- Advertisement -

प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार में ‘जन सुराज’ अभियान के तहत जनता के बीच जा रहे हैं। प्रशांत किशोर बताते हैं कि इस अभियान का उद्देश्य बिहार को विकास के मामलों में देश के अग्रणी राज्यों के साथ खड़ा करना है। इसके लिए बिहार में एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनानी पड़ेगी। इस नई व्यवस्था को बनाने के लिए उन्होंने नारा दिया है – “सही लोग, सही सोच और सामूहिक प्रयास”।

क्या है सही लोग, सही सोच और सामूहिक प्रयास?

प्रशांत किशोर बिहार के अलग अलग जिलों में प्रवास कर रहे हैं और सही लोगों की तलाश कर रहे हैं। उनका मानना है कि सही लोग समाज के बीच में ही रहने वाले लोग हैं, उनको खोजने के लिए समाज को मथना पड़ेगा। इसी से सही लोग निकल कर सामने आएंगे। प्रशांत किशोर अपने संबोधनों में बताते हैं कि सही सोच से मतलब है ‘सुराज’ यानी सुशासन। ऐसा सुराज जो किसी व्यक्ति या दल का न होकर जनता का हो उसी का नाम ‘जन सुराज’ है। सामूहिक प्रयास से आशय है कि एक ऐसे राजनीतिक मंच की परिकल्पना जो लोगों को उनकी क्षमता के अनुसार बिहार को विकसित करने के लिए सामूहिक प्रयास करने का अवसर प्रदान करे और इससे जुड़ने वाले लोग ही यह निर्णय करें कि एक नया राजनीतिक दल बनाया जाए अथवा नहीं।

प्रशांत किशोर ने 5 मई 2022 को पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जानकारी दी थी कि 2 अक्तूबर 2022 से वो बिहार में पदयात्रा करेंगे। यह पदयात्रा लगभग 3000 किलोमीटर लंबी होगी और अनुमान है कि इसे पूरा करने में 12 से 15 महीनों का समय लग सकता है। इस पदयात्रा के माध्यम से प्रशांत किशोर बिहार के समाज और बिहार की समस्याओं को सीधे जनता के बीच जाकर समझना चाहते हैं। उनका मानना है कि अगर समस्याओं को समझना है और उसका समाधान निकालना है तो ये दोनों जनता के पास है। इसके लिए समाज में लोगों के बीच जाना पड़ेगा और उसमें से सही लोगों को एक मंच पर लाना पड़ेगा। पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर बिहार के हर जिले में एक लंबा समय बिताएंगे। वे वहां के सभी लोगों से मिलने का प्रयास करेंगे जो बिहार के विकास लिए सकारात्मक प्रयास करना चाहते हैं।

देश में कई नेता कर चुके हैं लंबी पदयात्राएं

हमारे देश में पदयात्रा का इतिहास काफी पुराना रहा है और नेताओं ने कई बड़ी और ऐतिहासिक पदयात्राएं की हैं। आजादी से पहले महात्मा गांधी ने चांपरण सत्याग्रह के दौरान, दांडी मार्च के दौरान और अन्य कई मौकों और पदयात्राएं की थी। इसका परिणाम भी सकारात्मक निकला था। आजादी के बाद भी देश के कई नेताओं ने पदयात्रा की है। इस सूची में सबसे बड़ा नाम पूर्व प्रधानमंत्री और समाजवादी नेता चंद्रशेखर का आता है। चंद्रशेखर ने साल 1983 में कन्याकुमारी से दिल्ली के राजघाट तक की पैदल यात्रा की थी। इस पदयात्रा को ‘भारत यात्रा’ का नाम दिया गया था। इस दौरान चंद्रशेखर ने 4260 किमी की दूरी पैदल चल कर तय की थी। इस यात्रा के 7 साल बाद 1990 में चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने थे। चर्चित पदयात्राओं की सूची में दूसरा नाम नेता सह अभिनेता सुनील दत्त का आता है। सुनील दत्त ने 1987 में पंजाब में 2000 किमी की लंबी पदयात्रा की थी। उस दौरान पंजाब में चरमपंथी ताकतें मजबूत थी। उन्होंने इस पदयात्रा के माध्यम से लोगों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की थी।

इसके बाद पदयात्राओं की सूची में नाम आता है आंध्र प्रदेश के नेताओं का। इसमें 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी की 1500 किमी लंबी पदयात्रा, 2013 पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की 1700 किमी लंबी पदयात्रा और 2017 से 2019 के बीच वर्तमान मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की 3648 किमी लंबी पदयात्रा शामिल है। इन नेताओं को पदयात्रा का लाभ भी मिला और ये तीनों पदयात्रा के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल कर मुख्यमंत्री बने थे। इसके अलावा एक नाम और है मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का। दिग्विजय सिंह ने 2017 से 2018 के बीच ‘नर्मदा यात्रा’ के नाम से 3300 किमी लंबी पदयात्रा 192 दिनों में पूरी की थी। इसका परिणाम भी 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दिखा। कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापस लौटी। हालांकि पार्टी सत्ता को बहुत दिनों तक संभाल कर नहीं रख पाई और 2 साल के भीतर फिर से भाजपा सरकार वापस आ गई।

बिहार में क्या रहा है पदयात्रा का इतिहास

बिहार में नेताओं के पदयात्रा का कोई बड़ा उदाहरण नहीं मिलता है। सबसे हाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2017 में चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर 7 किमी की एक सांकेतिक पदयात्रा में शामिल हुए थे। इस पदयात्रा में उनके साथ तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी शामिल हुए थे। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि बिहार की राजनीति में किसी नेता ने बड़ी पदयात्रा नहीं की है। पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और लालू यादव जनता के बीच अक्सर पैदल चलते थे। लेकिन उसे एक संरचित पदयात्रा नहीं कहा जा सकता है।
प्रशांत किशोर अगर आपने वक्तव्य के मुताबिक बिहार में 3000 किमी लंबी पदयात्रा पूरी करते हैं तो पदयात्राओं के मामले में बिहार में एक नया कीर्तिमान स्थापित होगा। इस पदयात्रा का बिहार के राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर क्या असर होगा ये तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि इसकी चर्चा बिहार से लेकर दिल्ली तक होगी और सबकी निगाहें प्रशांत किशोर पर होगी।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here