हर साल 25 दिसंबर को पूरी दुनिया क्रिसमस डे के तौर पर मनाती है। 24 दिसंबर की शाम से इस त्योहार का जश्न शुरू हो जाता है। इस बार क्रिसमस डे का सेलिब्रेशन कुछ अलग होगा। कोरोना महामारी के चलते कई देशों में क्रिसमस तक लॉकडाउन लगा दिया गया है। वहीं, सुरक्षा के लिहाज से कई क्रिसमस पार्टी स्पोट पर भी पाबंदी लगा दी गई है। ऐसे में क्रिसमस फेस्टिवल का रंग कुछ अलग देखने को मिलेगा लेकिन दोस्तों और परिवार के साथ क्रिसमस का त्योहार खुशियों भरा ही रहेगा। खासतौर पर बच्चों के मन में क्रिसमस के त्योहार के लिए उमंग होती है, क्योंकि वह यह मानते हैं कि क्रिसमस की रात सांता आएंगे और उनकी सभी विशेज पूरी करेंगे।
क्रिसमस जीसस क्रिस्ट के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। जीसस क्रिस्ट को भगवान का बेटा कहा जाता है। क्रिसमस का नाम भी क्रिस्ट से पड़ा। बाइबल में जीसस की कोई बर्थ डेट नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी 25 दिसंबर को ही हर साल क्रिसमस मनाया जाता है। इस तारीख को लेकर कई बार विवाद भी हुआ। लेकिन 336 ई। पूर्व में रोमन के पहले ईसाई रोमन सम्राट के समय में सबसे पहले क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया गया।
क्रिसमस को खास उसकी परम्पराएं बनाती हैं। इनमें एक संता निकोलस हैं, जिनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद मायरा में हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन यीशू को समर्पित कर दिया। उन्हें लोगों की मदद करना बेहद पसंद था। यही वजह है कि वो यीशू के जन्मदिन के मौके पर रात के अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट दिया करते थे। दरअसल संत निकोलस को सांता क्लॉज माना जाता है, क्योंकि वे रात के वक्त उपहार बांटते थे। उन्होंने पूरे जीवन गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद की थी। विश्वभर के अलग अलग देशों में अपने-अपने तरीके से लोग क्रिसमस का त्यौहार मनाते हैं।
बाइबिल के मुताबिक, येशु के जन्म से पहले ये भविष्यवाणी हो गयी थी कि धरती पर एक ईश्वर का पुत्र जन्म लेगा, जो दुनिया का उद्धार करेगा. यीशू का जन्म एक गौशाला में हुआ था, जिसकी पहली खबर गडरियो को मिली थी और उसी समय एक तारे ने ईश्वर के जन्म की भविष्यवाणी को सत्य किया. 30 वर्ष की आयु तक उन्होंने कई जगहों पर घूमकर लोगों की सेवा की. उनके अदृभुत चमत्कारों हर कोई मुरीद था. यीशू को उनकी मृत्यु का भी पूर्वाभास हो गया था और उन्होंने अपने अनुयायियो को ये सब बात बताई थी. उन्होंने क्रूस पर झूलते हुए भी उनको मारने वाली लोगों के लिए ईश्वर से प्राथना मांगी थी कि प्रभु इन्हें क्षमा कर देना, ये नादान हैं.
क्रिसमस ट्री की शुरुआत उत्तरी यूरोप में कई हजार साल पहले हुई थी. उस वक्त फेयर नाम के एक पेड़ को सजाकर विंटर फेस्टिवल मनाया जाता था. धीरे-धीरे क्रिसमस ट्री का चलन बढ़ने लगा. हर कोई इस मौके पर पेड़ लगाने लगा. एक कहानी और है कि ईसा मसीह के जन्म के वक्त सभी देवताओं ने सदाबहार वृष को सजाया. तभी से इस पेड़ को क्रिसमस ट्री के नाम से जाना जाता है.