क्या विश्व की तबाही का कारण बनेगा ईरान इजरायल युद्ध?

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गणेश दत्त पाठक (वरिष्ठ स्तंभकार)
एक और युद्ध प्रारंभ हो ही गया। इजरायल और ईरान युद्ध के बाद अब विश्व युद्ध की आशंका उत्पन्न होती जा रही है। इस युद्ध ने विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की लाचारी को भी सामने ला दिया है। बड़ी आशंका यह है कि इस युद्ध के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था को खासा नुकसान पहुंच सकता है। भारत के संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि यहां बिहार केरल आदि राज्यों के लाखों कामगार खाड़ी देशों में कार्यरत हैं, जिनकी सुरक्षा को लेकर भी आशंकाएं उत्पन्न हो रही है। विश्व स्तर की जो कूटनीति अभी देखने को मिल रही है उसमें कहीं भी शांति के प्रयासों पर कोई अमल होता नहीं दिख रहा बस हो यह रहा है कि युद्ध की आग को और भड़काने के ही प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में विश्व शांति के लिए अपने कूटनीतिक प्रयासों के साथ भारत को आगे आना चाहिए।
ईरान और इजरायल के बीच जारी युद्ध में अब तक 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई घायल हुए। इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया है जबकि ईरान ने पलटवार करते हुए इजराइल पर मिसाइल दागे हैं। इस युद्ध में अमेरिका इजराइल का जहां समर्थन कर रहा है वहीं चीन और रूस ईरान के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। अमेरिका ने इजराइल को सैन्य सहायता भी प्रदान की है। जबकि रूस ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंका भी जगा दी। चीन ने भी इजराइल को चेतावनी दी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह युद्ध लंबा खींचता है तो इसके परिणामस्वरुप विश्व युद्ध की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
ईरान और इजरायल के बीच तनाव कई वर्षों से जारी है लेकिन हाल ही में यह तनाव युद्ध में बदल गया है। इजराइल को ईरान का परमाणु कार्यक्रम अपनी सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा लगता है। इजराइल का मानना है कि ईरान परमाणु बम बनाने की दिशा में काम कर रहा है जबकि ईरान कहता है कि उसका नाभिकीय कार्यक्रम शांतिपूर्ण है। इजराइल नहीं चाहता है कि उसके दुश्मन देश के पास परमाणु बम हो। साथ ही ईरान पर आरोप है कि वह ऐसे कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों का सपोर्ट करता है, जो इजरायल के खिलाफ काम करते हैं। इसमें हमास, हिज्बुल्लाह इस्लामी जिहाद मूवमेंट आदि शामिल हैं। ईरान और इजरायल के बीच दोस्ती कभी थी लेकिन 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ती चली गई।
इतना जरूर है कि इस युद्ध के कारण पूरे विश्व पर नकारात्मक असर पड़ेंगे। ईरान और इजरायल के बीच युद्ध से कच्चे तेल की कीमत बढ़ सकती है। जिससे भारत के अर्थव्यवस्था पर भी बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा भारत अपनी जरूरत का 85% क्रूड आयात करता है। इससे कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई बढ़ सकती है। इजरायल ईरान तनाव के कारण शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आ सकता है। सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट आ सकती है जिससे पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। युद्ध की स्थिति में डॉलर की मांग बढ़ सकती है जिससे रुपए की कीमत भी गिर सकती है। ईरान और खाड़ी देशों के एयर स्पेस बंद होने से भारत से पश्चिमी देशों की यात्रा के लिए विमान को लंबा रास्ता तय करना पड़ सकता है। क्रूड की कीमत बढ़ने से आयात भी बढ़ सकता है जिससे व्यापार घाटा बढ़ सकता है। युद्ध की स्थिति में स्वेज नहर और अन्य महत्वपूर्ण जलमार्गों पर भी खतरा बढ़ सकता है। जिससे निर्यात प्रभावित हो सकता है या उसकी लागत भी बढ़ सकती है।
ईरान के चाबहार पोर्ट का निर्माण भारत की कूटनीतिक जरूरत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन इस युद्ध कारण इस परियोजना पर भी संकट आ सकता है। एक और मानवीय संकट उत्पन्न हो सकता है जो कि भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत के तकरीबन एक करोड़ लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। जब ईरान और इजराइल में युद्ध होगा और अन्य देश भी अगर इसमें शामिल हो जाते हैं तो खाड़ी देश में काम करने वाले भारतीयों की सुरक्षा को लेकर बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है। भारत सरकार ने स्थिति पर नजर रखा हुआ है आवश्यक कदम उठाने के लिए भी तैयार है लेकिन भारत अपनी जो अवधारणा रही है वसुधैव कुटुंबकम् उसके अनुसार शांति और कूटनीति के माध्यम से तनाव कम करने का आह्वान कर रहा है और प्रयास भी कर रहा है। ईरान और इजरायल के बीच युद्ध को समाप्त करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता है और तनाव कम करने के लिए विश्व स्तर पर यह कूटनीतिक प्रयास ही सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय समर्थन और आधिकारिक समाधान की आवश्यकता है दोनों पक्षों को अपनी मतभेदों को दूर करने और शांति दिशा में काम करने के लिए भी तैयार होना होगा।
लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हाल के दिनों में यह देखा जा रहा है कि हमारी जो विश्व संस्था है संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यक्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि अभी हाल ही में देखें यूक्रेन रूस युद्ध को रोकने में इस संस्था की कोई भूमिका नहीं रही। भारत-पाकिस्तान के भी बीच युद्ध की नौबत आने पर भी विश्व संस्था बिल्कुल कुछ नहीं कर पाई। यहां अभी इजराइल और ईरान के युद्ध में भी विश्व संस्था कुछ करती नहीं नजर आ रही है। अब बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर में यह विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ आजकल ऐसा क्यों हो गया है कि वह कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पा रही है तो इसके लिए हमें यह जानना होगा कि संयुक्त राष्ट्रसंघ का मुख्य दायित्व विश्व में शांति को कायम रखना ही है। लेकिन हाल के दिनों में यह देखा गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य जिसमें अमेरिका,रूस,चीन, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल है के पास वीटो पावर है। जिससे यह कोई संस्थागत निर्णय देता भी है तो उसको वह रोक लेते हैं। यह भी देखा जा रहा है कि कई देश अपनी संप्रभुता की रक्षा के नाम पर संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णय का पालन के प्रति बेहद उदासीन रहते हैं और आदेशों के बीच आपसी हितों का टकराव युद्ध को रोकने में मुश्किलें पैदा करता रहा है। साथ में यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र के पास अपने निर्णयों का पालन कराने के लिए पर्याप्त संसाधन और शक्ति नहीं है। आवश्यकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार कर इसकी प्रभावशीलता को बढ़ावा दिया जाए। शांति स्थापना के प्रयास से युद्ध को रोकने में मदद मिल सकती है। लेकिन फिलहाल सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि इजराइल और ईरान के युद्ध को रोकने के लिए विश्व स्तर पर संजीदगी भरे प्रयास हो।
दोनों पक्षों के बीच वार्ता और संवाद को बढ़ावा देना जरूरी है ताकि उनके बीच मतभेदों को दूर किया सके। विश्व शक्तियों को अपने निजी हितों के स्थान पर विश्व शांति की स्थापना के लिए आगे कदम बढ़ाना चाहिए। ना कि युद्ध के लिए और उकसाना चाहिए। दोनों पक्ष अपने सैनिक गतिविधियों को कम करें। सबसे बड़ी बात यह है कि ईरान और इजरायल के बीच शांति कायम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दोनों पक्षों पर दवाब बनाना चाहिए कि वह वार्ता के लिए तैयार हो और तनाव कम करें। संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन या उन अंतरराष्ट्रीय शांति योजना में मदद मिल सकती है लेकिन यह सब तात्कालिक उपाय है। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों पक्षों के बीच मूल समस्या का समाधान करना बहुत जरूरी है जैसे कि क्षेत्रीय सुरक्षा संबंध चिंताएं और इतिहास। इसके लिए एक दीर्घकालिक कूटनीतिक योजना पर काम करना चाहिए जो कि विश्व संस्था संघ के नेतृत्व में किया जा सकता है। दोनों पक्षों के लोगों को शांति और संस्था के महत्व को समझना चाहिए और इस युद्ध को समाप्त करने के लिए हर स्तर पर गंभीर प्रयास आवश्यक है।
भारत के लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण है क्योंकि भारत के इजराइल और ईरान दोनों से ही बेहद अच्छे संबंध रहे हैं। पारंपरिक तौर पर एक मजबूत रिश्ता रहा है। दोनों देशों से भारत के आर्थिक तालुकात भी रहे हैं। इस स्थिति में यह भी देखना होगा कि भारत के कामगार बड़ी संख्या में खाड़ी देशों में रहते हैं। उनकी सुरक्षा भी भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती है । साथ ही युद्ध के कारण जो समस्याएं बढ़ेगी। उसके कारण भारत के लिए कच्चे तेलों के आयात में काफी ज्यादा संख्या में विदेशी मुद्रा को व्यय करना पड़ेगा। इससे पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ेगा। महंगाई बढ़ने से आम गरीब लोग की भी चुनौतियां बढ़ेगी। हवाई सफर भी महंगा होगा। आयात निर्यात पर भी असर पड़ेगा। भारत विश्व शांति के लिए अपने कूटनीतिक प्रयासों के साथ आगे बढ़े। आज भारत की विश्व में एक प्रतिष्ठा है। भारत को अपने कूटनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल विश्व में शांति के लिए करना चाहिए। ईरान इजरायल युद्ध अगर विश्व युद्ध की नौबत तक पहुंचता है तो यह पूरे विश्व के लिए खतरा होगा। आवश्यकता है कि विश्व के तमाम बड़े देश भी इस समस्या के समाधान के लिए आगे आएं।

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