कुहासे में फ़र्क जिसने देखा था ! राजीव गाँधी की पुण्यतिथि पर विशेष आलेख

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पद्मसंभव श्रीवास्तव (वरिष्ठ पत्रकार )
अत्यंत कारूणिक और विकट परिस्थितियों में स्व. राजीव गाँधी ने अपनी आदरणीया माँ स्व. इंदिरा गाँधी की नृशंस तरीके से हत्या किए जाने के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में शपथग्रहण कर पदभार ग्रहण किया था। तत्कालीन भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में सक्रिय भूमिका निभा रहे सभी राजनीतिक दल ध्रुवीकरण की ओर अग्रसर होने के लिए तत्पर हो रहे थे और उनके बीच लगातार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी राजनीतिक दांव-पेंच और निजी संपर्कों के सहयोग से डगमगाती नैया को पार लगाने के लिए चिंतित थीं।
उनकी हत्या के बाद ज्येष्ठ पुत्र राजीव गाँधी पश्चिम बंगाल से लौट आए थे और उनके एम्स में पहुँचते ही पारिवारिक सहयोगी माखनलाल फोतेदार, आरके धवन, सीताराम केसरी, हरिकिशन किशनलाल भगत और कांग्रेस पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता मौजूद थे। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह हतप्रभ थे और उनके कानों में बौखलाई हुई भीड़ के नारे सुनाई दे रहे थे। फोन पर संपर्क करना कठिन था, क्योंकि कनेक्शन भंग कर दिया गया था।
माखनलाल फोतेदार और आरके धवन उन्हें लगभग घसीटते हुए बगल वाले कमरे में ले गए और कहा कि फटाफट बिना देर किए शपथग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दें, ताकि दिल्ली समेत देश भर में हिंसा को रोकने के लिए कैबिनेट बैठक में विमर्श कर गृह मंत्रालय द्वारा आधिकारिक घोषणा की जा सके। उधर शव का अंत्यपरीक्षण की औपचारिकता पूरी करने के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी तत्परता से शुरू हो गई थी और राजीव गाँधी को कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह शपथग्रहण की प्रक्रिया पूरी कर ली। उधर दिल्ली की सड़कों और सिखबहुल मोहल्लों में इंदिरा गाँधी के परिवार से घनिष्ठ संबंध को दावा करने वाले नेताओं ने शाम के अँधियारे में शराब की बोतलें थमा कर स्थानीय गुंडों को यह जिम्मेदारी सौंप दिया कि सुबह में कोई नज़र न आए।
सन् 1980 में विमान दुर्घटना में संजय की मृत्यु के बाद, गांधी ने अपनी माँ के कहने पर अनिच्छा से राजनीति में प्रवेश किया। अगले वर्ष उन्होंने अपने भाई की संसदीय सीट अमेठी जीती और भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा के सदस्य बन गए । अपने राजनीतिक प्रशिक्षण के हिस्से के रूप में, राजीव को कांग्रेस पार्टी का महासचिव बनाया गया और 1982 के एशियाई खेलों के आयोजन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई ।
फिर भी राजीव गाँधी कटुता और मक्कारी से पूरित भारतीय राजनीति के परिदृश्य में स्वयं को लेकर समंजित नहीं कर पा रहे थे। अगले कुछ दिनों में उनके नेतृत्व का परीक्षण किया गया क्योंकि संगठित भीड़ ने सिख समुदाय के खिलाफ दंगे किए , जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली में सिख विरोधी नरसंहार हुए। उस दिसंबर में, कांग्रेस पार्टी ने अब तक का सबसे बड़ा लोकसभा बहुमत जीता, 541 में से 414 सीटें जीत कर एक अटूट रिकॉर्ड स्थापित किया।
गांधी का कार्यकाल भोपाल आपदा , बोफोर्स घोटाला और मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम जैसे विवादों में घिरा रहा। 1988 में उन्होंने मालदीव में तख्तापलट को पलट दिया, जिससे पीएलओटीई जैसे उग्रवादी तमिल समूहों को नाराज़गी हुई , हस्तक्षेप किया और फिर 1987 में श्रीलंका में शांति सेना भेजी, जिससे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) के साथ खुला संघर्ष हुआ। 1989 के चुनाव में उनकी पार्टी हार गई।
स्व. राजीव गाँधी की आखिरी सार्वजनिक बैठक 21 मई, 1991 को श्रीपेरंबदूर में हुई थी , जो मद्रास (वर्तमान चेन्नई ) से लगभग 40 किमी (25 मील) दूर एक गाँव है। वहाँ श्रीपेरंबदूर लोकसभा कांग्रेस उम्मीदवार के लिए प्रचार करते समय उनकी हत्या कर दी गई थी। रात 10:10 बजे, एक महिला जिसकी बाद में पहचान 22 वर्षीय कलैवानी राजरत्नम के रूप में हुई, जो लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम की सदस्य थी। सार्वजनिक रूप से गांधी के पास पहुँची और उनका अभिवादन किया। फिर वह उनके पैर छूने के लिए नीचे झुकी और अपने परिधान के नीचे रखी 700 ग्राम (1.5 पाउंड) आरडीएक्स विस्फोटक से लदी एक बेल्ट में विस्फोट कर दिया। उनकी मृत्यु के बाद से 21 मई को भारत में आतंकवाद विरोधी दिवस घोषित किया गया है।
अनेकों विसंगतियों से भरपूर राजीव गाँधी की भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अपने नाना स्व. जवाहरलाल नेहरू और अपनी मां स्व. इंदिरा गाँधी की शैली में भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में जीवंत रहें और यह सामाजिक-राजनीतिक पक्ष का एक स्मरणीय प्रसंग है, जिसे उनके राजनीतिक विचारधारा के विरोधी भी स्वीकार करते हैं।

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