूत संकेत

VIP Darshan Ban पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, गेंद केंद्र सरकार के पाले में

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही मंदिरों में ‘वीआईपी दर्शन’ सुविधा को चुनौती देने वाली याचिका को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया हो, लेकिन इस मामले पर कोर्ट की टिप्पणियां दूरगामी असर डालने वाली हैं। पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि मंदिरों में वीआईपी के लिए विशेष व्यवहार मनमाना प्रतीत होता है। कोर्ट ने इसे नीतिगत मामला बताते हुए केंद्र सरकार के विचार के लिए छोड़ दिया है।

यही वह “गूंज” है, जो आने वाले समय में देशभर के मंदिरों में चल रही वीआईपी और वीवीआईपी दर्शन व्यवस्था पर रोक लगाने का मजबूत आधार बन सकती है।

Article 32 के तहत आदेश नहीं, लेकिन असहमति स्पष्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह अनुच्छेद 32 के तहत इस मामले में निर्देश जारी नहीं कर सकती, लेकिन पीठ इस मुद्दे से सहमत है कि मंदिरों में प्रवेश के मामले में किसी भी प्रकार का विशेष व्यवहार नहीं होना चाहिए। आदेश में यह बात स्पष्ट रूप से दर्ज की गई कि याचिका खारिज होने का मतलब यह नहीं है कि संबंधित अधिकारी आवश्यक कार्रवाई नहीं कर सकते।

पूर्व CJI संजीव खन्ना ने कहा कि यह मामला कानून-व्यवस्था और नीति से जुड़ा है और इस पर सरकार को विचार करना चाहिए। इस टिप्पणी ने साफ संकेत दे दिया कि न्यायपालिका ने नैतिक और संवैधानिक दृष्टि से वीआईपी दर्शन की व्यवस्था को सही नहीं माना।

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VIP दर्शन शुल्क पर सवाल, समानता के अधिकार की दलील

VIP Darshan Ban: सुप्रीम कोर्ट की ‘गूंज’, मंदिरों में वीआईपी दर्शन खत्म होने का खुला रास्ता 1

यह याचिका विजय किशोर गोस्वामी द्वारा दायर की गई थी। याचिका में मंदिरों द्वारा वसूले जाने वाले अतिरिक्त शुल्क के बदले ‘वीआईपी दर्शन’ कराने की प्रथा को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया कि जो श्रद्धालु 400 से 500 रुपये का अतिरिक्त शुल्क नहीं दे सकते, उनके साथ भेदभाव होता है। इससे आम श्रद्धालुओं, महिलाओं, विशेष रूप से दिव्यांग लोगों और वरिष्ठ नागरिकों को घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है, जबकि पैसा देने वाले कुछ ही मिनटों में दर्शन कर लेते हैं।

12 ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठों में भी लागू है VIP व्यवस्था

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में बताया कि देश के 12 ज्योतिर्लिंग और कई प्रमुख शक्तिपीठों में यह वीआईपी दर्शन व्यवस्था लागू है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में लगभग 60 प्रतिशत पर्यटन धार्मिक है और वीआईपी दर्शन जैसी व्यवस्थाएं कई बार भगदड़ की बड़ी वजह बनती हैं।

यह तर्क केवल संवैधानिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक और सुरक्षा से जुड़ा भी है। भारी भीड़ वाले मंदिरों में अलग-अलग लाइनें, विशेष प्रवेश और भुगतान आधारित दर्शन व्यवस्था कई बार अव्यवस्था और हादसों को जन्म देती है।

जमीनी हकीकत: हर मंदिर में दिखता है भेदभाव

वीआईपी दर्शन की समस्या केवल एक या दो मंदिरों तक सीमित नहीं है। देशभर में श्रद्धालु इस भेदभाव का सामना करते रहे हैं। कोलकाता के कालिका मंदिर से लेकर द्वारिका, अंबाजी, उज्जैन और ओंकारेश्वर तक, हर जगह पैसे के बदले आसान दर्शन की कहानी सामने आती रही है।

उज्जैन में गर्भगृह तक पहुंचने के लिए पंडित को रकम देना आम बात मानी जाती है। ओंकारेश्वर में भी अलग लाइन से पूजा कराई जाती है। मथुरा के बांके बिहारी मंदिर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह व्यवस्था रुकी, अन्यथा वहां भी यही स्थिति थी। यह उदाहरण बताते हैं कि आस्था के स्थानों पर भी आर्थिक हैसियत के आधार पर भेदभाव होता रहा है।

VIP Darshan Ban की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा संकेत

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सीधा आदेश न दिया हो, लेकिन उसने यह साफ कर दिया है कि वीआईपी दर्शन की व्यवस्था न तो आदर्श है और न ही संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप। अदालत ने इस मुद्दे को केंद्र सरकार के विवेक पर छोड़कर एक तरह से नीति निर्माण का रास्ता खोल दिया है।

अब जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है कि वह देशभर के मंदिरों में आम श्रद्धालुओं के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए ठोस निर्णय ले।

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अयोध्या राम मंदिर मॉडल: बिना भेदभाव, सहज दर्शन

अयोध्या के श्रीराम मंदिर का उदाहरण इस दिशा में आदर्श माना जा सकता है। वहां बिना किसी वीआईपी-वीवीआईपी भेदभाव के श्रद्धालु 25 से 30 मिनट में सहज दर्शन कर पा रहे हैं। न अतिरिक्त शुल्क, न अलग लाइन—सिर्फ आस्था और व्यवस्था।

अगर यही मॉडल देश के अन्य प्रमुख मंदिरों में अपनाया जाए, तो न केवल भेदभाव खत्म होगा, बल्कि धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं का भरोसा भी मजबूत होगा।

VIP Darshan Ban: आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट की यह “गूंज” अब केंद्र सरकार को विवश कर सकती है कि वह मंदिरों में पैसे लेकर कराए जाने वाले वीआईपी दर्शन की व्यवस्था पर रोक लगाए। यह फैसला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और संवैधानिक मूल्यों से भी जुड़ा है।

अब देखना होगा कि सरकार इस संकेत को कितनी गंभीरता से लेती है और क्या देशभर के मंदिरों में आम श्रद्धालु को भी वही सम्मान और सुविधा मिल पाएगी, जो आज वीआईपी को मिलती है।

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