‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष: राष्ट्रगान नहीं, राष्ट्रीय भावना का प्रतीक
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: इस साल भारत के गौरवशाली इतिहास में एक भावनात्मक मील का पत्थर जुड़ गया है—राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ की रचना को पूरे 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इस ऐतिहासिक अवसर पर देशभर में विशेष कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू करने का निर्णय लिया है। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि आज़ादी की आत्मा और मातृभूमि की श्रद्धा का प्रतीक है।
1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘वंदे मातरम्’ की रचना की थी, जिसने आने वाले दशकों में क्रांति और राष्ट्रीय चेतना की धारा को नई ऊर्जा दी। 1896 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार इस गीत को सुर में पिरोया, और तभी से यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बन गया।
1905 के बंग आंदोलन से लेकर आज़ादी के हर मोर्चे तक इस गीत ने लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों में जोश और एकता का अलख जगाया। 1950 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया। यह भारत की मिट्टी, संस्कृति और मातृभूमि के सम्मान का स्वर माना जाता है।
आज जब ‘वंदे मातरम्’ की यह 150वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है, तब यह गीत फिर से भारतीय राजनीति और समाज में देशभक्ति की लहर को जीवंत कर रहा है—खासकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच।
Bihar Election 2025: दूसरे चरण की वोटिंग से पहले सियासी पिच गर्म
पहले चरण की 121 सीटों पर 6 नवंबर को मतदान पूरा हो चुका है। अब 11 नवंबर को दूसरे चरण की वोटिंग होने वाली है। इसी को लेकर बिहार में राजनीतिक दलों ने प्रचार की रफ्तार तेज कर दी है।
आज बिहार की सियासत में सबसे व्यस्त और निर्णायक दिन माना जा रहा है। देश की चार बड़ी राजनीतिक हस्तियाँ—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस नेता राहुल गांधी—एक ही दिन अलग-अलग जिलों में जनसभाएँ और रोड शो करेंगे।
इस राजनीतिक महाकुंभ के केंद्र में ‘वंदे मातरम्’ की भावनात्मक गूंज भी है, जिसे बीजेपी ने राष्ट्रव्यापी अभियान का रूप दिया है। इससे पार्टी अपने राष्ट्रवादी एजेंडा को जनता तक और मजबूत ढंग से पहुंचाने की कोशिश में है।
PM मोदी की दो मेगा रैलियाँ—औरंगाबाद और भभुआ में उमड़ा जनसैलाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बिहार के औरंगाबाद और भभुआ में दो बड़ी रैलियाँ करने वाले हैं। दोनों ही जगहों पर प्रशासनिक और राजनीतिक तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं।
इससे पहले 6 नवंबर को अररिया जिले के फारबिसगंज में हुई रैली में पीएम मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत मैथिली भाषा में करते हुए कहा था—“मैं यहां नेता बनकर नहीं, आपके परिवार का सदस्य बनकर आया हूं।” इस भावनात्मक शुरुआत के बाद जनसभा में जबरदस्त उत्साह देखा गया।
मोदी के भाषण में RJD और विपक्षी गठबंधन पर तीखे कटाक्ष जारी रहे। उन्होंने विकास, भ्रष्टाचार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जनता से सीधे संवाद करते हुए एनडीए सरकार की उपलब्धियों को सामने रखा।
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पूर्णिया में अमित शाह का शक्ति प्रदर्शन: सीमांचल की रणनीति पर फोकस
गृह मंत्री अमित शाह आज पूर्णिया में एक भव्य रोड शो करने जा रहे हैं। यह इलाका पप्पू यादव का गढ़ माना जाता है, इसलिए यहां शाह का रोड शो रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
पूर्णिया के बाद शाह की पहली जनसभा भागलपुर जिले के पीरपैंती और कहलगांव विधानसभा के लिए खबासपुर हाईस्कूल मैदान में दोपहर 1:30 बजे होगी। इसके बाद उनकी दूसरी सभा नवगछिया (बिहपुर थाना क्षेत्र) में 2:45 बजे तय है।
इन दोनों जनसभाओं में शाह का फोकस सीमांचल की सीटों को साधने और मतदाताओं में जोश भरने पर रहेगा।
योगी आदित्यनाथ और राहुल गांधी की सभाएँ भी होंगी निर्णायक
बीजेपी की ओर से आज दिनभर लगातार सभाएँ और रोड शो तय हैं, जिनमें योगी आदित्यनाथ भी रक्सौल में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे। योगी का भाषण आम तौर पर धार्मिक और राष्ट्रवादी जोश से भरा होता है, जिससे एनडीए समर्थकों में ऊर्जा का संचार होता है।
दूसरी ओर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी आज बिहार में रैलियाँ करेंगे। कांग्रेस अब चुनावी मैदान में सक्रिय मोड में है और विपक्षी एकता को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है।
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राजनीति और राष्ट्रभक्ति का संगम: बिहार की सियासत में ‘वंदे मातरम्’ की गूंज
बिहार की राजनीति में आज का दिन इतिहास, भावना और सियासी रणनीति का संगम लेकर आया है।
एक ओर राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने का राष्ट्रव्यापी उत्सव, तो दूसरी ओर बिहार के चुनावी मैदान में चार दिग्गज नेताओं का आमना-सामना—दोनों ही घटनाएँ देश के राजनीतिक परिदृश्य में नई हलचल पैदा कर रही हैं।
यह सिर्फ चुनावी प्रचार नहीं, बल्कि भावनाओं का महायुद्ध भी है। एक तरफ बीजेपी अपने राष्ट्रवादी नैरेटिव को और मजबूत करने की कोशिश कर रही है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस और विपक्ष लोकल मुद्दों और रोजगार की बातों के जरिए जनता को साधने में लगी है।
‘वंदे मातरम्’ के सुरों में सियासत की गूंज
‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने का यह मौका सिर्फ संवेदनात्मक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी प्रतीकात्मक बन गया है।
जहाँ यह गीत भारत की संस्कृति, आस्था और एकता का प्रतीक है, वहीं आज इसका स्वर बिहार की सियासत में भी गूंज रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के इस दूसरे चरण से पहले का यह दिन राजनीतिक गर्मी, राष्ट्रभक्ति और जनभावना—तीनों का संगम बन गया है।
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