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बिहार विधानसभा में इस बार चार महागठबंधन हैं। इसमें दो गठबंधन पूराने हैं जिन्हें हम और आप एनडीए और महागठबंधन के नाम से जानते हैं। इनके अलावे दो और नए गठबंधन हैं जो चुनावी मैदान में हैं। इनमें से एक है ओवैसी और उपेन्द्र कुशवाहा की गठबंधन तो दूसरी है पप्पू यादव और भीम आर्मी के मुखिया चुद्रशेखर रावण की गठबंधन। पप्पू यादव ने भीम आर्मी के साथ मिलकर प्रगतिशील डेमोक्रेटिस अलायंस बनाया तो उपेन्द्र कुशवाहा ने बसपा और ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट बना लिया है। कुशवाहा और यादव दोनों ही अपने अपने गठबंधन की ओर से सीएम कैंडिडेट हैं।

इन दोनों नए गठबंधनों को लेकर कयास लग रहे थे कि ये दोनों भी साथ आ जाएंगे। दोनों ओर से ऐसे प्रयास भी हुए। लेकिन दोनों के बीच यूपी की राजनीति आड़े आ गई। जिस कारण पप्पू यादव और उपेन्द्र कुशवाहा बिहार में साथ ना मिल सकें। दरअसल पप्पू यादव का अलायंस भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण के साथ हुआ है. जबकि उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी का अलायंस बसपा प्रमुख मयावती के साथ हुआ है। ये दोनों ही यूपी में यूपी के दलित वोटर्स के बीच लोकप्रिय हैं और दोनों अपना दावा करते हैं इस वोट बैंक पर।

दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक मिलन को लेकर कई दौर की बात हुई. लेकिन हर बार नतीजा सिफर निकला। सारी बातें फाइनल हो जाती थी लेकिन जब घटक दलों के सिद्धांत की आती तो बन बिगड़ जाती थी। मायावती और चंद्रशेखर दोनों के बीच मौजूदा दौर में यूपी में छत्तीस का आंकड़ा है। अब चंद्रशेखर की नजर बिहार में बसपा के वोट बैंक पर है। मायावती जो बीते दो दशक से अधिक समय से यूपी के दलित वोट बैंक पर धाक जमाए बैठी हैं उन्हें करीब 1 साल पहले ही राजनीतिक दल बनाकर राजनीति में आए चंद्रशेखर ने यूपी और अब बिहार दोनों जगहों पर चुनौती देना शुरू कर दिया है। चुद्रशेखर के लिए बिहार का चुनाव 2022 के यूपी के संग्राम से पहले का लिटमस टेस्ट है।

इन दोनों यूपी की पार्टियों के बीच की प्रतिद्वंद्विता ही रालोसपा और जाप की अगुवाई वाले दोनों गठबंधन की दोस्ती नहीं होने दे रही। सूत्रों की माने तो बसपा किसी भी सूरत में ऐसे किसी गठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार नहीं है, जिससे चंद्रशेखर का जुड़ाव हो। उधर, चंद्रशेखर भी बसपा सुप्रीमो मायावती को घेरने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते।

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