लोकनायक जयप्रकाश नारायण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: लोकतंत्र बचाने का 50+ वर्षों का अद्भुत संघर्ष

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण और आरएसएस ने मिलकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए 1970 के दशक में जनशक्ति और संगठनात्मक शक्ति का संगम किया।
Highlights
  • • जेपी ने जनशक्ति को संगठित किया, आरएसएस ने उसे अनुशासन और दिशा दी। • 1974 बिहार आंदोलन और सम्पूर्ण क्रांति में दोनों का योगदान ऐतिहासिक। • आपातकाल (1975–77) में जेपी और आरएसएस ने लोकतंत्र बचाने के लिए संघर्ष किया। • 1977 में जनता पार्टी की स्थापना और विपक्षी एकता में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका। • राष्ट्र और लोकतंत्र के लिए सेवा, अनुशासन और नैतिकता का संदेश।

पुण्यतिथि पर विशेष
नवीन सिंह परमार
(कृष्णचंद्र गांधी मीडिया शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, सिवान के समन्वयक)

लोकनायक जयप्रकाश नारायण और संघ — राष्ट्रहित का संगम

भारतीय राजनीति और समाज के इतिहास में लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। स्वतंत्रता के बाद, जेपी ने जनशक्ति को संगठित किया और लोकतंत्र की आत्मा को संरक्षित करने में नेतृत्व किया, वहीं संघ ने अनुशासन और संगठन का ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जिससे जेपी के आंदोलन को ऊर्जा और दिशा मिली।

1970 के दशक में यह संगति भारतीय राजनीति के एक ऐतिहासिक मोड़ पर सामने आई, जब लोकशक्ति और राष्ट्रशक्ति ने मिलकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया।

जेपी का वैचारिक व्यक्तित्व — जनशक्ति का प्रतीक

जयप्रकाश नारायण स्वतंत्रता संग्राम के उन नेताओं में थे जिन्होंने सत्ता की लालसा के बजाय लोककल्याण और सामाजिक परिवर्तन को प्राथमिकता दी। उनका मार्ग मार्क्सवाद से समाजवाद और फिर सम्पूर्ण क्रांति तक फैला।

जेपी का मानना था कि भारत का पुनर्निर्माण केवल सरकारों पर निर्भर नहीं, बल्कि संगठित समाजशक्ति के बल पर ही संभव है। यही विचार उन्हें संघ जैसे राष्ट्रनिष्ठ संगठनों के निकट लाया।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ — राष्ट्रनिष्ठा और संगठन की ताकत

आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी, जिसका उद्देश्य था राष्ट्र को परिवार मानकर सेवा और अनुशासन का संदेश देना। संघ राजनीति नहीं करता, बल्कि समाज को संगठित करता है।

जेपी ने संघ के अनुशासन और सेवा कार्यों की सराहना करते हुए कहा था:
“अगर देश में संघ जैसे स्वयंसेवक बढ़ जाएँ, तो भारत को कोई शक्ति डिगा नहीं सकती।”

1970 का दशक — लोकशक्ति और राष्ट्रशक्ति का संगम

1974 में बिहार आंदोलन की शुरुआत हुई। जेपी ने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का नारा दिया, जो व्यक्ति, समाज और शासन तीनों को शुद्ध करने की मांग करता था।

इस आंदोलन में संघ ने दिशा और अनुशासन प्रदान किया। जेपी ने स्वीकार किया कि अगर संघ और राष्ट्रवादी संगठन साथ न आते, तो आंदोलन संभव नहीं होता।

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आपातकाल (1975–77) में संघर्ष और आरएसएस का समर्थन

आपातकाल भारत के लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय था। प्रेस सेंसरशिप, नेताओं की गिरफ्तारी और नागरिक अधिकारों का हनन आम हुआ।

जेपी ने कहा:
“सत्ता के केंद्रीकरण के खिलाफ जनशक्ति को खड़ा करना ही असली क्रांति है।”

इस संघर्ष में आरएसएस ने कंधे से कंधा मिलाकर हजारों स्वयंसेवकों को जेल भेजा, भूमिगत नेटवर्क बनाया और जनता में लोकतंत्र बचाने का संदेश फैलाया।

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जनता पार्टी और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना

1977 में आपातकाल के बाद, जेपी के आह्वान पर सभी विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई। इस विजय ने दिखाया कि लोकशक्ति और संगठनात्मक शक्ति मिलकर ही लोकतंत्र को बचा सकती है।

जेपी और आरएसएस के मूल सिद्धांत समान थे — राष्ट्र सर्वोपरि, सेवा सर्वोपरि और सत्ता गौण। उनका उद्देश्य सत्ता पर कब्जा नहीं, बल्कि लोकतंत्र और राष्ट्र की रक्षा था।

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निष्कर्ष — राष्ट्र और लोकतंत्र की साझा विरासत

लोकनायक जयप्रकाश नारायण और आरएसएस का संगम दिखाता है कि जनशक्ति और संगठन शक्ति मिलकर ही समाज में स्थायी बदलाव ला सकते हैं।

आज, उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि लोकतंत्र तभी मजबूत होता है, जब जनता संगठित और जागरूक हो। जेपी और संघ ने 50+ वर्षों पहले जो संदेश दिया, वह आज भी हमारे लिए प्रेरणा है।

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