आर.के. सिन्हा
मिर्जा ग़ालिब मीठे आम के लिए जान देते थे। वे अपने दोस्तों-यारों के साथ आम खाना पसंद करते थे। उनकी आम की पार्टियाँ मशहूर हैं I वे वर्ष 1827 में दिल्ली से कोलकाता गए थे। वे दिल्ली से कोलकाता जाते वक्त कानपुर, लखनऊ, बाँदा, इलाहाबाद होते हुए बनारस पहुँचे। वे बनारस में छह महीने ठहरे थे। उन्होंने अपने सफर के दौरान उत्तर प्रदेश के मशहूर दशहरी या लंगड़ा आम का जमकर स्वाद स्वाद चखा । आम की अलग-अलग प्रजातियां सारे देश में मिलेंगी पर उत्तर प्रदेश में मिलने वाले मिश्री जैसे रसीले आमों की बात ही अलग है।
अजीब सा संयोग है कि राज्य में आम की खेती और व्यापार में मुसलमानों की अच्छी-खासी भूमिका है। आपको सारे प्रदेश में आम की खेती करते हुए ज्यादातर मुसलमान ही मिलेंगे। कुछ समय पहले राज्य के कुछ इलाकों में बेमौसमी बारिश तथा ओला वृष्टि से आम किसानों के सामने संकट खड़ा हो गया था। वे बेहद परेशान थे। तब योगी सरकार ने भरोसा दिया था कि हर किसान को हुए नुकसान की उचित भरपाई की जाएगी। उस पर तेजी से अमल हो भी रहा है।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, अमरोहा, बाराबंकी, हरदोई, सीतापुर, अयोध्या, लखनऊ, प्रतापगढ़, वाराणसी वगैरह दशहरी, चौसा, लंगड़ा, रामकेला, रतौल, आम्रपाली और मल्लिका की फसल उगाई जाती है।दरअसल आम के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का देश में पहला स्थान है। इसकी खेती करके किसान बेहतर मुनाफा भी कमा रहे हैं। इस बीच, उन्नाव जिला आम की कई किस्मों के लिए जाना जाता है। राज्य की जलवायु और मिट्टी आम की खेती के लिए बड़ी मुफीद मानी जाती है। इस वजह से सबसे अधिक आम उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। इसी तरह बिहार की राजधानी पटना के आसपास होनेवाले दीघा मालदह का तो जवाब ही नहीं है I मुंह में जाते ही घुल जाता हैI इसके अतिरिक्त भागलपुर का जर्दालू और मोतिहारी का बीजू के आम का भी जवाब नहीं I
पर उत्तर प्रदेश के आम उत्पादकों को चुस्त मार्केटिंग के अभाव में अपनी फसल को देश के विभिन्न भागों में और देश से बाहर भेजने के अबतक कम अवसर मिलते थे। इस कमी को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का आगामी 21 से 25 सितंबर तक नोएडा में आयोजित हो रहा इंटरनेशनल ट्रेड शो अहम होगा। उसमें फलों के राजा आम की विशेष मार्केंटिंग की जाएगी। उत्तर प्रदेश देशभर का करीब 21 प्रतिशत आम का उत्पादन अकेले करता है। योगी सरकार इंटरनेशनल ट्रेड शो के माध्यम से ओडीओपी यानी एक जिला एक उत्पाद को प्रमोट कर रही है। ऐसे में आम के अलग-अलग किस्मों को भी इस शो में प्रमोट करने की तैयारी सरकार ने कर ली है।
उत्तर प्रदेश का आम सारी दुनिया में बिकेगा तो लाभ होगा मुसलमानों को खासतौर पर। दरअसल आम के किसान और उनके यहां काम करने वाले मजदूर सब मुसलमान ही हैं। खेतों में काम करने वाले अधिकतर किसान पसमांदा समुदाय से आने वाले मुस्लिम हैं।लखनऊ की चिकन की कारीगरी, बनारस की गुलाबी मीनाकारी, कन्नौज के इत्र के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आम के बगान अल्पसंख्यक समुदाय की आजीविका का मुख्य साधन हैं। इस ट्रेड शो के माध्यम से योगी सरकार का लक्ष्य एक तरफ आम को प्रमोट करना है तो वहीं, अप्लसंख्यक समुदाय को आर्थिक तौर पर सशक्त करना भी है।
दिल्ली में आयोजित होने वाले वर्ल्ड ट्रेड फेयर में उत्तर प्रदेश को सिर्फ हजार से डेढ हजार हेक्टेयर भूमि में ही अपने उत्पादों की प्रदर्शनी के लिए जगह मिल पाती है। वहीं इंटरनेशनल ट्रेड शो का आयोजन लगभग 50 हजार हेक्टेयर भूमि पर किया जाएगा।
यहां आम और योगी सरकार के बहाने पसमांदा मुसलमानों की हालत पर बात करना जरूरी है। सब जानते हैं कि मुसलमान अशराफ, अजलाफ और अरजाल श्रेणियों में बंटे हैं। शेख, सैयद, मुगल और पठान अशराफ कहे जाते हैं। अशराफ का मतलब है, जो अफगान-अरब मूल के या हिन्दुओं की अगड़ी जातियों से धर्मांतरित मुसलमान हैं। अजलाफ पेशेवर जातियों से धर्मांतरित मुसलमानों का वर्ग है। एक तीसरा वर्ग उन मुसलमानों का है, जिनके साथ शेष मुसलमान भी संबंध नहीं रखते। इन्हें ही पसमांदा मुसलमान कहते हैं। हालांकि इस्लाम में जाति का विचार तो नहीं है। इस्लाम जाति के कोढ को ललकारता भी है। इसके बावजूद सारा मुसलमान समाज जाति के दलदल में फंसा है। मुसलमानों में अलग-अलग जातियों के अपने कब्रिस्तान तक हैं। राजधानी में पंजाबी मुसलमानों के कब्रिस्तान में गैर-पंजाबी मुसलमानों का प्रवेश निषेध है। शिया और सुन्नियों के तो अपने अलग-अलग कब्रिस्तान तो होते ही हैं। अपने को मुसलमानों का रहनुमा कहने वाले मुसलमान नेता पसमांदा मुसलमानों के मसलों को उठाने की जहमत नहीं दिखाते। अब तो उत्तर प्रदेश में कोई चुनाव भी नहीं आ रहे। इसके बावजूद राज्य सरकार का मुसलमानों के हक में आगे आना उन तमाम ज्ञानियों को एक संदेश देता है जो मोदी-योगी की आलोचना का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते। उन्हें अपनी बीमार सोच को बदलना होगा। उन्हें आरोप तथ्यों के आधार पर ही लगाने चाहिए।
एक बार फिर से आम पर लौटते हैं। बात दशहरी की करेंगे। दशहरी आम उत्तर प्रदेश की शान है। यहां हर साल करीब 20 लाख टन दशहरी आम पैदा होता है। कहने वाले कहते हैं कि दशहरी आम का पहला पेड़ लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन से सटे दशहरी गांव में लगाया गया था। इसी गांव के नाम पर इसका नाम दशहरी आम पड़ा। यूं तो उत्तर प्रदेश में 14 इलाकों में आम की खेती खासतौर पर होती है मगर मलिहाबाद इनमें सबसे खास है। मलिहाबाद में 30,000 हेक्टे यर के क्षेत्र में बस आम की खेती के लिए है। यहां का दशहरी, लंगड़ा, चौसा, रटौल वगैरह आम देश से बाहर भी जायें तो उन किसानों और उनके खेतों में दिन-रात काम करने वालों की मेहनत सफल होगी। हालांकि जिनको बेबुनियाद बातें करनी हैं उनकी जुबान पर ताला तो कभी नहीं लग सकता। सीधी सी बात ये है कि देश के सबसे पिछली पंक्ति में खड़े इंसान के चेहरे में मुस्कान आनी चाहिए। अगर आम के बहाने दीन-हीन भी खास हो सकता है तो इससे बेहतर कोई बात नहीं हो सकती।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)