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समस्तीपुर: जिले के पतैली दुर्गा स्थान मंदिर का प्रतिमा रविवार सुबह परंपराओं के अनुसार कंधे पर उठाकर माता की प्रतिमा का विसर्जन किया गया। विसर्जन जुलूस में पतैली के अलावा आसपास के गांव के लोगों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। यहां वर्षों से परंपरा चली आ रही है की माता की प्रतिमा का विसर्जन से पूर्व लोग करीब 1 किलोमीटर जुलूस निकालते हैं। माता को अपने कंधे बैठाकर जमुआरी नदी के तट तक जाते हैं।

इस साल भी मां दुर्गा को भव्य तरीके से अंतिम विदाई दी गई। माता के जयकार के बाद मंदिर से उनकी प्रतिमा को बाहर निकाला गया। इसके बाद सभी ने माता की प्रतिमा को अपने कंधे पर उठाकर नदी की ओर ले गए। यहां मंदिर के आगे खाली जगह में माता की प्रतिमा को लेकर गोल-गोल चक्कर लगाए।

देखने के लिए क्षेत्र से लोग बड़ी संख्या में पहुंचे। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि नवरात्रि के दौरान अगर माता का किसी कारण से यहां दर्शन नहीं हो पाया तो इस परिक्रमा को देखने मात्र से उनके सभी क्लेश दूर हो जाते हैं और उनकी विपत्ति अटल जाती है। जिस कारण दूर-दूर से लोग माता के परिक्रमा को देखने के लिए पहुंचते हैं।
एक किलोमीटर की यह दूरी तय करने में लोगों को दो घंटे से अधिक का समय लगा।

बताया जाता है कि गांव के स्व. बतास साह ने कामर कामाख्या से माता को यहां लाकर करीब 500 वर्ष पहले स्थापित किया था। उन्होंने एक साथ मां दुर्गा व मां काली को गांव में मिट्टी का मंदिर बना स्थापित किया। आज इनके खानदान के ही विशुन साह, त्रिवेणी साह, मदन साह, शिबू साह, हरि साह, निर्मल साह आदि लोग मंदिर की देखभाल व नियमित रूप से पूजा करते हैं।

निर्मल साह ने बताया कि स्थानीय लोगों की मदद से 20 वर्ष पहले पक्का मंदिर का निर्माण हुआ।
मान्यता है कि माता के दरबार में आए लोग कभी खाली हाथ नहीं लौटते हैं।

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