मौजूदा भारत और इंग्लैंड के बीच चल रही पांच टेस्ट मैचों की सीरीज में बिहार के दो नव युवा खिलाड़ी –आकाशदीप और मुकेश कुमार ने शानदार प्रदर्शन करके अपनी प्रतिभा से क्रिकेट प्रेमियों का दिल जीत लिया। पर यह बिहार का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि दोनों खिलाड़ी बिहार की टीम से नहीं खेलते। यह दोनों खेलते हैं बंगाल की टीम से रणजी ट्रॉफी में। इसकी वजह यह है कि बिहार में क्रिकेट मैनेजमेंट तार-तार हो चुका है। आकाशदीप का संबंध बिहार के रोहतास जिले से है। आकाशदीप ने रांची टेस्ट मैच में अपनी सधी हुई गेंदबाजी की बदौलत इंग्लैंड टीम के तीन खिलाड़ियों को आउट करके सनसनी मचा दी थी। उनके दादा निशान सिंह स्वाधीनता सेनानी थे। अब आकाशदीप 7 मार्च से शुरू होने वाले पांचवें और आखिरी टेस्ट मैच के लिए हिमाचल प्रदेश जाएंगे और भारतीय क्रिकेट टेस्ट टीम का हिस्सा बनेंगे। उनकी तरह ही मुकेश कुमार भी हैं। बिहार के गोपालगंज जिले में स्थित काकड़कुंड गांव के रहने वाले मुकेश कुमार का चयन टीम इंडिया में वेस्टइंडीज टूर के लिए किया गया था। मुकेश कुमार भी तेज गेंदबाज हैं। मुकेश आईपीएल में भी धमाकेदार प्रदर्शन कर चुके हैं। वह आईपीएल में दिल्ली कैपिटल्स टीम का हिस्सा थे। मुकेश कुमार दाहिने हाथ के तेज गेंदबाज हैं। इसके साथ ही, वह बायें हाथ के बल्लेबाज भी है। इस तरह दोनों ही खिलाड़ी भोजपुरिया हैं I मुकेश के पिता कोलकाता में टैक्सी चलाते थे। साल 2019 में उनकी मृत्यु हो गई थी। तब मुकेश ने बंगाल में ही खेलते-खेलते कई लोगों से संपर्क बनाया और अपने मेहनत के बल पर नई पहचान बनाई।
अफसोस कि बिहार में क्रिकेट का मैनेजमेंट बहुत बुरी स्थिति में है। इसलिए बिहार के प्रतिभाशली खिलाड़ी अन्य टीमों का रुख करते हैं। पिछले महीने पटना में बिहार और मुंबई की टीमों के बीच रणजी ट्रॉफी का मैच हुआ तो बिहार की दो टीमें मैदान में आ गईं। पटना के मोइनुल हक स्टेडियम में खेले गए रणजी ट्रॉफी के एलिट ग्रुप बी मुकाबले में मुंबई की टीम ने बिहार को एक पारी और 51 रन से हराया। पर यह खबर नहीं थी। खबर यह थी कि मुंबई की टीम जिस स्टेडियम में मैच खेल रही थी उसकी हालत बेहद खराब थी। वहां पर दर्शकों के लिए बैठने तक की जगह नहीं थी। मैच को देखने के लिए रोज हजारों दर्शकों को भारी कठिनाई में मैच देखना पड़ा। जब देश में एक से बढ़कर एक बहुत सारे स्टेडियम बन चुके हैं, तब सारे बिहार में एक भी कायदे का स्टेडियम नहीं है। यह कोई बहुत अच्छी बात नहीं मानी जा सकती।
इस बीच, ईशान किशन तो बीते कई सालों से भारतीय टीम में हैं। लेकिन वे भी झारखंड के लिए खेलतें है। उन्हें 2016 में अंडर 19 क्रिकेट विश्व कप के लिए भारत की टीम का कप्तान बनाया गया था। ईशान 2018 से इंडियन प्रीमियर लीग में मुंबई इंडियंस की टीम का हिस्सा हैं। ईशान का जन्म बिहार के नवादा जिला में हुआ था। उनके जन्म के बाद उनका परिवार पटना शिफ्ट हो गया था। उन्हें भी झारखंड शिफ्ट होना पड़ा क्यों बिहार में क्रिकेट का कोई इंफ्रास्टक्चर नहीं है। क्रिकेट प्रेमियों को याद होगा कि संयुक्त बिहार के दौर में दिल्ली की टीम के कई बड़े खिलाड़ी बिहार से खेलने के लिए दिल्ली को छोड़ देते थे। इस लिहाज से रमेश सक्सेना का नाम सबसे पहले जेहन में आता है। उन्होंने एक टेस्ट मैच भी खेला। रमेश सक्सेना ने 1960-61 में अपना पहला प्रथम श्रेणी का मैच खेला था। उन्होंने 1966-67 में दिल्ली को अलविदा कह कर बिहार का रुख कर लिया था। रमेश सक्सेना के अलावा हरि गिडवाणी भी दिल्ली के बाद बिहार चले गए थे। उन्होंने लंबे समय तक बिहार की नुमाइंदगी की। यह दोनों क्लासिक बल्लेबाज थे। हरि गिडवाणी की पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक में मिठाई की एक बहुत मशहूर दुकान भी है।
बिहार को क्रिकेट ही नहीं बल्कि सभी खेलों में अपने जौहर दिखाने होंगे। बिहार सरकार को भी राज्य में खेलों के विकास के लिए इनवेस्ट करना होगा। सारे बिहार के समाज को सोचना होगा कि वे खेलों के संसार में किसी मुकाम पर क्यों नहीं पहुंच सके? आपको सारे बिहार में हॉकी के एक-दो एस्ट्रो टर्फ से ज्यादा हॉकी मैदान नहीं मिलेंगे। राष्ट्रीय नायक दादा ध्यान चंद के देश में इस तरह के राज्य भी हैं जहां पर एस्ट्रो टर्फ के मैदान ना के बराबर ही हैं। सारे बिहार में दो-तीन भी स्वीमिंग पूल मिल जाए तो बड़ी बात होगी। हां, सेना और अर्ध सैनिक बलों के कुछ स्वीमिंग पूल जरूर हैं। पर वे तो सबके लिए नहीं होते। अब बताएं कि बिहार से कैसे खिलाड़ी निकलेंगे। उन्हें न्यूनतम सुविधाएं तो मिलनी ही चाहिए।
बिहार में खेलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने को लेकर कोई बात भी नहीं होती। बिहार को अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से ही कुछ प्रेरणा ले लेनी चाहिए। अब योगी सरकार के काल खंड में उत्तर प्रदेश के खिलाड़ी क्रिकेट और अन्य खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन करने लगे हैं। वहां खेलों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर उचित ध्यान दिया जा रहा है। सफल खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों के साथ-साथ अच्छे तरीके से पुरस्कृत भी किया जा रहा है। पिछले एशियाई में भाग लेने वाली भारत की टोली में उत्तर प्रदेश से 36 खिलाड़ी थे।एशियाई खेलों में उत्तर प्रदेश के एथलीटों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के बाद सभी राज्य के खेलों से जुड़ी एसोसिएशन और कोच कसकर मेहनत करने लगे हैं। राज्य सरकार खेलों को गति देने को लेकर कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस तथ्य से लग सकता है कि अब गांवों के स्कूलों में भी कोचिंग की व्यवस्था शुरू हो गई है। जिन खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पदक जीते थे, उनकी झोलियां भर गईं हैं इनामों से।
बिहार ज्ञान का प्रदेश है। बिहारी सारे देश में अपने ज्ञान से सबको प्रभावित करते हैं। बिहार में पढ़ने-लिखने की बहुत समृद्ध परंपरा है। पर इतना ही काफी नहीं है। बिहार को खेलों में भी लंबी छलांग लगानी होगी। इसके लिए बिहार सरकार और बिहार के समाज को साथ एकजुट होकर प्रयास करने होंगे।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)