डूबते दुश्मन के लिए तिनके का सहारा क्यों बन रही कांग्रेस

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महेश खरे (वरिष्ठ पत्रकार )
आतंकवाद और उनके मददगारों को मिट्टी में मिलाने के संकल्प को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सेना को फ्री हैंड मिलने के बाद अब लगता है पाकिस्तान में छुपे आतंकियों व उनके आकाओं की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। भारतीय सेना को अब यह तय करना है कि निर्णायक कार्रवाई का समय और तरीका क्या होगा। युद्ध की आशंका से ही पाकिस्तान के हुक्मरानों की कंपकंपी बढ़ती जा रही है। भारत सरकार जहां पाकिस्तान को घुटनों पर लाने के लिए एक के बाद एक फैसले कर रही है वहीं सियासत भी थमने का नाम नहीं ले रही। कांग्रेस अपने ही सवालों में उलझ कर आलोचना का शिकार बन रही है।
कांग्रेस की सियासी व्याकुलता समझ में आती है। लेकिन युद्ध जैसे हालातों के बीच सरकार अपने पत्ते कैसे सार्वजनिक कर सकती है? सत्तर साल की सियासत में कांग्रेस क्या इतना भी नहीं समझ पाई है। देश को इस समय संयम और एकता की दरकार है। तब कांग्रेस नेताओं के बयान भयभीत दुश्मन के लिए मददगार क्यों बन रहे हैं? जब राहुल-खरगे ने सरकार को पहलगाम के मुद्दे पर पूरा समर्थन दिया है तब उनकी पार्टी के ही जिम्मेदार नेता गैरजिम्मेदाराना बयान कैसे और क्यों दे रहे हैं? सत्ता की लगाम थामने के सपने देखने वाली कांग्रेस अपने ही नेताओं पर लगाम क्यों नहीं लगा पा रही?
सरकार एक्शन मोड में तो आ चुकी है। बस उसे देखने वाली आंखें चाहिए। सिंधु नदी जल समझौता स्थगित करने के बाद भारत सरकार कूटनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान के खिलाफ कड़े फैसले ले रही है। अटारी बॉर्डर बंद हो गया। डाक और पार्सल सेवा और आयात बंद है। पाकिस्तानी जहाजों के लिए पोर्ट पर एंट्री रोक कर भारत ने आतंकवाद को पाल रहे पाकिस्तान की आर्थिक मोर्चे पर घेराबंदी करनी शुरू कर दी है। यही कारण है कि पाकिस्तान की नींद उड़ी हुई है। यहां पीएम मोदी विकास और सृजन के आयोजनों में भाग ले रहे हैं और वहां घबराहट में मदरसों को बंद कर सेना बच्चों को एके 47 चलाने का प्रशिक्षण दे रही है। अनेक इलाके अंधेरे में डूबे गए हैं। युद्धाभ्यास चल रहा है। घबराहट में मिसाइलों के परीक्षण हो रहे हैं। पाकिस्तान का खजाना समय से पहले ही खाली होता जा रहा है। वहां के नेताओं और फौज को ना दिन को चैन है ना रात को आराम। शहबाज और मुनीर 10-12 दिन में ही ‘पानी’ मांगने लगे हैं।
दरअसल दुनिया बदल चुकी है। अब युद्ध हथियारों से कम दिमाग से ज्यादा लड़े जाते हैं। भारत इसी युद्ध शैली और तकनीक का पक्षधर है। जब कूटनीतिक हथियार हो तो बम फोड़ने की क्या जरूरत ? दुश्मन को आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर घेर कर इतना मजबूर कर दिया जाए कि वह त्राहिमाम कर उठे। भारत यही कर रहा है। सेना अपना काम करेगी। सेना की कार्ययोजना को तो सार्वजनिक किया नहीं जा सकता मगर दूसरी ओर भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) से संपर्क करके पाकिस्तान की आर्थिक पाइप लाइन काटने की मुहिम छेड़े हुए है।
जो पाकिस्तान बेचैनी में बम-बम करते हुए सीमा पर गोलियां दागते हुए सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है, वही अब कहने लगा है कि भारत बड़ा देश है। उसे बड़प्पन दिखाना चाहिए। भारत के साथ पाकिस्तान युद्ध नहीं चाहता। सच भी यही है। भारत से पाकिस्तान का कोई मुकाबला है भी नहीं। उसके पास मात्र 35 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा है जबकि भारत के पास 900 बिलियन डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा है।
पानी एक ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से पाकिस्तान अपने ही घर में घिर गया है। सिंधु जल समझौते को स्थगित करने के पत्र से ही पाकिस्तान का गला सूखने लगा है। पहले भारत की ओर से पानी की मात्रा और छोड़ने का समय नियमित रूप से बताया जाता था। अब जब समझौता स्थगित हो गया तो यह जानकारी भी पाकिस्तान को नहीं दी जा रही। हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयरिंग का निलंबन और नदी के पानी के बेतरतीब प्रवाह से पाकिस्तान की सिंचाई व्यवस्था, कृषि और बाढ़ प्रबंधन के तहस नहस होने की नौबत आ गई है। छह नदियां पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इनमें से तीन सिंधु, झेलम और चिनाव भारत के हिस्से में आती हैं। नदियों के पानी पर ही पाकिस्तान की कृषि पैदावार निर्भर है। उसकी डीजीपी में 25 फीसदी हिस्सेदारी कृषि क्षेत्र की है। ‘पानी बंद’ के फैसले से आने वाले समय में वहां का बिजली उत्पादन भी बुरी तरह लड़खड़ा जाएगा। सिंध और पंजाब सूबे के बीच तो पानी को लेकर पहले से ही तलवारें खिंची रहती हैं। अब यह संकट और अधिक बढ़ेगा।
पाकिस्तान वैसे भी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मजबूरियों और जनरल मुनीर की महत्वाकांक्षाओं के दवाब में गृहयुद्ध जैसी स्थिति से उबर नहीं पा रहा। तीन-तीन मोर्चों (खैबर पख़्तूनख्वा, बलूचिस्तान और गिलगित बाल्टिस्तान) पर उसकी सेना विद्रोहियों के दमन में फंसी है। अगर युद्ध हुआ तो उसे चौथा मोर्चा खोलना होगा। पीओके में भी विद्रोह की हलचल शहबाज को परेशान किए हुए है। हाल में बलूचिस्तान से कुछ फौजी अमले को भारतीय सीमा पर शिफ्ट किया गया है। इस कारण शहबाज को भय यह सताने लगा है कि कहीं बलूच विद्रोही इस मौके का फायदा उठाकर अपनी सीमाओं का और विस्तार नहीं कर लें।
पाकिस्तानी वीजा रद्द करने की कार्रवाई ने भी पाकिस्तान की उलझनें बढ़ा दी हैं। जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान गए भारतीयों का वीजा भी रद्द कर दिया गया। 30 अप्रैल गुजर जाने के बाद यहां रह गए पाकिस्तानियों के लिए भारत ने तो नियम शिथिल करके उन्हें जाने की अनुमति दे दी। लेकिन, अपने नागरिकों के लिए देश के दरवाजे ना-नुकर करते हुए खोलने को लेकर भी पाकिस्तान की तीखी आलोचना हो रही है। पाकिस्तानी आवाम भारत के साथ युद्ध मोल लेने के लिए जनरल मुनीर को ही दोषी मान रही है। जबसे यह खबर फैली है कि जनरल मुनीर ने अपने भ्रष्टाचार और गलतियों से ध्यान भटकाने के लिए पहलगाम में कायराना हमले को अंजाम दिया है तब से वहां की जनता में गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
पहलगाम हमले के समय पीएम नरेन्द्र मोदी सउदी अरब में थे। सउदी अरब के साथ भारत के व्यापारिक रिश्ते हैं। पाकिस्तान के साथ भी उसके पुराने रिश्ते हैं। यह देश भी उन देशों में से है जो मुफलिसी से जूझ रहे पाकिस्तान का कटोरा भरता है। सउदी अरब ने भी पाकिस्तान का हाथ झटक कर पहलगाम हमले की निंदा करने में देर नहीं लगाई। शहबाज के मंत्री मुस्लिम ब्रदरहुड का राग अलापते हुए तमाम मुस्लिम देशों से गुहार लगा आए पर शर्मनाक करतूत पर उसे अब तक बांग्लादेश और तुर्की के अलावा किसी अन्य मुस्लिम देश का समर्थन नहीं मिल सका है। यहां तक कि अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत भी भारत के साथ है। मध्यस्थता की इच्छा जाहिर कर चुके ईरान के विदेश मंत्री भारत आ रहे हैं। लेकिन, पहलगाम जैसे कायराना हमले के बाद पाकिस्तान के साथ बातचीत का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।
भारत की कूटनीतिक सूझबूझ के कारण दुनिया में अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान अब बहुत कुछ चीन पर निर्भर है। पहलगाम हमले की निंदा करने वाला चीन पाकिस्तान को सबसे बड़ा हथियार देने वाला देश है। पाकिस्तान को मिलने वाले पांच हथियारों में से चार चीन के ही होते हैं। भारत के राफेल का मुकाबला करने लिए चीन ने पाकिस्तान को 40 वीटी-4 टैंक दिए हैं। इस कारण भारत और पाकिस्तान के बीच यदि युद्ध हुआ तो चीन क्या करेगा यह कुछ-कुछ समझ में आ रहा है। वैसे भी पहलगाम हमले के बाद दोनों देशों को संयम बरतने की सलाह देकर उसने तटस्थता का संदेश तो दे ही दिया है। चीनी सरकार के विदेश मंत्रालय ने कहा है- ‘यह संघर्ष भारत और पाकिस्तान के मौलिक हितों में नहीं है। ना ही यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल है। उम्मीद है दोनों पक्ष संयम बरतेंगे। मिलकर काम करेंगे और स्थिति को शांत करने में मदद करेंगे।’ पहलगाम को घाव देने वाले आतंकियों, उनके संरक्षकों के साथ मिलकर काम करने की सोच भी बेमानी है। इसलिए इंतजार कीजिए जल्दी कुछ बड़ा और अलग सबक आतंकवाद को मिलने वाला है। अब तो राफेल जैसे लड़ाकू विमानों के रात में सुरक्षित उतरने का भी इंतजाम हो गया है।

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