बिहार एक बार फिर राजनीतिक हलचल के केंद्र में है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 न सिर्फ 19 साल से सत्ता में बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की परीक्षा है, बल्कि एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए सियासी टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है।
इस बार का चुनाव दो चरणों में होगा — 6 और 11 नवंबर, और 14 नवंबर को नतीजे आएंगे।
एक राष्ट्र, एक चुनाव की बहस और बिहार की दो-चरणीय वोटिंग
जहां पहले बिहार में तीन से लेकर सात चरणों में मतदान होता था, वहीं इस बार केवल दो चरणों में चुनाव होंगे।
राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि जब देश में कहीं और चुनाव नहीं हैं, तो बिहार में एक ही चरण में वोटिंग क्यों नहीं कराई जा सकी?
चुनाव आयोग के मुताबिक, सुबह 7 से शाम 6 बजे तक यानी 11 घंटे मतदान होगा।
बिहार के हर पोलिंग बूथ पर 1200 मतदाता हैं — और विपक्ष का आरोप है कि इतनी लंबी प्रक्रिया में प्रशासनिक पारदर्शिता संदिग्ध है।

नीतीश कुमार की सियासी रणनीति और स्वास्थ्य पर सवाल
विपक्ष का आरोप है कि नीतीश कुमार अब प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं, और राज्य “कुछ अफसरों और चुनिंदा नेताओं के भरोसे” चल रहा है।
तेजस्वी यादव अक्सर नीतीश के कार्यक्रमों के वीडियो साझा कर यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि मुख्यमंत्री अब उतने सक्रिय नहीं हैं।
हालांकि जेडीयू और भाजपा इन आरोपों को नकारते हुए कह रहे हैं कि चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।
फिर भी भाजपा इस सवाल से बच रही है कि क्या चुनाव बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे?
भाजपा को डर है कि अगर नीतीश की सेहत पर संदेह फैला, तो एनडीए को नुकसान हो सकता है।
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वोटरों को लुभाने के लिए फ्रीबीज की झड़ी
चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने फ्रीबीज का पिटारा खोल दिया है।
अब तक 75 लाख महिलाओं को ₹10,000 तक की राशि भेजी जा चुकी है ताकि वे छोटा व्यवसाय शुरू कर सकें।
साथ ही 1.89 करोड़ परिवारों को 125 यूनिट मुफ्त बिजली,
सामाजिक सुरक्षा पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100,
और 18-25 वर्ष के बेरोजगारों को ₹1,000 मासिक भत्ता देने की घोषणा की गई है।
नीतीश की यह रणनीति सत्ता-विरोधी लहर को रोकने और महिला व युवा मतदाताओं को अपने पाले में रखने की कोशिश है।
वोट चोरी का आरोप और राहुल-तेजस्वी की जोड़ी
इस बार के चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बना “वोट चोरी” का आरोप, जिसे राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने उठाया।
दोनों नेताओं ने 17 अगस्त से 1 सितंबर तक संयुक्त यात्रा निकाली और बड़ी भीड़ जुटाई।
लेकिन हाल के दिनों में तेजस्वी ने इस मुद्दे को उतना महत्व नहीं दिया, जिससे संकेत मिलता है कि महागठबंधन अब इस एजेंडे से पीछे हट गया है।
14 नवंबर को परिणाम तय करेंगे कि “वोट चोरी” का यह नैरेटिव जनता को कितना प्रभावित कर पाया।
प्रशांत किशोर की एंट्री — एनडीए की नई चुनौती
पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे प्रशांत किशोर (PK) और उनकी जनसुराज पार्टी ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है।
उनकी सभाओं में भीड़ बढ़ रही है और उनके भ्रष्टाचार विरोधी बयानों ने भाजपा और जेडीयू दोनों को असहज कर दिया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर जनसुराज को 10% से अधिक वोट मिलते हैं, तो यह एनडीए के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है।
युवाओं और सवर्ण मतदाताओं में PK की लोकप्रियता बढ़ रही है — जो इस चुनाव को और रोमांचक बना रही है।
जंगलराज का नैरेटिव और बेरोजगार युवा वोटर
एनडीए एक बार फिर लालू यादव के “जंगलराज” का मुद्दा उठा रही है।
2005 से अब तक यह नैरेटिव एनडीए के लिए जीत का हथियार रहा है।
लेकिन इस बार नए युवा मतदाता, जिन्होंने जंगलराज केवल सुना है, उनके लिए यह मुद्दा उतना असरदार नहीं है।
उनकी प्राथमिकता रोजगार और आर्थिक स्थिरता है।
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निष्कर्ष — बिहार का 2025 चुनाव, भविष्य की दिशा तय करेगा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि राजनीतिक पुनर्गठन का चुनाव है।
क्या नीतीश कुमार अपनी पकड़ बनाए रख पाएंगे या प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव नई राजनीति का रास्ता खोलेंगे?
14 नवंबर को जब नतीजे आएंगे, तो तय होगा कि बिहार सुशासन की राह पर बढ़ेगा या सत्ता-विरोध की लहर में डूब जाएगा।
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