आर.के. सिन्हा
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पटनाः चीन के हांगझू शहर में हाल ही में समाप्त हुए एशियाई खेलों में भारत के शानदार प्रदर्शन के बीच इस बात को याद रखना होगा कि इन खेलों ने उत्तर प्रदेश (यूपी) को एक शक्तिशाली खेल राज्य के रूप में स्थापित किया है। भारत को 107 में से 55 पदक एकल स्पर्धाओं में मिले और शेष टीम खेलों में। हरियाणा के खिलाड़ी 14 पदक लेकर सबसे आगे रहे। उत्तर प्रदेश के खिलाड़ी 7 पदक लेकर दूसरे स्थान पर रहकर सबको हैरान करने में सफल रहे।

देखिए हरियाणा तो लंबे समय से खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है। पर उत्तर प्रदेश के खिलाड़ियों के उम्दा प्रदर्शन से साफ है कि राज्य में खेलों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर अब तेजी से फोकस किया जा रहा है। सफल खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों के साथ-साथ अच्छे तरीके से पुरस्कृत भी किया जा रहा है। हरियाणा के बाद उत्तर प्रदेश और फिर तेलंगानाकेरलमहाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के हिस्से में 4-4 मेडल आए। पश्चिम बंगालतमिलनाडू और दिल्ली के खिलाड़ी मात्र दो-दो पदक जीत सके। राजस्थानउड़ीसामणिपुरअसमआंध्र प्रदेश और कर्नाटक के खिलाड़ी एकएक ही पदक दिलवा सके। ये सभी पदक एकल स्पर्धाओं में जीते गए।

 भारत की टोली में उत्तर प्रदेश से 36 खिलाड़ी थे। इनमें से छह अकेले मेंरठ जिले से ही थे। उनमें से दो  स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे। बेशक,एशि‍याई खेलों में उत्तर प्रदेश के एथलीटों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। यह पहला मौका था जब उत्तर प्रदेश के खि‍लाड़ियों की झोली में इतने सारे पदक आए हों। उत्तर प्रदेश की खेल राजधानी मेरठ जिले के खि‍लाड़ियों ने सबसे चौंकाने वाला प्रदर्शन किया है। पारुल चौधरी मेरठ जिले की बेटी है। उन्होंने 5000 मीटर और 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीता। मेरठ के बहादुरपुर गांव की रहने वाली अन्नू रानी ने भाला फेंक में गोल्ड जीता। लंबी दूरी की दौड़ और गोला फेंक में क्रमश: कांस्य पदक हासिल करने वाले गुलवीर सिंह और किरण बालियान का भी मेरठ से नाता है। इन सभी ने अपने-अपने शहरों और जिलों में उपलब्ध सुविधाओं के बल पर ही शानदार प्रदर्शन किया। अलीगढ़ के गुलवीर सिंह ने भी कमाल कर दिया। उन्होंने 10 हजार मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता।  

 तो कैसे उत्तर प्रदेश में खेल संस्कृति अचानक विकसित हुईदरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के बाद सभी राज्य के खेलों से जुड़ी एसोसिएशन और कोच कसकर मेहनत करने लगे हैं। इसी कड़ी मेहनत का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश के खिलाड़ी एथलीट दुनिया में नाम कमा रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। राज्य सरकार खेलों को गति देने को लेकर कितनी गंभीर हैइसका अंदाजा इसी तथ्य से लग सकता है कि अब गांवों के स्कूलों में भी कोचिंग की व्यवस्था शुरू हो गई है। जिन खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पदक जीते हैंउनकी झोलियां भरने जा रही है इनामों से। स्वर्णरजत तथा कांस्य पदक विजेता खिलाड़ियों को क्रमशः 3 करोड़ रुपए, 1.5 करोड़ रुपए और 75 लाख रुपए पुरस्कार राशि प्रदान की जायेगी। ओलंपिक खेल में एकल प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने पर 6 करोड़ रुपएरजत पदक में 4 करोड़ रुपए तथा कांस्य पदक में 2 करोड़ रुपए की पुरस्कार राशि प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। टीम प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक पर 3 करोड़ रुपएरजत पदक पर 2 करोड़ रुपएकांस्य पदक पर 1 करोड़ रुपए की पुरस्कार राशि निर्धारित की गई है। राष्ट्रमण्डल खेलों में भी स्वर्णरजत और कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को क्रमशः 1.50 करोड़ रुपए, 75 लाख रुपए और 50 लाख रुपए की पुरस्कार राशि प्रदान किए जाने की व्यवस्था है।

यही नहींउत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश के पहले खेल विश्वविद्यालय का निर्माण   भी मेरठ में करवा रही हैजिसमें अन्तरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की सभी खेल गतिविधियों के प्रशिक्षण की सुविधा होगी।

यहां अब उत्तर प्रदेश के कुछ उन खिलाड़ियों की भी बात करेंगे जो एशियाई खेलों की टीम स्पर्धाओं में पदक जीतने में कामयाब रहे। उदाहारण के रूप में क्रिकेट में रिंकू सिंह (अलीगढ़)महिला क्रिकेट में दीप्ति शर्मा (आगरा)हॉकी में ललित कुमार उपाध्याय (वाराणसी)शूटिंग में अखि‍लेश श्योरन (बागपत)कबड़्डी में अर्जुल देशवाल (मुजफ्फरनगर) आदि शामिल हैं।

दरअसल उत्तर प्रदेश में खेलों के विकास से जुड़े बहुत से जानकारों से बातचीत करने पर यह समझ आया कि राज्य में खेलों की संस्कृति अपने पैर जमा चुकी है। अब अभिभावक भी खुलकर अपने बच्चों को प्रेरित करते हैं कि वे खेलों में अपना करियर बनाएं। वे अपनी बेटियों को खेलों के संसार में सफल होने के लिए भी भेज रहे हैं। अब आप देख लें कि इस बार जिन बेटियों ने पदक जीते हैंउनका संबंध खांटी ग्रामीण पृष्ठभूमि से है। उन्हें उनका अपना परिवार और ग्रामीण समाज खेलों में लंबी छलांग लगाने के अवसर दे रहा है। उनके रास्ते में अवरोध नहीं खड़ा कर रहा है। यह वास्तव में खेलों की प्रगति के लिये बहुत सुखद और सकारात्मक स्थिति है। हालांकिकुछ साल पहले तक यह स्थिति नहीं थी। इसके अलावाअब उत्तर प्रदेश का समाज मात्र क्रिकेट को ही खेल नहीं मानता। अब यहां पर तमाम दूसरे खेलों में भी नौजवान अपने हिस्से का आसमान छूने का ख्बाव देखने लगे हैं। यकीन मानिए कि सरकार के प्रयासों और जिन खिलाड़ियों ने हालिया एशियाई खेलों में अपनी सऱलता के झंडे गाडे हैं उनसे राज्य के हजारों-लाखों नौजवान प्रेरित होकर खेलों की दुनिया में आएंगे।

अंत में एक बात कहने का मन कर रहा है कि राजधानी दिल्ली में अनेक बड़े स्टेडियम होने के बावजूद गिनती के पदक विजेताओं का ही निकलना चिंता का कारण है। इस तरफ सोचने की जरूरत है। इसी तरह से बिहार और झारखंड से सफल खिलाड़ियों का न निकलना निराश करता है। बिहार में उभरती हुई प्रतिभाओं को अधिक सुविधायें देनी होंगी। झारखंड से बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी खास तौर पर निकलते रहे हैं। इन दोनों राज्यों में खेलों की संस्कृति को विकसित करने के लिए ठोस योजनाएं बनानी होंगी। इन्हें उत्तर प्रदेश से सीखना होगा जो देश की खेल राजधानी बनने की तरफ बढ़ रहा है।

(लेखक  वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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