23 मार्च शहीद दिवस के लिए विशेष

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आर.के. सिन्हा

कौन सा हिन्दुस्तानी होगा जिसके मन में शहीद भगत सिंह को लेकर गहरी श्रद्दा का भाव नहीं होगा। होगा भी क्यों नहीं। आखिर वे क्रांतिकारीचिंतक और आदर्शों से लबरेज मनुष्य थे। उनसे अब भी भारत के करोड़ों नौजवान प्रेरणा पाते हैं। पर यह भी जरूरी है कि देश भगत सिंह के करीबी साथियों जैसे चंद्रशेखर आजाद, राजगुरुसुखदेवबटुकेशवर दत्तदुर्गा भाभी वगैरह के बलिदान को भी याद रखा जाए।

राजगुरु का संबंध पुणेमहाराष्ट्र से था। उन्हें भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ 23 मार्च1931 को लाहौर में फांसी पर लटका दिया गया था। वे भगत सिंह और सुखदेव के घनिष्ठ मित्र थे। इस मित्रता को राजगुरु ने मृत्यु पर्यंत निभाया। देश की आजादी के लिए दिये गये राजगुरु के बलिदान ने इनका नाम भारत इतिहास में  अंकित करवा दिया। अगर बात वीर स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव की हो तो वो भी महाराष्ट्र से थे । राजगुरु के पिता का निधन इनके बाल्यकाल में ही हो गया था। इनका पालन-पोषण इनकी माता और बड़े भैया ने किया। राजगुरु बचपन से ही बड़े वीर और मस्तमौला थे। भारत माँ से प्रेम तो बचपन से ही था। वो बचपन से ही वीर शिवाजी और लोकमान्य तिलक के बहुत बड़े भक्त थे। संकट मोल लेने में भी इनका कोई जवाब नहीं था। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से मुलाकात के बाद उनका जीवन पूर्णत: बदल गया। उन्हें जीवन का एक लक्ष्य मिल गया। चंद्रशेखर आज़ाद इस जोशीले नवयुवक से बहुत प्रभावित हुए और बड़े चाव से इन्हें निशानेबाजी की शिक्षा देने लगे। शीघ्र ही राजगुरु भी आज़ाद जैसे एक कुशल निशानेबाज बन गए। राजगुरु का निशाना कभी चूकता नहीं था। चंद्रशेखर की मार्फत राजगुरु भगत सिंह और सुखदेव से मिले। राजगुरु इन दोनों से बड़े प्रभावित हुए। ये तीनों परम मित्र बन गए। इन सब क्रातिकारियों ने लाला लाजपत राय की मृत्यु के जिम्मेदार अंग्रेज़ अफ़सर स्कॉट का वध करने की योजना बनायी। इस काम के लिए राजगुरु और भगत सिंह को चुना गया। राजगुरु तो अंग्रेज़ों को सबक सिखाने का अवसर ढूँढ़ते ही रहते थेअब वह सुअवसर उन्हें मिल गया था। 19 दिसंबर1928 को राजगुरुभगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद ने सुखदेव के कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप सांडर्स नाम के एक अन्य अंग्रेज़ अफ़सरजिसने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय पर ताबड़तोड़ लाठियां चलायी थींका वध कर दिया। अपने काम को पूरा करने के बाद भगत सिंह अंग्रेज़ी साहब बनकर तथा राजगुरु उनके सेवक बनकर पुलिस को चकमा देकर लाहौर से निकल गए थे। उस समय भगत सिंह और राजगुरु के साथ दुर्गा भाभी भी थीं। वो भगत सिंह की पत्नी बनी हुईं थीं। वो भगत सिंह की परम सहयोगी थीं। दुर्गा भाभी का पूरा नाम दुर्गा देवी वोहरा था। वो मशहूर हुईं दुर्गा भाभी के रूप में। दुर्गा भाभी असली जिंदगी में पत्नी थी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपबलिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य भगवती चरण वोहरा की। इसी संगठन के सदस्य भहत सिंह भी थे। वोहरा की बम का टेस्ट करते वक्त विस्फोट में जान चली गई थी। दुर्गा भाभी के अलावा एचएसआरए में सुशीला देवी जैसी कुछ और महिलाएं भी एक्टिव थीं।

 बहरहालभगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी हो जाती है। उनका संगठन बिखर सा गया। उसके बाद दुर्गा भाभी ने 1940 के दशक में लखनऊ के कैंट  में एक बच्चों का स्कूल खोला। उसे वह दशकों तक चलाती रहीं। वो 1970 के दशक तक लखनऊ में ही रहीं। फिर उन्होंने अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ गाजियाबाद में शिफ्ट कर लिया था। उनकी 1999 में उनकी गुमनामी में ही मृत्यु हो गई थी।

इस बीचशहीद भगत सिंह ने 8 अप्रैल1929 को जब केंद्रीय असेंबली (अब संसद भवन) में बम फेंका और पर्चे बांटे तब बटुकेशवर दत्त उनके साथ थे। इसके बाद दोनों ने गिरफ़्तारी दी और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला। बटुकेशवर दत्त को बी.के.दत्त भी कहते हैं। उन्हीं के नाम पर 1950 में साउथ दिल्ली में लोदी क़ॉलोनी के पास बी.के. दत्त कॉलोनी स्थापित हुई। बटुकेश्वर दत्त मूल रूप से एक बंगालीकायस्थ परिवार से थे। उनकी 1924 में कानपुर में भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद उन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जेल में हीउन्होंने 1933 और 1937 में भूख हड़ताल की। उन्हें 1938 में रिहा कर दिए गया। अंडमान द्वीप के काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए। वे 1947 में अंजलि दत्त से विवाह करने के बाद पटना में रहने लगे। उनका 1965 में निधन हो गया था।

इस बीचवरिष्ठ लेखक विवेक शुक्ला ने हाल ही में प्रकाशित अपनी किताब ‘दिल्ली का पहला प्यार- कनॉट प्लेस में  लिखा है कि कनॉट प्लेस से मिलने वाली एक सड़क उस शख्स के नाम पर अब भी आबाद हैजिसके भारत का वायसराय रहते हुए जलियांवाला बाग कांड हुआ था। उस सड़क का नाम है चेम्सफोर्ड रोड। जलियांवाला बाग कांड में हुए खून खराबे का भगत सिंह पर गहरा असर हुआ था। उस कांड ने उन्हें क्रांतिकारी बनाने में अहम रोल निभाया। दरअसल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में आने-जाने वालों के लिए चेम्सफोर्ड रोड बहुत जानी-पहचानी है। वे इस चेम्सफोर्ड रोड के रास्ते भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचते हैं। ब्रिटेन के भारत में वायसराय थे लॉर्ड चेम्सफोर्ड। जब जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ तब वे भारत के वायसराय थे। उन्होंने उस कत्लेआम पर कभी कोई शोक व्यक्त नहीं किया था। ठीक उसी तरह, जैसे कि 1984 में सिक्खों के कत्लेआम की आज तक गाँधी परिवार ने माफ़ी नहीं मांगी। चेम्सफोर्ड 1916 से लेकर 1921 तक भारत के वायसराय रहे। बेशकयह सिर्फ भारत में ही संभव है कि जलियांवाला बाग जैसे दिल दहलाने वाले कत्लेआम के समय भारत में तैनात वायसराय के नाम पर हमारे यहां एक बेहद खास सड़क का नाम हो और एक बड़ा क्लब चेम्सफोर्ड के नाम पर आज भी नई दिल्ली के रेल भवन के सामने चल रहा हो। इस सड़क का नाम दुर्गा भाभी के नाम पर किया जा सकता है। देश की राजधानी में उस महान क्रांतिकारी महिला के नाम पर कुछ भी नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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