Bihar Politics:HAM-RLM दोनों पार्टियों के 9 विधायक जीते, पर मंत्री बने सिर्फ बेटे- क्या विरासत बचाने में उलझे दोनों पिता?

आपकी आवाज़, आपके मुद्दे

5 Min Read
हम–रालोमो के विधायकों को दरकिनार कर बेटों को मंत्री बनाए जाने पर सवाल
Highlights
  • • हम और रालोमो के कुल 9 विधायक जीतकर आए • किसी भी चुने हुए विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया • जीतन राम मांझी ने बेटे संतोष सुमन को दोबारा मंत्री बनाया • उपेंद्र कुशवाहा ने गैर-विधायक बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनवाया • जनता में स्नेहलता कुशवाहा के मंत्री न बनने पर नाराजगी • दोनों नेताओं पर परिवारवाद और पितृसत्तात्मक मानसिकता के आरोप

Bihar Politics विधायक दरकिनार, मंत्री बने सिर्फ बेटे: क्या ‘बेटे की मोह’ पर लोकतंत्र भारी?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जनता ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के 5 विधायकों को और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के 4 विधायकों को चुना। कुल 9 चुने हुए विधायक—परन्तु एक भी मंत्री नहीं।
इसके उलट, दोनों पार्टियों के अध्यक्षों ने अपने-अपने पुत्रों को मंत्री बनवाया, जबकि उनके पास चुनावी जनादेश तक नहीं था। इससे एक बड़ी बहस छिड़ गई है कि क्या दोनों नेता लोकतंत्र से ऊपर परिवारवाद और राजनीतिक विरासत को तरजीह दे रहे हैं?

Contents

Bihar Politics जीतन राम मांझी: 5 चुने हुए विधायकों के बावजूद मंत्री पद सिर्फ बेटे को क्यों?

दीपा मांझी दो बार जीतीं, फिर भी सुमन को दोबारा मंत्री क्यों?

पाँच विधायक जीतने वाले जीतन राम मांझी ने मंत्री पद के लिए न तो किसी विधायक को चुना और न ही अपनी बहू दीपा मांझी को, जो लगातार दो चुनाव जीतकर आईं।
• 2024 इमामगंज उपचुनाव: दीपा मांझी ने राजद उम्मीदवार को हराकर विधायक बनीं।
• 2025 विधानसभा चुनाव: फिर से बड़ी जीत—25 हज़ार से अधिक वोट से।

इसके बावजूद, मंत्री बने उनके पति संतोष कुमार सुमन, जो पहले से एमएलसी हैं और 2020 में भी मंत्री थे।
यह सवाल उठता है—
क्या मांझी अपनी विरासत बेटे को सौंपना चाहते हैं, इसलिए चुनी हुई बहू को भी अनदेखा कर दिया?

दीपा मांझी की लोकप्रियता, सक्रियता, और लगातार जीत के बावजूद उन्हें मंत्री ना बनाना पार्टी और समर्थकों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

यह भी पढ़े : https://livebihar.com/operation-bulldozer-muzaffarpur-atikraman-action/

Bihar Politics रालोमो में भी वही कहानी: 4 विधायक चुने गए, मंत्री बने गैर-विधायक दीपक प्रकाश

Bihar Politics:HAM-RLM दोनों पार्टियों के 9 विधायक जीते, पर मंत्री बने सिर्फ बेटे- क्या विरासत बचाने में उलझे दोनों पिता? 1

पत्नी को टिकट मिला, जनता ने जिताया, पर मंत्री बनाया बेटे को

उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी से 4 विधायक चुने गए।
पर मंत्री बनाया गया उनके बेटे दीपक प्रकाश को—जो न विधायक हैं और न चुनाव लड़े थे।

चौंकाने वाली बात है कि:
• सासाराम की जनता ने यह सोच कर स्नेहलता कुशवाहा को जिताया कि वे मंत्री बनेंगी।
• इन उम्मीदों ने भोजपुर–रोहतास की 14 सीटों पर कोइरी समुदाय को एनडीए के पक्ष में एकजुट कर दिया।
• लेकिन जब मंत्री पद बेटे को मिला, तो मतदाताओं में नाराजगी फैल गई।

Bihar Politics उपेन्द्र कुशवाहा का तर्क और उस पर सवाल

कुशवाहा ने तर्क दिया कि पिछले वर्षों में उनके नेता पार्टी छोड़ते गए, इसलिए उन्होंने किसी विधायक को मंत्री नहीं बनाया।
लेकिन बड़ा सवाल यह है—
क्या उनकी पत्नी स्नेहलता भी पार्टी छोड़ देतीं?
जवाब साफ है—नहीं।

इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुशवाहा का तर्क मजबूर करने वाला है।

HAM–RLM दीपक प्रकाश: एक इंजीनियर से जबरन ‘राजनीतिक उत्तराधिकारी’ बनाए गए?

दीपक प्रकाश एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जिन्होंने मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में पढ़ाई की और नौकरी भी की। बाद में वे अपने क्षेत्र में आईटी से जुड़ा काम कर रहे थे।

लेकिन अचानक—
छह महीने में विधान परिषद सदस्य बनाने की मजबूरी के साथ उन्हें मंत्री बना दिया गया।

यह स्पष्ट दिखता है कि:
• दीपक की राजनीति में एंट्री स्वाभाविक नहीं,
• बल्कि विरासत बचाने की कोशिश है।

Do Follow us. : https://www.facebook.com/share/1CWTaAHLaw/?mibextid=wwXIfr

HAM–RLM मांझी और कुशवाहा: क्या दोनों पिता ‘राजनीतिक पटरी’ बेटे के लिए बिछा रहे हैं?

दोनों ही मामलों में पैटर्न साफ दिखता है—
• जनता द्वारा चुने गए विधायक मंत्री नहीं।
• परिवार के बेटे मंत्री।
• विरासत को बेटे को सौंपने का संकेत।

चाहे दीपा मांझी हों या स्नेहलता कुशवाहा—दोनों योग्य, अनुभवी और विजेता उम्मीदवार थीं।
फिर भी मंत्री नहीं बनीं।
इससे सबसे बड़ा सवाल उठता है—

क्या दोनों नेता पितृसत्तात्मक मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं?

जहाँ बहू और बेटी का योगदान सम्मानित नहीं हो रहा, वहीं बेटे—चाहे चुनाव लड़ें या नहीं—मंत्री बन रहे हैं।

राजनीतिक संदेश क्या गया?

इस पूरे घटनाक्रम से जनता के बीच तीन बड़े संदेश गए—
1. विधायक चुनने का मतलब मंत्री चुना जाना नहीं रहा।
2. परिवारवाद एक बार फिर लोकतंत्र पर भारी पड़ा।
3. समुदाय और मतदाताओं की उम्मीदें झटका खा गईं।

यह घटना बिहार राजनीति में भविष्य में दूरगामी असर छोड़ सकती है।

Do Follow us. : https://www.youtube.com/results?search_query=livebihar

Share This Article