इंडिया गठबंधन का जब गठन हुआ था तब दूसरे दलों ने इसका खूब मजाक उड़ाया था कि यह गठबंधन क्या करेगा ? उत्तरप्रदेश में दो लड़कों की जोड़ी फिर फेल जो जाएगी वगैरह , पर 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन का घोड़ा तेजी से दौड़ रहा है । बीते लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को मिली अच्छी सफलता के बाद दो राज्यों हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में फिर से इस अलायंस की धमक दिखने लगी है। एग्जीट पोल के नतीजों में जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन बहुमत के करीब दिख रही है। वहीं हरियाणा में कांग्रेस पार्टी अपने दम पर बड़ी जीत हासिल करने की ओर है। अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही होते हैं तो राहुल गांधी के लिए इसके गहरे राजनीतिक असर होंगे। राहुल गांधी की बीते दो दशक की राजनीति में यह संभवतः पहली बार होगा जब कांग्रेस पार्टी लगातार किसी बड़ी जीत की ओर बढ़ रही है।
एग्जिट पोल के औसतन नतीजे देखें जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस को 40-48 सीटें मिल सकती हैं। भाजपा को 27 से 32 सीटें मिल सकती हैं। जबकि पीडीपी को 6-12 और अन्य को 6-11 सीटें मिलने की संभावना है। यहां निश्चित तौर पर पीडीपी-कांग्रेस बहुमत के करीब है। अगर वह बहुमत से दूर रहता है तो ऐसा संभव है कि उसे पीडीपी का साथ मिल जाए। दूसरी तरफ भाजपा और अन्य जिसमें बड़ी संख्या में भाजपा समर्थित निर्दलीय हैं, के दम पर 40+ हो रही है। यदि हरियाणा के चुनाव बाद सर्वेक्षण देखें तो वहां की 90 सदस्यीय सीट पर कांग्रेस पार्टी 55 से 62 सीटों पर जीत हासिल करती दिख रही है। उसके लिए यह एक बहुत बड़ी जीत कहलाएगी। इससे निश्चित तौर पर उत्तर भारत में पार्टी को अपने दम पर अपेक्षाकृत एक बड़े राज्य में सत्ता मिलेगी। अभी उत्तर भारत में वह केवल हिमाचल प्रदेश में सत्ता में है। अगर हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह तीन राज्यों में अपने दम पर सरकार में होगी। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है।
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से राहुल गांधी लगातार आक्रामक हैं। वह हरियाणा में मतदान से चंद घंटों पहले वहां के बड़े दलित नेता अशोक तंवर को पार्टी में वापसी करवाते हैं। अशोक तंवर वही नेता हैं जिन्होंने बीते 2019 के विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले अध्यक्ष पद से हटाए जाने के कारण कांग्रेस छोड़ दिया था। वह बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर कुमारी सैलजा के खिलाफ मैदान में थे।
वह राज्य में हुड्डा कैंप और सैलजा कैंप से इतर शुरू से राहुल कैंप के नेता रहे हैं। लेकिन, बतौर आलाकमान राहुल गांधी के कमजोर पड़ने और हुड्डा से मनमुटाव के कारण अशोक तंवर को कांग्रेस छोड़ना पड़ा था। लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद राहुल गांधी 2019 वाले राहुल गांधी नहीं हैं। हुड्डा कैंप की तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी टीम ने हरियाणा के चुनाव में अपनी पकड़ बनाए रखी। दोनों राज्यों के एग्जिट पोल सही साबित होते हैं तो यह भी साबित होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटों में घटौती और इंडिया गठबंधन की सीटों में शानदार बढ़ोतरी कोई तुक्का नहीं था। इससे यह साबित होगा कि राष्ट्रीय के साथ राज्यों के स्तर पर अब एनडीए से जनता का मोहभंग होने लगा है। वह अब विकल्प तलाशने लगी है।
दो राज्यों में कांग्रेस की बढ़त का असर महाराष्ट्र में देखने को मिल सकता है। महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार है। बीते लोकसभा में उसे वहां बुरी हार का सामना करना पड़ा था। इसके आलावा महाराष्ट्र में विपक्षी इंडिया गठबंधन और आक्रामक होगी। महाराष्ट्र में पार्टी के सामने महाविकास अघाड़ी से मजबूती से निपटने की चुनौती है। पार्टी यहां शिवसेना (शिंदे गुट) के साथ सरकार में हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने वाली पार्टी ने एनसीपी से अलग होकर आए शरद पवार के भतीजे अजित पवार को अपने खेमे में कर चुकी है। ऐसे में पार्टी को चुनाव के दौरान उठाए जाने वाले मुद्दे को लेकर सावधानी बरतनी होगी। कहीं ऐसा ना हो कि पार्टी का मुद्दा उसके ऊपर ही भारी पड़ जाए। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म होगा। ऐसे में भाजपा के लिए समय के हिसाब से आगे बढ़ना होगा।दूसरी तरफ लोकसभा की हार के बाद एनडीए के नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह भी कमजोर पड़ेगा।
झारखंड में भाजपा जेएमएम को हटाकर सत्ता में आने के लिए जोर आजमाइश कर रही है । पार्टी ने इस काम के लिए चंपाई सोरेन को अपने साथ मिलाया है। खास बात है कि भाजपा बड़ी संख्या में चुनाव से पहले विरोधी दल के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करती है। इसके अलावा उन्हें टिकट भी देती है। ऐसे में पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ ही वरिष्ठ नेताओं में असंतोष पनपने लगता है। हरियाणा में पार्टी को इस बार टिकट बंटवारों में बड़े पैमाने पर बगावत का सामना करना पड़ा था। ऐसे में पार्टी हरियाणा से सबक लेते हुए झारखंड में भी फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहेगी।देखा जाय तो पार्टी राज्य में सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए कई राज्यों में मुख्यमंत्री का चेहरा ही बदल देती है। हालांकि, इस चुनाव में भाजपा को यह दांव कामयाब होता नहीं दिख रहा है। इसके अलावा पार्टी की तरफ से कई पुराने चेहरों का टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाया जाता है। इस बार पार्टी की यह रणनीति भी बेअसर साबित होती नजर आ रही है।
वर्तमान में दो विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल से इतना तो तय है कि भाजपा को अब अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा। उधर राहुल गाँधी अपनी तेजी से उड़ती पतंग देख अपने सहयोगियों पर ही दबाव बनाने की कोशिश करने लगे है । उत्तरप्रदेश में 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है। इसके लिए कांग्रेस 50-50 सीट शेयरिंग फॉर्मूला चाहती है यानी 5-5 सीटों पर दोनों दल लड़ें लेकिन अखिलेश यादव कांग्रेस को 2 से ज्यादा सीटें देने को तैयार ही नहीं हैं। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ,राहुल गांधी से हरियाणा और जम्मू कश्मीर का बदला लेने की तैयारी कर रहे हैं । समाजवादी पार्टी अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहती है। इसी कोशिश में अखिलेश यादव ने हरियाणा और जम्मू कश्मीर में राहुल गांधी से सीट की मांग की थी। लेकिन राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी हरियाणा और जम्मू कश्मीर में एक भी सीट नहीं दी।
राहुल गांधी से मिला ये धोखा अखिलेश शायद ही भूले होंगे और हो सकता है कि उत्तरप्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेस को सबक सिखाना चाहते हैं। वहीं भाजपा अखिलेश और राहुल की कथित दोस्ती पर कटाक्ष कर रही है। वैसे कांग्रेस ने भी अखिलेश यादव पर दबाव बनाने की रणनीति भी तैयार कर ली है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने उन सभी 10 सीटों पर प्रभारी और पर्यवेक्षकों की तैनाती कर दी है, जहां-जहां उपचुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस ने 10 सीटों के लिए प्रत्याशियों के आवेदन मंगाने भी शुरू कर दिए हैं। इसके जरिए कांग्रेस ने अखिलेश तक ये संदेश पहुंचाने की कोशिश की है कि वो 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है।