गोरख पांडेय की एक बहुचर्चित कविता है। पहले सुन लीजिए फिर बात को आगे बढ़ाते हैं-
राजा बोला रात है,
रानी बोली रात है,
मंत्री बोला रात है,
संतरी बोला रात है,
यह सुबह सुबह की बात है।
कांग्रेस की सियासत में यही हो रहा है। अमेरिकी यात्रा के दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जब आरक्षण और सिखों पर बवाल मचा देने वाले बयान दिए तो भारत में कांग्रेस अपने नेता की बात को आंख मूंद कर सही साबित करने में जुट गई। बड़े-बड़े नेताओं में से किसी ने भी यह जानने या सवाल करने की कोशिश नहीं की कि राहुल बाबा ये किस तरह की बात है? दलीय अनुशासन अपनी जगह है और देश का हित अपनी जगह।
राहुल के समर्थन में स्वर उठे जरूर लेकिन वह खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत पन्नू के थे। दूसरी समर्थक वह अमेरिकी डेमोक्रेटिक सांसद रल्हान उमर थीं, जिनका लक्ष्य ही भारत विरोध रहा है। सवाल यही है कि राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर ऐसा क्या कह दिया कि भारत विरोधी ताकतों को उनके विचारों में अपनी छवि दिखाई देने लगी?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि राहुल ने आखिर ऐसा क्या कह या कर दिया जिससे भारत में बवाल मचा हुआ है। सिखों ने दिल्ली में उनके बंगले पर जंगी प्रदर्शन किया और 1984 के लिए माफी मांगने की मांग करते हुए नारे लगाए। केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह ने आरोप लगाया- नेता प्रतिपक्ष विदेश में संवेदनशील मुद्दों पर ‘खतरनाक विमर्श’ गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसे देशद्रोह कहा।
लगे हाथ राहुल के बयान को समझ लेते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राहुल विदेशी धरती पर भारत के सिखों का मुद्दा उठाते हुए बोले- सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि लड़ाई किस बारे में है। लड़ाई राजनीति के लिए नहीं वल्कि इस बात के लिए लड़ी जा रही है कि एक सिख को भारत में पगड़ी या कड़ा पहनने का अधिकार रहेगा या नहीं? एक सिख के रूप में वे गुरुद्वारा जा सकते हैं या नहीं?
बड़े ही नाटकीय अंदाज और सधे हुए शब्दों में अमेरिका में कहे गए इन वाक्यों ने भारत में हंगामा बरपा दिया। पहले तो यह समझा जा रहा था कि राहुल गांधी के मुंह से अनायास ही ऐसे शब्द निकल गए होंगे। आखिर एक भारतीय नेता अपने देश की ऐसी तस्वीर को कैसे सामने ला सकता है? लेकिन जब उन्होंने स्वयं आरक्षण के मुद्दे पर उनके बयान को लेकर उपजे भ्रम पर सफाई दी और सिखों के बारे में कहे गए अपने बयान को छुआ तक नहीं, तब लगा कि राहुल ने यह बात बहुत सोच समझकर विचार- मंथन के बाद ही कही है।
लेकिन, लगता है खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू को राहुल की बात में बहुत अपनापन नजर आया। पन्नू की प्रतिक्रिया देखिए- ‘राहुल गांधी ने बहुत बोल्ड स्टेटमेंट दिया है। उनका यह बयान सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) की अलग खालिस्तान की मांग को जस्टिफाई करता है। राहुल का बयान न केवल साहसिक है, वल्कि 1947 के बाद से भारत में सिखों पर हो रहे अत्याचार को दर्शाता है।’
जाने- अनजाने दिया गया राहुल का यह बयान भारत विरोधी ताकतों को ही रास आया। भारत में सिख समाज राहुल के कथन से हतप्रभ और आक्रोशित है। फिर भी नेता प्रतिपक्ष को इसमें किसी सिख का साथ दिख रहा हो या दिखा हो तो और बात है। पन्नू को यह बयान इसलिए राहत देने वाला नजर आया क्योंकि वो कई वर्षों से अलग खालिस्तान देश की मांग को लेकर विदेश में प्रोपेगंडा चला रहा है। भारत में तो इस मांग पर वह जनमत संग्रह कराने की कोशिश तक कर चुका है।
अमेरिका में राहुल गांधी के साथ खड़ी दिखाई दी एक और सख्शियत हैं अमेरिकी सांसद रल्हान उमर। वे भारत विरोध का कभी कोई मौका नहीं चूकतीं। दो साल पहले 2022 में वह पीओके का विवादास्पद दौरा कर चुकी हैं। हिंदुत्व को हिंदू फोबिया बताकर भारत विरोधी बयान देना उनकी नीति में शामिल है। वे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोर विरोधी और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की प्रशंसक हैं। कनाडा में खालिस्तान समर्थक आतंकी हरदीप सिंह नजर की हत्या वाले मामले में भी एक्स पर ट्वीट कर उन्होने बाइडेन सरकार से कहा था कि इस मामले की जांच में अमेरिका को कनाडा की मदद करना चाहिए। अमेरिकी दौरे में राहुल के साथ उमर की मुलाकात को लेकर भी सियासत गर्म है।
ऐसी स्थिति में हो सकता है राहुल का यह बयान सियासत चमकाने और सिखों का समर्थन पाने की दिशा में सोचा समझा प्रयास हो। लेकिन भारत में इसकी जिस तरह से सिख समाज में ही तीखी प्रतिक्रिया हुई है उसे देख कर तो यही कहा जा सकता है कि उन्हें इस तरह की बयानबाजी से दूर ही रहना चाहिए था। वैसी स्थिति में जबकि कांग्रेस की सियासी यात्रा पर 1984 का धब्बा लगा हो। अगर यह सियासी दांव है तो यह कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए उल्टे बांस बरेली जैसा ही साबित हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
भारत के दो राज्यों में इस समय चुनाव हैं। इसलिए भी क्या कांग्रेस आक्रामक तेवर अपना कर जनता को आकर्षित करने के प्रयास में है? मोहब्बत की दुकान के नाम पर नफरत की राजनीति से किसका भला हुआ है? यह कांग्रेस के नेतृत्व से पूछने की आवश्यकता उस समय आन पड़ी है जब इसके नेता ही मोदी विरोध की धुन में टकराव को न्यौता देने से भी नहीं हिचक रहे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के चुनावी भाषण का अंश देखिए -यदि लोकसभा चुनाव में 20 और सीटें मिल जातीं तो ये (बीजेपी वाले) जेल में होते। ये इसी लायक हैं। क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि कांग्रेस यदि सत्ता में लौटी तो बदले की राजनीति का दौर शुरू हो जाएगा?
राजनीति में जिस प्रकार से कटुता का समावेश हुआ है, वह देश को किस ओर ले जाएगा? चिंता की बात यह है कि यह टकराव और कड़वाहट चुनाव के समय ज्यादा खुल कर सामने आ जाती है। इन दिनों जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हैं। दोनों राज्यों में कांग्रेस और भाजपा आमने सामने हैं। कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ कांग्रेस का गठजोड़ है। चुनावी मैदान में अलगाववादी ताकतें भी जोर आजमा रही हैं। इसलिए चुनाव के बहाने देश विरोधी हरकतों पर सतर्क नजर रखने की आवश्यकता है।