बिहार चुनाव 2025: दूसरे चरण की वोटिंग से पहले थमा सियासी शोर, प्रचार हुआ खत्म
Bihar Election 2025 अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। रविवार शाम दूसरे और अंतिम चरण के चुनाव प्रचार का शोर थम गया। अब नेताओं के पास केवल घर-घर जाकर जनसंपर्क करने का मौका है। राज्य की कुल 243 विधानसभा सीटों में से पहले चरण में 212 सीटों पर 6 नवंबर को वोटिंग हो चुकी है, जबकि दूसरे चरण में 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान होगा। इसके बाद 14 नवंबर को नतीजों का ऐलान होगा।
लगभग एक महीने तक चले चुनावी अभियान के दौरान सभी दलों के नेताओं ने ताबड़तोड़ रैलियां कीं, आरोप-प्रत्यारोप लगे, और बिहार का सियासी माहौल पूरी तरह चुनावी जोश से भर गया।
पहले चरण में रिकॉर्ड 65% वोटिंग, अब 11 नवंबर को होगा दूसरा चरण
बिहार चुनाव का पहला चरण 6 नवंबर को संपन्न हुआ था, जिसमें रिकॉर्ड 65 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक यह अब तक के उच्चतम मतदान प्रतिशतों में से एक रहा है।
अब दूसरे चरण की 122 सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होगा। इस चरण में कई हाई-प्रोफाइल सीटें शामिल हैं, जहां नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
प्रचार के अंतिम दिन बिहार की सियासी धरती पर देश के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा दिखा — गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने अपने-अपने अभियानों को अंतिम रूप दिया।
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अमित शाह ने 37 रैलियों से चलाया सबसे सघन प्रचार अभियान

अगर इस चुनाव प्रचार को किसी एक नेता के “सबसे व्यापक और आक्रामक अभियान” के तौर पर याद किया जाएगा, तो वह हैं गृह मंत्री अमित शाह। शाह ने इस चुनाव में 37 जनसभाएं कीं और लगातार कई दिनों तक बिहार में डेरा डाले रहे।
रविवार को उन्होंने सासाराम और अरवल में सभाएं कीं — ये दोनों इलाके भाजपा के लिए अपेक्षाकृत कमजोर माने जाते हैं। शाह की रणनीति स्पष्ट रही: कमजोर क्षेत्रों को मज़बूत बनाना और मतदाताओं से सीधा संवाद स्थापित करना।
उनकी सभाओं में जोश, नारों और तीखे प्रहारों का मिला-जुला असर देखने को मिला, जिसने बिहार के सियासी माहौल को और भी गरमाया।
राहुल गांधी ने सीमांचल में दी विपक्ष को नई ऊर्जा, कीं 15 रैलियां

दूसरी ओर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सीमांचल क्षेत्र — यानी किशनगंज और पूर्णिया — को चुना, जहां मुस्लिम आबादी का प्रभाव ज्यादा है और जिसे इंडिया गठबंधन का अहम गढ़ माना जाता है।
राहुल गांधी ने इस चुनाव के दौरान 15 जनसभाएं कीं। उन्होंने इससे पहले “वोटर अधिकार यात्रा” के जरिए जनसमर्थन जुटाने की कोशिश की थी, हालांकि “वोट चोरी” का मुद्दा इस बार ज़्यादा असर नहीं दिखा पाया।
फिर भी, सीमांचल में राहुल की उपस्थिति ने महागठबंधन के कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भर दी और उन्होंने एनडीए पर जनादेश की अनदेखी के आरोपों को दोहराया।
प्रधानमंत्री मोदी का सुपर प्रचार: 14 सभाएं और 1 रोड शो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रचार इस चुनाव की सबसे हाई-वोल्टेज उपस्थिति रहा। उन्होंने पूरे बिहार में 14 जनसभाएं और एक रोड शो किया।
मोदी की सभाओं में भीड़ का उत्साह और नारों की गूंज ने चुनावी वातावरण को चरम पर पहुंचा दिया।
पीएम मोदी ने हर सभा में विकास, स्थिरता और सुरक्षा के मुद्दों को सामने रखा। साथ ही उन्होंने “जंगलराज से सुशासन” तक के अपने अभियान को दोहराते हुए जनता से नीतीश कुमार को दोबारा मौका देने की अपील की।
प्रियंका गांधी का बिहार में डेब्यू, कीं 10 रैलियां और एक रोड शो

इस बार बिहार की राजनीति में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की एंट्री ने नया रंग भर दिया। उन्होंने बिहार में पहली बार प्रचार किया और 10 जनसभाएं व एक रोड शो किया।
हालांकि खराब मौसम के चलते एक सभा उन्हें रद्द करनी पड़ी जब उनका हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर सका।
प्रियंका की सभाओं में महिलाओं और युवाओं की बड़ी भागीदारी देखने को मिली। उन्होंने अपने भाषणों में महिलाओं के अधिकार, रोजगार और समान अवसरों की बात करते हुए एनडीए पर तीखे प्रहार किए।
स्टार प्रचारक: योगी, नड्डा, गडकरी, शिवराज और रवि किशन ने संभाली कमान
भाजपा के स्टार प्रचारकों की लंबी फेहरिस्त ने इस चुनाव को वाकई “सुपरस्टार प्रचार युद्ध” बना दिया।
पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, असम के सीएम हिमंत बिस्व सरमा, मध्यप्रदेश के सीएम मोहन यादव, और अभिनेता-राजनेता रवि किशन व मनोज तिवारी ने बिहार के मैदान में मोर्चा संभाला।
दूसरी ओर, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और आंध्र प्रदेश के मंत्री नारा लोकेश ने भी एनडीए के समर्थन में प्रचार किया, जिससे चुनावी कैंपेन को राष्ट्रीय रंग मिला।
नीतीश कुमार का शांत लेकिन रणनीतिक प्रचार, पांचवीं बार सत्ता की जंग

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार अपेक्षाकृत शांत लेकिन प्रभावशाली प्रचार अभियान चलाया। वे लगातार पांचवें कार्यकाल के लिए सत्ता में वापसी की कोशिश में हैं।
हालांकि, समस्तीपुर में पीएम मोदी के साथ मंच साझा करने के बाद नीतीश किसी भी मोदी रैली या रोड शो में नहीं दिखे — इस पर विपक्ष ने सवाल उठाए कि “क्या गठबंधन में सब ठीक नहीं?”
फिर भी, स्वास्थ्य संबंधी अटकलों के बावजूद नीतीश ने अपनी सभाएं और रोड शो जारी रखे और अपने विकास कार्यों को केंद्र में रखा।
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तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर बने चुनाव के युवा चेहरे

तेजस्वी यादव, जो इंडिया गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, ने पूरे जोश के साथ प्रचार किया। उन्होंने युवा रोजगार, महिलाओं की भागीदारी और शिक्षा सुधार पर फोकस किया।
वहीं, जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (PK) इस चुनाव में “एक्स फैक्टर” के रूप में उभरे हैं। उन्होंने घर-घर संपर्क अभियान को प्राथमिकता देते हुए पारंपरिक जनसंपर्क शैली में जनता के बीच विश्वास बनाने की कोशिश की।
उनकी रणनीति ने बिहार की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या जनता “तीसरे विकल्प” को मौका देगी?
अब निगाहें 11 और 14 नवंबर पर
अब जबकि प्रचार थम चुका है, बिहार का सियासी रणक्षेत्र मतदान और नतीजों की ओर बढ़ चला है।
11 नवंबर को जब 122 सीटों पर मतदाता अपने वोट डालेंगे, तो यह तय करेगा कि बिहार का भविष्य किसके हाथों में जाएगा — नीतीश कुमार की स्थिर सरकार या तेजस्वी यादव की नई उम्मीद।
14 नवंबर को जब नतीजे आएंगे, तब यह साफ होगा कि एक महीने की यह हाई-वोल्टेज राजनीतिक जंग आखिर किसके पक्ष में गई।
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