अशोक भाटिया (वरिष्ठ स्तंभकार और समीक्षक)
चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े के संकेत दिए हैं। उनकी पार्टी की प्रदेश समिति ने एक प्रस्ताव पास कर उनसे विधानसभा का चुनाव लड़ने का आग्रह किया था। चिराग पासवान ने कहा है कि पार्टी की तरफ से मेरे विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव आया है। इस पर अभी और विस्तार से चर्चा होगी। पार्टी ने प्रस्ताव दिया है कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ूं। चिराग पासवान राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष हैं और बिहार के हाजीपुर से संसद हैं। फिलहाल केंद्र में मंत्री है। वे कहते हैं कि जिस सोच के साथ राजनीति में आया हूं, वह यह है कि मेरा राज्य बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में आए। तीसरी बार सांसद बनकर मुझे समझ आया कि दिल्ली में रहकर बिहार के लिए काम करना संभव नहीं होगा। चिराग ने कहा कि मेरा अपना एक विजन भी है ‘बिहार फर्स्ट,बिहारी फर्स्ट’।
केंद्रीय मंत्री रहते हुए अगर वह बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, तो जाहिर है उनका लक्ष्य मंत्री बनना तो नहीं ही होगा। फिर उनका प्लान क्या है? दरअसल, चिराग पासवान जानते हैं कि केंद्रीय राजनीति में भी उनके पैर तब तक ही जमे हैं, जब तक वह बिहार में मजबूत हैं। आखिरकार, उनकी सियासत का बेस तो बिहार ही है। बीजेपी मध्य प्रदेश और राजस्थान से लेकर हरियाणा तक, केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव लड़ाती आई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग की पार्टी शून्य सीट पर सिमट गई थी। खुद मैदान में उतरने के पीछे चिराग की रणनीति यह भी हो सकती है कि शायद इससे एलजेपीआर को कुछ सीटों पर फायदा मिल जाए।
चिराग की रणनीति कुछ सीटें जीतकर अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाने की हो सकती है, खासकर ऐसे माहौल में जब नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति हो। चिराग भी भविष्य के सीएम दावेदारों में गिने जाते हैं, ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ जैसे कैंपेन से अपनी मौजूदगी बनाए रखते हैं। वह बिहार की सियासी पिच खाली नहीं छोड़ना चाहते। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी कम सीटें होने के बावजूद सीएम बन सकते हैं, निर्दलीय मधु कोड़ा झारखंड के सीएम बन सकते हैं, नीतीश कुमार तीसरे नंबर की पार्टी का नेता होने के बावजूद पांच साल सरकार चला सकते हैं, तो सियासत में कुछ भी हो सकता है। चिराग को भी नीतीश के भविष्य पर संशय में अपने लिए उम्मीद दिख रही है।
साल 2005 में दो बार बिहार विधानसभा के चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में त्रिशंकू जनादेश आया था। तब चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में मंत्री थे। केंद्र सरकार में गठबंधन साझीदार होने के बावजूद एलजेपी ने बिहार चुनाव अकेले लड़ा और पार्टी 29 सीटें जीतकर किंगमेकर के तौर पर उभरी। तब आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और 92 सीटों के साथ एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन। कांग्रेस के 10, सपा के चार, एनसीपी के तीन और लेफ्ट के 11 विधायक थे। आरजेडी को कांग्रेस और इन छोटी पार्टियों के साथ ही केंद्र में गठबंधन सहयोगी एलजेपी के समर्थन से सरकार बना लेने का विश्वास था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
सत्ता की चाबी लेकर घूम रहे रामविलास पासवान ने तब मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग कर पेच फंसा दिया। उसी साल अक्टूबर में दोबार चुनाव हुए। 2005 के दूसरे चुनाव में एलजेपी की सत्ता की चाबी खो गई और एनडीए ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। इन चुनावों में क्या चिराग भी अपनी पार्टी के लिए सत्ता की चाबी खोज रहे हैं?
चिराग ने यह भी कहा कि उनके चुनाव लड़ने से बिहार में एनडीए को फायदा हो सकता है। यह फैसला सिर्फ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का नहीं है, बल्कि पार्टी और एनडीए गठबंधन की रणनीति का हिस्सा है। यह माना जा रहा है कि उनका अगला कदम मुख्यमंत्री पद की दावेदारी होगा? इसका जवाब तो आगे मिलेगा। लेकिन चिराग पासवान के इस दांव ने बिहार में सियासी सरगर्मी जरूर बढ़ा दी है। एलजेपी के सांसद और प्रदेश प्रभारी अरुण भारती ने अपने नेता का समर्थन करते हुए बिहार में चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत किया है।उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि चिराग हमेशा कहते हैं कि उनकी राजनीति बिहार केंद्रित है और उनका विजन ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ एक विकसित और आत्मनिर्भर बिहार का संकल्प है। यह तभी संभव है जब वे खुद बिहार में रहकर नेतृत्व करें। जब मैं प्रदेश प्रभारी के रूप में गांव-गांव गया, हर जगह लोगों की एक ही मांग थी कि चिराग को अब बिहार में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए।
एनडीए के घातक दलों ने भी चिराग के फैसले का समर्थन किया है। चिराग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री पद की दावेदारी नहीं करेंगे। नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहेंगे। पार्टी इस बाबत सर्वेक्षण करा रही है कि उनके चुनाव लड़ने से दल और एनडीए को कितना फायदा होगा। बहरहाल, चिराग अगर चुनाव लड़ते हैं तो इससे निश्चित तौर पर एनडीए को फायदा होगा। अलबत्त्ता महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की निगाहें दलित वोटरों पर लगी हुई हैं।
चिराग के मन में क्या है ?
