निशा चौहान की कलम से
जब देश के बड़े हिस्से में बरसात की पहली धार पड़ी तो अमृतस्वरूप जल की सबसे पहली मार उन सड़कों पर पड़ी, जिन्हें आधुनिक विकास का पैमाना माना जा रहा था। देश के हर राज्यों में इस दौरान सड़क से गड्ढों को पूरी तरह मिटाने के अभियान चलते हैं जिन पर कई-कई करोड़ खर्च होते हैं लेकिन एक बरसात के बाद ही पुराने गड्ढे नए आकार में सड़क पर बिछे दिखते हैं। राजधानी दिल्ली हो या फिर दूरस्थ गांवों तक, आम आदमी इस बात से सदैव रुष्ट मिलता है कि उसके यहां की सड़क टूटी है, संकरी है, या काम की ही नहीं है। लेकिन समाज कभी नहीं समझता कि सड़कों की दुर्गति करने में उसकी भी भूमिका कम नहीं है। अब देशभर में बाईस लाख करोड़ खर्च कर सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। श्वेत क्रांति व हरित क्रांति के बाद अब देश सड़क-क्रांति की ओर अग्रसर है। इतनी बड़ी राशि खर्च कर तैयार सड़कों का रखरखाव भी महंगा होगा।
सीमा से अधिक गति से वाहन चलाना, क्षमता से अधिक वजन लादना, धीमी गति के लिए प्रतिबंधित मार्ग की परवाह नहीं करना, लेन में चालन नहीं करना, सड़क के दोनों तरफ अतिक्रमण व दुकानें- ऐसे कई मसले हैं जिन पर माकूल कानूनों के प्रति बेपरवाही है। यही सड़क की दुर्गति के कारक भी हैं।सड़कों पर इतना खर्च हो रहा है, इसके बावजूद सड़कों को निरापद रखना मुश्किल है। दिल्ली से मेरठ के सोलह सौ करोड़ के एक्सप्रेस-वे का चौथे साल पहली ही बरसात में जगह-जगह धंस जाना व दिल्ली महानगर के उसके हिस्से में जलभराव बानगी है कि सड़कों के निर्माण में नौसिखियों व ताकतवर नेताओं की मौजूदगी कमजोर सड़क की नींव खोद देती है। अयोध्या हो या गुरुग्राम हर जगह नई बनी सड़कों के धंसने पर सरकार का उपहास उड़ रहा है।
इसी तरह सड़क बनाने से पहले पक्की सड़क के दोनों ओर कच्चे में मजबूत खरंजा तारकोल या सीमेंट को फैलने से रोकता है। इसमें रोड़ी मिल कर खरंजे के दबाव में सांचे सी ढल जाती है। आमतौर पर ऐसे खरंजे कागजों में ही सिमटे होते हैं, कहीं ईंटें बिछाई भी जाती हैं तो उन्हें मुरम या सीमेंट से जोड़ने की जगह महज वहां से खोदी मिट्टी पर टिका दिया जाता है। इससे थोड़ा पानी पड़ने पर ही ईंटें ढीली होकर उखड़ आती हैं। यहां से तारकोल व रोड़ी के फैलाव व फटाव की शुरुआत होती है।
सवाल यह खड़ा होता है कि सड़क-संस्कार सिखाएगा कौन? ये संस्कार सड़क निर्माण में लगे महकमों को भी सीखने होंगे और उसकी योजना बनाने वाले इंजीनियरों को भी। संस्कार से सज्जित होने की जरूरत सड़क पर चलने वालों को भी है और यातायात व्यवस्था को ठीक तरह से चलाने के जिम्मेदार लोगों को भी। वैसे तो यह समाज व सरकार दोनों की साझा जिम्मेदारी है कि सड़क को साफ, सुंदर और सपाट रखा जाए। लेकिन हालात देख कर लगता है कि कड़े कानूनों के बगैर यह संस्कार आने से रहे।