चेट्टूर शंकरन नायर की कहानी, जिन पर बनी है केसरी-2

By Team Live Bihar 84 Views
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अभिनय आकाश
हम फिल्म क्यों देखने के लिए जाते हैं? ये एक बड़ा यक्ष प्रश्न है। ज्यादातर लोग मनोरंजन के लिए फिल्म देखने जाते हैं। कहा जाता है कि फिल्में हमारी समाज का आइना होती हैं। हालिया अक्षय कुमार अभिनित फिल्म केसरी चैप्टर टू असल में आपको हमारे इतिहास का आइना दिखाएगी। मशहूर वकील चेट्टूर शंकरन नायर के जीवन पर आधारित है। एक जमाने में वो ब्रिटिशर्स के साथ काम करते थे। लेकिन जब जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ तो वो अंग्रेजों के खिलाफ हो गए और अंग्रेजों की ही अदालत में एक अंग्रेज जज के सामने, अंग्रेजी सिस्टम के सामने उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ केस लड़ा। पूरी दुनिया के सामने ये साबित कर दिया कि इस हत्याकांड के पीछे अंग्रेजों की गलती थी और उनके खिलाफ एक्शन होना चाहिए। आखिर क्या कहानी है चेट्टूर शंकरन नायर की कि जिनके बारे में लिखा गया कि यही वो शख्स है जो अंग्रेजों को घसीटने की कुव्वत रखता है। लेकिन ये बताने से पहले आपको एक छोटी सी कहानी सुनाते हैं।
20वी सदी की शुरुआत से पहले की बात है। मालाबार यानी आज का केरल जब ब्रिटिश सरकार का एक नौजवान अवसर एक लड़की पर फिदा हो गया। लड़की शादी शुदा थी लेकिन अफसर महोदय तो लंदन से नए नए आए थे। उन्हें लगता था कि अनपढ़ गंवार भारतीय के कॉन्सेप्ट में शादी वादी होती नहीं। इन्हें क्या पता सोसाइटी क्या होता है। अफसर को लगा कि मालाबार में कानूनी शादी जैसा कुछ होता नहीं होगा। लिहाजा वो लड़की के घर पहुंच गए। उन दिनों अंग्रेजों से पंगा लेने की हिम्मत कम लोगों में थी। इसलिए लड़की का पति पहली बार तो कुछ कह नहीं पाया। लेकिन फिर जब ब्रिटिश अफसर लगातार घर के चक्कर लगाने लगा। लड़की के पति ने एक युक्ति निकाली अगले रोज जैसे ही ब्रिटिश अफसर लड़की के घर पहुंचा। उसने वहां देखा कि घर के बाहर हाथी खड़ा था। सजा धजा हाथी और सिर पर सोने का मुकुट और बगल में बैंड बाजे बज रहे थे। अंग्रेज कुछ समझ पाता उससे पहले लड़की का पति आकर कहता है कि हुजूर ये सब आपके सम्मान में है। मुझे उम्मीद है कि आगे भी जब कभी आना चाहे तो मैं आपके स्वागत का ऐसा ही इंतेजाम कर सकूं। अंग्रेज अफसर वहां से नौ 2 ग्यारह हो गया। लेकिन जुलूस उसके पीछे पीछे चलता रहा। उस दिन के बाद से अंग्रेज अफसर ने लड़की की तरफ देखने की हिम्मत भी नहीं की। अंग्रेजी राज का ये दिलचस्प किस्सा चेट्टूर शंकरन नायर की बायोग्राफी का है।
चेत्तूर ने मद्रास हाई कोर्ट में बतौर एडवोकेट शुरुआत की और मद्रास सरकार में एडवोकेट जनरल होते हुए वो हाई कोर्ट के जज भी रहे। कई बड़े पदों पर रहने के बाद 1904 में उन्हें ‘कम्पेनियन ऑफ इंडियन एम्पायर’ (भारतीय साम्राज्य का साथी) नियुक्त किया गया और उन्हें ब्रिटिश वायसरॉय की काउंसिल में जगह दी गई। काउंसिल के 5 सदस्यों में वो अकेले भारतीय थे। यानी ब्रिटिश राज में एक भारतीय को जो सबसे ऊंची ऑफिशियल पोजीशन मिल सकती थी, चेत्तूर उस पोजीशन पर थे़।
चेट्टूर शंकरन नायर अंग्रेजों के जमाने में मद्रास हाई कोर्ट के जज हुए और फिर मुव्वकिल भी बने। जिन्होंने लंदन की अदालत में पूरे ब्रिटिश सरकार लाव लश्कर का अकेले सामना किया और जलियावाला बाग की सच्चाई दुनिया को बता दी। जब उनसे माफी मांगने को कहा गया तो आज के हिसाब से 500 ब्रिटिश पाउंड यानी 32 लाख रुपए अंग्रेज जज के मुंह पर मार कर चले गए। क्या है चेट्टूर शंकरन नायर की कहानी आज आपको बताते हैं। शंकरन नायर की सोच को उनके व्यक्तित्व को उनके तौर तरीकों को समझने के लिए सन 1922 में उन्हीं के द्वारा लिखी किताब गांधी एंड एनारकी में दर्ज एक किस्से के बारे में बताते हैं। उस समय लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ऑडवेयर की शह पर पंजाब में हुई अमानवीय घटनाएं खबरों में थी। चेट्टूर शंकरन नायर भी ये मानते थे कि इन घटनाओं के लिए ऑडवेयर काफी हद तक जिम्मेदार थे। अपनी किताब में भी शंकरन ने खुलकर ऐसा लिखा। लेकिन इससे ऑफेंड होकर ऑडवेयर ने शंकरन के खिलाफ मानहानी का केस ठोक दिया। ये केस कोर्ट दर कोर्ट भटक कर लंदन प्रिवि काउंसिल में पहुंचा। जज मैकार्डी और 12 अन्य की ज्यूरी के सामने पांच हफ्ते से भी जयादा लंबे समय तक बहस चली। जज साहब और 11 ज्यूरी मेंबर ने ऑडवेयर के पक्ष में फैसला सुनाया। मानहानी के दावे को सही ठहराया। केवल लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर हेराल्ड रास्की ने शंकरन नायर के पक्ष में फैसला दिया।
शंकरन केस हार गए। हालांकि प्रोफेसर साहब ने उन्हें एक बड़े झटके से बचा लिया। अगर प्रोफेसर लास्की भी बहुमत के साथ हो लेते तो इसकी सुनवाई का पूरा खर्च भी शंकरन नायर को ही उठाना पड़ता। बहरहाल, फैसले के बाद नायर को दो विकल्प दिए गए पहला 500 ब्रिटिश पाउंड का जुर्माना या दूसरा ऑडवेयर से माफी मांगना। नायर ने दूसरा विकल्प चुना। 500 ब्रिटिश पाउंड का जुर्माना भरा। अंग्रेजों के सामने झुकने का विकल्प सिरे से खारिज किया। वो केस हार गए थे, लेकिन उनका मकसद पूरा हुआ और पूरी दुनिया जलियांवाला बाग का सच जानकार स्तब्ध थी। ब्रिटिश सरकार को पंजाब में मार्शल लॉ और प्रेस पर लगी बंदिशें हटानी पड़ीं।

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