डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से लाभान्वित आधी आबादी महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में वोटों से किसकी झोली भरेगी? यह सवाल अब सबसे बड़ा हो गया है। महायुति शासित महाराष्ट्र में 2.33 करोड़ लाड़ली बहिनों के खाते में तीन किस्तें पहुंच गईं। साढ़े चार हजार की रकम से महिलाओं की तो दिवाली मन गई। पोजिटिव फीडबैक पाकर महायुति ने अब इस रकम को 1500 से बढ़ाकर 2100 कर दिया है। लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस नीत महा विकास अघाड़ी ने महिलाओं को हर महीने तीन हजार रुपए देने का वादा किया है। इसका चुनाव में क्या प्रभाव पड़ता है। यह 23 नवंबर को ही पता चलेगा। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि सीधे खाते में रुपए पाकर महिलाओं की बल्ले बल्ले हो गई है।
झारखंड में चुनाव का पहला चरण पूरा हो गया। यहां की 43 सीटें निर्णायक रहती हैं। दावा किया जा रहा है कि पहले फेज में आदिवासी वोट जिसके पक्ष में गए वही गठबंधन सरकार बनाएगा। पिछले चुनाव में जेएमएम और कांग्रेस को बढ़त मिली थी। नतीजतन हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने। इस बार आदिवासियों के साथ महिलाओं का फेक्टर भी काम करेगा। झारखंड में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर वोट किया है। 13 नवंबर को पड़े 91.37 लाख मतों में महिलाओं की हिस्सेदारी 47.20 लाख (69.04 फ़ीसदी) रही। जबकि 44.17 लाख (64.27 फीसदी) पुरुषों ने वोट डाले। महिलाओं के उत्साह के पीछे इंडिया गठबंधन की मैया सम्मान योजना है अथवा एनडीए की गोगो दीदी योजना। यह जानने के लिए नतीजों का इंतजार करना पड़ेगा। मैया सम्मान योजना में महिलाओं को हेमंत सरकार 1000 रुपए देती थी। इसे बढ़ाकर 2500 रुपए कर दिया गया है। एनडीए ने गोगो दीदी योजना के तहत महिलाओं को 2100 रुपए देने की गारंटी दी है। इस बार चुनावी जीत में महिलाओं की भागीदारी काम आएगी।
महाराष्ट्र में कुल 9.4 करोड़ मतदाताओं में 4.66 करोड़ महिलाएं हैं। इनमें से 2.33 करोड़ महिलाएं शिंदे सरकार की लाभार्थी हैं। दावा किया जा रहा है कि राज्य की महिला मतदाता इस बार गेम चेंजर साबित होंगी। कांग्रेस नीत एमवीए ने सरकार बनने के बाद 3000 रुपए देने का वादा किया है। इधर एनसीपी (शरद) के मुखिया शरद पवार ने महिला मुख्यमंत्री का दांव खेल कर महायुति के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। हालांकि मुख्यमंत्री के चेहरे पर महा विकास अघाड़ी में एकराय नहीं बन पाई है। लेकिन महिला सीएम का शिगूफा छोड़कर शरद पवार ने एक तरह से सुप्रिया सुले का नाम आगे कर दिया है। सीएम बनने की रेस में शामिल शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे चाहते थे कि गठबंधन किसी एक चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ें पर ऐसा नहीं हो सका। अब इसकी गुंजाइश इसलिए नहीं है कि सोमवार को चुनाव प्रचार थम जाएगा। 20 नवंबर को महाराष्ट्र की 288 और झारखंड की शेष 38 सीटों पर मतदान होगा। इसी दिन यूपी की 9 सीटों समेत 10 राज्यों की रिक्त विधानसभा सीटों के उपचुनाव होंगे।
कहा जाता है कि विधानसभा चुनाव क्षेत्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। लोकसभा चुनाव की तरह राष्ट्रीय मुद्दे राज्यों के चुनावों में नहीं चलते। लोकसभा और विधानसभा के नतीजों में शायद इसी कारण साम्य भी नहीं होता। लेकिन इस बार महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी मैदान में दृश्य बहुत अलग है। पक्ष विपक्ष के नेता मुफ्त की सौगातों और प्रचार की आक्रामक शैली में सारी शक्ति झौंके हुए हैं। महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसे मुद्दे लगभग गायब हैं। झारखंड में भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठा कर जेएमएम सरकार को घेर रही है। कांग्रेस के प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने 450 रुपए में गैस सिलेंडर बिना भेदभाव के सभी हिंदू, मुस्लिम और घुसपैठियों को भी देने की घोषणा कर भाजपा को आलोचना का मौका दे दिया। मीर कह रहे हैं उनका बयान आधा अधूरा पेश किया गया है। घुसपैठ रोकने का जिम्मा तो केन्द्र सरकार के अधीन आता है।
रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि भारत के छोटे बड़े राज्यों पर औसतन 4 लाख करोड़ से अधिक का कर्जा है। कुछ बड़े राज्य तो लगभग 7 से 8 लाख करोड़ रुपए के कर बोझ में डूबे हुए हैं। चुनाव के दौरान नोट बांटना कानूनन गलत माना जाता है तब चुनाव जीतने के लिए सरकारी खजाने के बूते चुनावी वादे करना कैसे जायज हो सकता है? चुनाव जीतने की धुन में इस प्रश्न की राजनीतिक दल तनिक भी परवाह नहीं कर रहे।
चुनावी मौसम में खुदरा महंगाई दर छह फीसदी का आंकड़ा पार कर गई। आसान शब्दों में कहा जाए तो महंगाई बढ़ी है। जनता से जुड़े इस महत्वपूर्ण प्रश्न से प्रचार अभियान बेखबर सा है। विदेशी निवेश (एफडीआई) की हालत भी उम्मीद पर खरी नहीं उतर पा रही है। शेयर बाजार गोते खाने का रिकॉर्ड बना रहा है। निवेशकों में एक स्वाभाविक घबराहट और चिंता साफ साफ दिख रही है। बाजार की हलचल का असर भी चुनावी चेहरों पर नजर नहीं आ रहा। पहले मिड और स्मॉल कैप के शेयरों में गिरावट देखी जा रही थी, लेकिन अब तो हैवीवेट शेयर यानी लार्ज कैप शेयरों में गिरावट आने लगी है। मार्केट संभलने का नाम नहीं ले रहा। 27 सितंबर को बीएसई मार्केट कैप 477 लाख रुपये था। अब घटकर 432 लाख करोड़ रुपये पर आ चुका है। यानी कि इस अवधि में निवेशकों के 45 लाख करोड़ डूब गए। यह सिलसिला बीते सप्ताह भी जारी रहा।
चुनाव बाद कौन कहां रहेगा यह प्रश्न महाराष्ट्र और झारखंड में अभी से उठने लगा है। इसीलिए पक्ष विपक्ष में अपना घर संभालने की चिंता कम नतीजा आधारित समीकरणों पर ज्यादा विचार विमर्श होने लगा है। दल-बदल की ताप का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि झारखंड में हेमंत सोरेन के प्रस्तावक ही भाजपा में शामिल हो गए। महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति हो या महाविकास आघाड़ी, दोनों के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई के समान हैं। मतदाता सरकार चुनने के साथ ही असली शिवसेना और एनसीपी पर भी अपनी मुहर लगाएंगे। यही कारण है कि चुनाव परिणाम के बाद सत्ता के लिए गठबंधनों का स्वरूप बदलने की अटकलों को विराम नहीं मिल पा रहा। महाराष्ट्र के दोनों गठबंधनों में बेमेल दलों के बीच विचारों की दरार साफ साफ नजर आने लगी है। योगी आदित्यनाथ के बहुचर्चित नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ पर भी नेताओं के विचार बंटे हुए नजर आए।
जीतने और हराने का खेल दोनों राज्यों में समान रूप से चल रहा है। महाराष्ट्र में पहली बार सभी दलों के बागी बड़ी संख्या में नजर आ रहे हैं। भाजपा के 39, शिवसेना (शिंदे) और अजीत गुट के 9-9 बागी मैदान में डटे हैं। इसी तरह कांग्रेस के 21, एनसीपी शरद के 13 और उद्धव गुट 12 बागी चुनावी भाग्य आजमा रहे हैं। एनसीपी के दोनों गुटों के बीच 37 सीटों पर जबकि शिवसेना के दोनों गुटों के बीच 46 सीटों पर सीधा टकराव हो रहा है। इस बार बागियों की सोशल इंजीनियरिंग कुछ अलग है। जैसे भाजपा के 17 बागी शिंदे गुट के प्रत्याशियों के खिलाफ डटे हैं। यही नहीं शिंदे गुट के टिकट पर भाजपा के 12 नेता चुनावी भाग्य आजमा रहे हैं। भाजपा के 9 बागी एनसीपी अजीत के प्रत्याशियों को चुनौती दे रहे हैं। अगर बागी सेना चुनाव में कामयाब हुई तो बागियों को इधर उधर होने में शायद ज्यादा समय नहीं लगेगा।