दक्षिण में चुनावी घाटे को पाटने की कवायद

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महेश खरे (वरिष्ठ पत्रकार )
बीजेपी का दक्षिण मिशन शुरू हो गया है। चुनावी अनुभव ने तमिलनाडु में बीजेपी को गठबंधन की राह दिखाई है। तमिलनाडु की जमीन नया खाद और नया पानी मांग रही है। इसीलिए नए प्रयोग, नए चेहरे और नए साथियों की दिशा में बीजेपी ने कदम बढ़ा दिए हैं। दक्षिण में फिलहाल हिन्दी और हिन्दुत्व के बूते वोट शेयर तो बढ़ सकता है लेकिन सत्ता की सीढ़ियां नहीं चढ़ी जा सकतीं। साथी ऐसा चाहिए जो तमिलनाडु की माटी में रचा बसा हो। पीएम मोदी के चाणक्य अमित शाह ने चेन्नई दौरे में वह साथी चुन लिया है। सीएम एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक को चुनौती अन्नाद्रमुक के कांधे पर दोस्ती का हाथ रख कर दी जाएगी। यह भी संकेत मिलने लगे हैं कि तमिलनाडु में बीजेपी हिन्दुत्व पर जोर कम करते हुए राष्ट्रवादी चिंतन के साथ आगे बढ़ेगी। अन्नाद्रमुक की एनडीए में वापसी को लेकर स्टालिन की चिंता यही है।
बीजेपी अब नई रणनीति के साथ स्टालिन का मुकाबला करेगी। अकेले चलो की नीति से चुनावी कामयाबी में वक्त ज्यादा लगेगा। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी यही कहते दिख रहे हैं। तब बीजेपी ने अकेले लड़ने का फैसला किया था। अन्नाद्रमुक से गठबंधन नहीं करना बीजेपी ही नहीं दोनों के लिए घाटे का सौदा रहा। राज्य की सभी 39 सीटें स्टालिन के नेतृत्व वाले द्रमुक गठबंधन ने जीत लीं। अगर बीजेपी और अन्नाद्रमुक मिलकर लड़ते तो दोनों के खाते में कम से कम 12 सीटों पर जिताऊ प्रदर्शन की संभावना बन सकती थी। वोट शेयर के आंकड़ों पर नजर डालें तो अन्नाद्रमुक को 23 और बीजेपी को 18 फीसदी वोट मिले थे। द्रमुक ने विरोधी गठबंधन से 5 फीसदी वोट ज्यादा हासिल कर 46.97 फीसदी का विजयी स्कोर छू लिया था। सत्ता की चाबी स्टालिन के हाथ ही रही।
नया गठबंधन पुरानी गलती को सुधारना माना जा रहा है।
गठबंधन के लिए सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त करने के लिए सर्जरी आवश्यक हो गई थी। वह भी हुई। अब बीजेपी के अन्नामलाई दिल्ली शिफ्ट होंगे। जयललिता सरकार में मंत्री रहे नैनार नागेन्द्रन को तमिलनाडु में बीजेपी की कमान सौंपी गई है। सूत्र बताते हैं कि यह बदलाव अन्नाद्रमुक की मांग पर किया गया है। हालांकि साझा प्रेस कांफ्रेंस में अमित शाह और पलानीस्वामी ने कहा- गठबंधन में ना कोई शर्त है और ना कोई मांग। जरूरत हुई तो एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनेगा। उसी का दोनों दल पालन और अनुसरण करेंगे। बीजेपी के नए प्रदेश प्रमुख नागेन्द्रन के अन्नाद्रमुक के साथ पुराने रिश्तों के कारण यह माना जा रहा है कि पलानीस्वामी से उनकी खूब पटेगी।
कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर मंथन शुरू हो चुका है। आने वाले चुनाव में एकजुटता के लिए सनातन, त्रिभाषा नीति और परिसीमन पर सहमति के बिंदु तलाशने की कोशिश की जाएगी। इन मुद्दों पर अभी तक स्टालिन की द्रमुक और अन्नाद्रमुक नेता एडाप्पडी के. पलानीस्वामी के विचार समान ही रहे हैं। इसीलिए हिंदुत्व की जगह राष्ट्रवादी चिंतन की राह अन्नाद्रमुक के लिए भी आसान रहेगी। एक और घटना जो सर्वाधिक चर्चा में रही। वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और तुगलक के संपादक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति से गृहमंत्री अमित शाह का उनके घर जाकर मिलना। इस मुलाकात को सियासी हल्के में बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। साथ में केन्द्रीय मंत्री एल मुरुगन और अन्नामलाई भी थे। कहते हैं इसी घटनाक्रम के बाद अन्नाद्रमुक के लिए एनडीए के द्वार खुले।
तमिलनाडु में बीजेपी को पहचान दिलाने में अन्नामलाई ने खूब पसीना बहाया है। अपनी मेहनत के कारण ही वे तमिलनाडु में बीजेपी के पोस्टर ब्यॉय बन गए हैं। मोदी शाह के भरोसेमंद होने के नाते भी दिल्ली में उन्हें कोई बड़ी भूमिका मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता। गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में तो अन्नाद्रमुक ही रहने वाली है। 234 संख्या वाले सदन में उसके 62 विधायक हैं। बीजेपी के खाते में 4 सीटें हैं। विधानसभा से लोकसभा के चुनाव तक तमिलनाडु में बीजेपी के वोट में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। वैसे लोकसभा चुनाव के वोट शेयर में अन्नाद्रमुक को भी बढ़त मिली है। लेकिन वह भी कोई बड़ा तीर नहीं मार पाई। अन्नाद्रमुक के प्रत्याशी 9 सीटों पर तीसरे नंबर पर, एक सीट पर चौथे नंबर पर और सात सीटों पर जमानत गंवा बैठे हैं। एनडीए गठबंधन में आने के बाद विधानसभा में दृश्य बदलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। स्टालिन की द्रमुक के सदन में 134 विधायक हैं जबकि उनकी साथी कांग्रेस का संख्या बल 17 है।
अन्नाद्रमुक 1998 से एनडीए का हिस्सा रही है। बीच-बीच में रूठना मनाना चलता रहा। अंततः सितंबर 2023 में वह एनडीए से बाहर हो गई। बीजेपी तमिलनाडु में द्रमुक गठबंधन का मजबूत विकल्प बनने के प्रयास में है। द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन में कांग्रेस और वाम दलों के अलावा सात पार्टियां हैं। जबकि अन्नाद्रमुक गठबंधन में बीजेपी के शामिल होने के बाद चार प्रमुख दल हो गए हैं। बीजेपी फिल्म स्टार विजय के नेतृत्व वाली ‘टीवीके’ को गठबंधन में शामिल करने की कोशिश में है। विधानसभा में अभी टीवीके के 4 विधायक हैं। पिछले दिनों सीएम का चेहरा विजय को घोषित करने और आधी सीटों की मांग के कारण बातचीत बीच में अटक गई थी। इधर अमित शाह ने नए सिरे से बातचीत शुरू की है।
लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के चुनाव में झारखंड और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों में पार्टी ने कमाल करते हुए एक के बाद एक जीत दर्ज की। यहां तक कि उड़ीसा और त्रिपुरा के भी चुनौतीपूर्ण चुनाव आसानी से जीत लिए। इस वर्ष बिहार में कमल खिलाने की कोशिश में बीजेपी कोई कोर कसर बाकी नहीं रखने वाली है। हालांकि बिहार के इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ही गठबंधन के चेहरे होंगे। लेकिन जनता यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि बीजेपी के सपने में बिहार का सीएम पद नहीं है। इस विश्वास को बल अश्विनी चौबे के बयान से मिला। उन्होंने पत्रकारों से कहा – ‘नीतीश कुमार देश के उप प्रधानमंत्री बनने की योग्यता रखते हैं। केंद्र में काम करने का उनका पुराना अनुभव भी है। पीएम मोदी के साथ नीतीश का तालमेल भी बहुत अच्छा है।’ पूर्व केन्द्रीय मंत्री के इस बयान के साथ ही यह अटकल शुरू हो गई है कि क्या नीतीश दिल्ली शिफ्ट हो रहे हैं? जेडीयू ने ऐसी किसी भी चर्चा को सिरे से खारिज कर दिया है।
कर्नाटक के शक्ति परीक्षण में अभी देर है। जब मौका आएगा तब आपस में ही उलझ रहे सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के हाथ से सत्ता छीनने के लिए बीजेपी कर्नाटक विजय की तैयारी कर ही रही है। दक्षिण में कर्नाटक और तेलंगाना ही ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी मजबूत है। आंध्र में एनडीए के मजबूत पार्टनर टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली सरकार है। तेलंगाना में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महज 1 सीट पर जीत दर्ज की थी। तब उसका वोट शेयर 7 फीसदी था। वहीं लोकसभा में करीब 20 फीसदी वोट और 4 सीटें मिली थीं। इस बार पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अपना वोट शेयर दोगुना कर लिया है और 8 सीटें जीती हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता में है। लेकिन उसके नेताओं में कुर्सी के लिए संघर्ष छिड़ा हुआ है। बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की बारी है। ममता बनर्जी और एमके स्टालिन के मजबूत गढ़ में लाख कोशिशों के बाद भी कमल नहीं खिला पाने की टीस बीजेपी नेतृत्व को साल रही है। दोनों राज्यों में अगले साल मई में चुनाव होंगे। अमित शाह कह चुके हैं कि आने वाले महीने में उनका ठिकाना बिहार रहने वाला है। इसके पहले तमिलनाडु में पार्टी को चुस्त- दुरुस्त बनाने के लिए दौरे होते रहेंगे। हाल का चेन्नई दौरा इसी दक्षिण मिशन का एपिसोड नंबर वन माना जा रहा है।

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