किशोर स्वास्थ्य पर यूनिसेफ इंडिया की दो दिवसीय राष्ट्रीय वर्कशॉप संपन्न
किशोर स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों पर मीडिया की भूमिका को सशक्त बनाने के उद्देश्य से यूनिसेफ इंडिया द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय ‘ट्रेनर्स ऑफ ट्रेनर्स वर्कशॉप’ सफलतापूर्वक संपन्न हो गई। इस वर्कशॉप का विषय था — “स्वास्थ्य संपादकों की रणनीतिक भागीदारी के लिए कार्यशाला: उभरती किशोर स्वास्थ्य चुनौतियां – सर्वाइकल कैंसर और सड़क सुरक्षा।”
वर्कशॉप में मीडिया के जरिए किशोर स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता देने, समाज में व्याप्त भ्रम को दूर करने और वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। इस आयोजन ने देशभर के वरिष्ठ स्वास्थ्य पत्रकारों, मीडिया एजुकेटरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एक साझा मंच प्रदान किया, ताकि स्वास्थ्य पत्रकारिता को और प्रभावशाली बनाया जा सके।
मीडिया की सशक्त भूमिका और जिम्मेदार पत्रकारिता पर जोर
वर्कशॉप के दौरान वरिष्ठ स्वास्थ्य संपादकों के बीच “क्रिटिकल अप्रेजल स्किल्स” यानी तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग और रणनीतिक तरीके से कहानियां प्रस्तुत करने की तकनीकों पर विस्तार से चर्चा की गई। इसका उद्देश्य था — मीडिया पेशेवरों को इस दिशा में प्रशिक्षित करना कि वे किशोरों के स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर अधिक जिम्मेदारी और प्रभावशीलता के साथ रिपोर्ट कर सकें।
वर्कशॉप में यह बात सामने आई कि मीडिया, समाज में स्वास्थ्य से जुड़ी गलत धारणाओं को तोड़ने में एक शक्तिशाली भूमिका निभा सकता है। विशेषकर किशोरों से संबंधित विषयों पर सही और वैज्ञानिक जानकारी प्रस्तुत कर समाज में जागरूकता बढ़ाई जा सकती है।
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यूनिसेफ इंडिया ने मीडिया की भूमिका को बताया निर्णायक

उद्घाटन सत्र में यूनिसेफ इंडिया की कम्युनिकेशन, एडवोकेसी और पार्टनरशिप प्रमुख जाफरिन चौधरी ने कहा कि
“युवा और मीडिया दर्शक बड़े पैमाने पर उन स्वास्थ्य मुद्दों पर सटीक जानकारी पाने के हकदार हैं जो उन्हें और समाज को प्रभावित करते हैं। यह तभी संभव है जब वैज्ञानिक और चिकित्सीय जानकारी को मीडिया के माध्यम से सटीक और जिम्मेदारी से लोगों तक पहुंचाया जाए।”
उनका यह संदेश मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी की ओर इशारा करता है। किशोर स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषयों पर तथ्यात्मक रिपोर्टिंग के माध्यम से पत्रकार समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
सर्वाइकल कैंसर रोकथाम पर मिला जागरूकता संदेश
वर्कशॉप के दौरान यूनिसेफ इंडिया कंट्री ऑफिस के स्वास्थ्य प्रमुख (कार्यकारी) डॉ. विवेक वीरेंद्र सिंह ने कहा —
“सर्वाइकल कैंसर ऐसा एकमात्र कैंसर है जिसे वैक्सीन से रोका जा सकता है। जागरूकता इस बीमारी से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है।”
डॉ. सिंह ने मीडिया की अहम भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि समाज में फैली झिझक और गलत धारणाओं को दूर करने में मीडिया को निर्णायक भूमिका निभानी चाहिए। सटीक सूचना, संवाद और प्रेरक कहानियों के माध्यम से यह संभव है कि सर्वाइकल कैंसर जैसी बीमारियों के प्रति लोगों की सोच बदली जा सके।
सड़क सुरक्षा को किशोर स्वास्थ्य का हिस्सा मानने की दिशा में नई पहल
वर्कशॉप में यह भी चर्चा हुई कि सड़क सुरक्षा को किशोर स्वास्थ्य का अभिन्न हिस्सा माना जाना चाहिए। भारत में सड़क हादसों में बड़ी संख्या में युवा और किशोर शामिल होते हैं। ऐसे में मीडिया के जरिए सड़क सुरक्षा को लेकर जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है।
एम्स की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पल्लवी शुक्ला और निमहंस के डब्ल्यूएचओ सहयोग केंद्र के प्रमुख डॉ. गौतम एम. सुकुमार ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि यदि पत्रकार तथ्य-आधारित रिपोर्टिंग पर ध्यान दें, तो सड़क सुरक्षा के प्रति जनसामान्य की सोच और व्यवहार में ठोस परिवर्तन लाया जा सकता है।
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वरिष्ठ संपादकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मीडिया एजुकेटरों की सक्रिय भागीदारी
इस दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में देशभर से आए वरिष्ठ संपादक, स्वास्थ्य पत्रकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और मीडिया शिक्षक शामिल हुए। इस विविध भागीदारी ने वर्कशॉप को एक राष्ट्रीय विमर्श का स्वरूप दिया, जहां सभी ने मीडिया के सामाजिक दायित्व और किशोर स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं पर ठोस सुझाव साझा किए।
वर्कशॉप का प्रमुख निष्कर्ष यह रहा कि मीडिया अगर अपनी रिपोर्टिंग में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, संवेदनशीलता और सटीकता अपनाए तो वह न केवल सूचनाओं का प्रसार कर सकता है बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव का माध्यम भी बन सकता है।
मीडिया ही बदलाव की सबसे सशक्त आवाज़
यूनिसेफ इंडिया की यह पहल इस बात का प्रमाण है कि जिम्मेदार पत्रकारिता से समाज में बड़ा परिवर्तन संभव है। किशोर स्वास्थ्य, सर्वाइकल कैंसर रोकथाम और सड़क सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर मीडिया की निर्णायक भूमिका अब और भी गहरी हो चुकी है।
यह वर्कशॉप सिर्फ प्रशिक्षण का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और परिवर्तन के संदेश का प्रतीक बनकर उभरी — यह दर्शाते हुए कि जब पत्रकारिता “सशक्त” और “संवेदनशील” दोनों बनती है, तब समाज स्वस्थ दिशा में बढ़ता है।
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