Bangladesh crisis
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Prem kumar mani
Prem Kumar Mani

हमारे पड़ोसी बंगलादेश में राजनीतिक अराजकता इतनी हुई कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को भाग कर भारत आना पड़ा। विद्रोह की खबरों के अनुसार सेना ने राजपाट संभाल लिया है। आंदोलनकारियों ने हसीना के सरकारी आवास पर धावा बोलकर लूटपाट मचाई और सेना देखती रही। हिंसक झड़पों में कोई तीन सौ लोगों के मारे जाने की खबर है।

मतलब साफ़ है बंगला देश में लोकतंत्र एकबार फिर ख़त्म हुआ। कब बहाल होगा कोई नहीं जानता। उस देश पर नजर रखने वाले लोग जानते हैं कि शेख हसीना ने पिछले पंद्रह वर्षों में उस देश को आर्थिक-सामाजिक तौर पर काफी मजबूत किया था। वह समाजवादी रुझान की लोकतंत्रवादी रही हैँ। उनका कट्टरतावादी मुसलमानों से हमेशा विरोध रहा। कट्टरतावादी लोग उनके जानी दुश्मन थे। इन्हीं लोगों ने उनके पिता शेख मुजीब, उनकी माँ और तीन भाइयों का क़त्ल 1975 में एक विद्रोह के तहत किया था।

एक नए देश के रूप में बंगलादेश का जन्म बड़े संघर्ष से हुआ। आज की पीढ़ी पता नहीं उस से कितना अवगत है। नयी पीढ़ी को यह सब जानना चाहिए। 1970 का दौर ख्याल कर सकता हूँ। अपने देश में कांग्रेस के भीतर संग्राम मचा हुआ था। पार्टी दो भागों में बंट गई थी। 1971 के मार्च में भारत में मध्यावधि चुनाव संपन्न हुए और इस में इंदिरा गाँधी संसद में दो तिहाई स्थान ला कर सत्तासीन हुईं। लेकिन भारत से पहले 1970 में पाकिस्तान में चुनाव हुए थे। वहां की कुल 313 सीटों वाली संसद में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी आवामी लीग को 167 सीटें मिलीं थीं. पूर्वी पाकिस्तान ( आज के बंगलादेश ) की कुल 169 में से 167 सीटें। लेकिन याहिया खान और जुल्फिकार अली भुट्टो ने तय कर लिया कि शेख को सत्ता नहीं सौंपनी है। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह शुरू हो गया। इसे पाकिस्तान की फौज ने दुश्मन देश की तरह निर्ममता से कुचलने की कोशिश की।

लाखों बेक़सूर लोगों को पाकिस्तानी फ़ौज ने मार डाला। हजारों स्त्रियों के साथ बर्बरतापूर्वक बलात्कार उसी मुल्क की फ़ौज ने किये। कोई एक करोड़ लोग भाग कर भारत आ गए और शरणार्थी बने। पूरा भारत शेख मुजीब के साथ था। समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने दुनिया भर में घूम कर शेख मुजीब और पूर्वी पाकिस्तान की जनता का पक्ष रखा। पाकिस्तान अपने देश को बताना चाहता था कि शेख के पीछे भारत का समर्थन है और उस ने 3 दिसम्बर 1971 को भारत के पश्चिमी हिस्से पर आक्रमण कर दिया। उसे भरोसा था कि उसके पीछे अमेरिका है। लेकिन इंदिरा गांधी की चतुराई भरी कूटनीति के सामने पाकिस्तान की एक न चली। अमेरिकी फौजी बेड़े की धमकी को अंगूठा दिखाते हुए भारतीय सेना ने बंगला देश को पाकिस्तान से मुक्त करा लिया। ढाका में लगभग एक लाख सशस्त्र पाकिस्तानी फौज ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान बंगलादेश बन गया। भारत के दबाव में शेख मुजीब पाकिस्तान की जेल से रिहा किये गए। वह आज़ाद बंगलादेश के राष्ट्रपति बने।

पूर्वी पाकिस्तान में जमायते-इस्लाम और दूसरे कट्टरवादी मुस्लिम संगठन सीधे तौर पर पश्चिमी पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे। बंगलादेश निर्माण के बाद ये शीत-निष्क्रियता में चले गए। लेकिन 1975 में इन लोगों की एक बार फिर चली। 15 अगस्त को जब भारत आज़ादी का जश्न मना रहा था, शेख मुजीब के घर में सेना की एक टुकड़ी घुसी, उन्हें कब्जे में लिया और पत्नी व तीन पुत्रों सहित मार दिया। बस चार साल में बांग्लादेश फिर खून से रंग गया। तब से उस देश में लोकतंत्र और फौजी शासन का आना-जाना लगा रहता है। इधर पिछले पंद्रह वर्षों में शेख हसीना ने उसे आर्थिक और सामाजिक मामले में आर्डर में लाने की कोशिश की और उन्हें सफलता भी मिली। लेकिन आज उसका भी पटाक्षेप हो गया। एक बार फिर वहां फ़ौजी शासन कायम हो गया है।

भारत पर इसके प्रभाव कई रूप में पड़ेंगे। बंगलादेश और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक का मतलब हिन्दू है। भारत बंटवारे के समय पश्चिमी पाकिस्तान में करीब 14 और पूर्वी पाकिस्तान में 28 फीसद हिन्दू थे। आज पाकिस्तान में लगभग 2 फीसद और बंगलादेश में 8 फीसद हिन्दू हैं। वह भी मुश्किल में हैं। हसीना पर एक आरोप यह भी है कि इन्होने अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए सरकारी सेवा में आरक्षण सुनिश्चित किया है। वहाँ कुल मिला कर 80 फीसद आरक्षण लागू था, जिसमें एक बड़ा हिस्सा 1971 के मुक्ति संग्राम के वारिसों के लिए भी था। साफ़ है कि जमायते-इस्लाम के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। क्योंकि वे तो तब पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे। बंगलादेश में जो अभी राजनीति चल रही है उसके पीछे यही कोटा पॉलिटिक्स है। विद्रोह का रुझान यही स्पष्ट करता है कि कट्टरतावादी इस्लामी ताकतें वहाँ मजबूत हुई हैं। पिछले आम चुनाव के समय से ही यह स्पष्ट हो रहा था।

चिन्ता की बात यह है कि पाकिस्तान और बंगलादेश में कट्टर धार्मिकता का उभार भारत में भी इसे बल देगा। भारत में इसके उभार का मतलब होगा भाजपा का और अधिक उभार या उसकी मजबूती। भारत ने आर्थिक रूप में अपनी स्थिति कई कारणों से थोड़ी मजबूत कर ली है। पाकिस्तान, श्रीलंका में आर्थिक अराजकता की स्थिति है। बंगलादेश में भी अब वही आर्थिक अफरातफरी होगी। नेपाल की स्थिति से सब वाकिफ हैं। जब भारत के चारों तरफ दैन्य होगा तब भारत में सम्पन्नता क्या संभव होगी ? कभी नहीं। इसीलिए बंगलादेश में आज जो हुआ है वह हमारे देश भारत के लिए भी एक सबक होना चाहिए। भारत सरकार को तो नजर रखनी ही चाहिए, हम भारतवासियों को भी चिन्ता करनी चाहिए। पड़ोस में आफत आई हो तो हम चैन से कैसे सो सकते हैं।

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