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पटनाः सरकार बनाने में विधायक की भूमिका होती है। विधायक ही सरकार बनाते हैं या बिगाड़ते हैं। लेकिन बिहार में कुछअलह ही खेला चल रहा है। बीजेपी को अपने विधायकों से ज्यादा विधान पार्षदों पर भरोसा है। दरअसल पूरा मामला सरकार गठन के बाद मंत्री पगद से जुड़ा हुआ है। भाजपा ने विधायकों की बजाय विधान पार्षदों को मंत्री बनाने पर फोकस किया है। नीतीश कैबिनेट विस्तार में भाजपा कोटे से कुल 12 मंत्री बनाए गए हैं। इनमें से पांच विधान पार्षद हैं। दल के कई ऐसे वरिष्ठ विधायक हैं जो मंत्री पद की रेस में थे, जब मंत्री बनाए जाने की बारी आई तो उसी समाज के एमएलसी को मंत्री बना दिया गया। नेतृत्व के इस निर्णय से दल के कई विधायक अंदर ही अंदर भारी गुस्से में है।

शुक्रवार को नीतीश कैबिनेट विस्तार में भाजपा ने विधान परिषद के पांच सदस्यों को मंत्री बना दिया. इनमें मंगल पांडेय, दिलीप जायसवाल, जनक राम, हरि सहनी,संतोष कुमार सिंह शामिल हैं. जबकि भाजपा कोटे से सात विधायक मंत्री बने हैं. पहले से ही सम्राट चौधरी जो विधान परिषद के सदस्य हैं वे डिप्टी सीएम के रूप में काम कर रहे हैं. इस तरह से भाजपा के 6 विधान पार्षद मंत्री बनाए गए हैं. पांच विधान पार्षदों में दो विधान पार्षदों को मंत्री बनाए जाने पर दल के विधायकों में भारी नाराजगी है. वरिष्ठ विधायकों को दरकिनार कर एमएलसी को मंत्री पद दिए जाने से उनमें काफी नाराजगी है. हालांकि वैसे विधायक नाराजगी का इजहार सार्वजनिक तौर पर नहीं कर रहे. लेकिन वे सभी अंदर ही अंदर सुलग रहे हैं. कई विधायकों से जब हमने बात की  बातचीत में विधायकों का दर्द साफ-साफ झलक रहा था. अपरोक्ष तौर पर कहा कि पार्टी को विधायकों पर भरोसा नहीं. विधान पार्षद ही सरकार बचा लेंगे. जब एनडीए सरकार बनाने और तत्कालीन विस अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को हटाने की बारी आई, तब नेतृत्व को विधायकों की याद आ रही थी. एक महीने बाद भी हमारी पार्टी विधायकों के महत्व को भूल गई है. एक ऐसे विधायक हैं जिन्होंने सदन में संख्या बल बढ़ाने में मदद की. कहा गया था कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन उनका नाम काट दिया गया।

जेडीयू कोटे से 9 वहीं भाजपा कोटे से 12 नेता मंत्री बने हैं. सबसे खास बात यह कि भाजपा के पांच विधान परिषद सदस्यों को कैबिनेट में जगह दी गई है. यह अपने आप में आश्चर्यजनक है. समाजिक समीकरण की बात करें तो भाजपा ने मंत्रिमंडल से यादव समाज को साफ कर दिया जबकि अपने कोर वोटर भूमिहारों को हाफ कर दिया है. 2020-21 में एनडीए सरकार बनने पर जहां यादव कोटे से रामसूरत राय को मंत्री बनाया गया था. वहीं, भूमिहार जाति से विधानसभा अध्यक्ष(विजय सिन्हा) के अलावे जीवेश कुमार मंत्री बने थे. इस बार सिर्फ एक ही मंत्री(डिप्टी सीएम) से भाजपा के कोर वोटरों(भूमिहार) को संतोष करना पड़ा है. बताया जाता है कि बीजेपी ने जहां नंदकिशोर यादव को विस अध्यक्ष बनाकर मंत्री का कोटा साफ कर दिया. वहीं विजय कुमार सिन्हा को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी देकर भूमिहारों की हिस्सेदारी खत्म कर दी।

अगर भाजपा की बात करें रेणु देवी- अति पिछड़ा, मंगल पांडेय- ब्राह्मण, नीरज कुमार सिंह-राजपूत, नीतीश मिश्रा- ब्राह्मण, नितिन नवीन- कायस्थ, दिलीप जायसवाल- वैश्य, हरि सहनी- सहनी(अति पिछड़ा), जनक राम- महादलित, कृष्णंदन पासवान- दलित, केदार प्रसाद गुप्ता-वैश्य, संतोष कुमार सिंह-राजपूत, सुरेन्द्र मेहता- अति पिछड़ा(धानुक) जाति से आते हैं. हरि सहनी-अति पिछड़ा(सहनी) मंत्री बनाए गए हैं. इस तरह से भाजपा ने ब्राह्मण जाति से 2, राजपूत से 2, दलित-महादलित से 2, वैश्य से 2, कायस्थ-1, अति पिछड़ा जाति से 3 मंत्री बने हैं।

भाजपा ने विधान परिषद के पांच सदस्यों को मंत्री बनाया है. इनमें मंगल पांडेय, दिलीप जायसवाल,जनक राम, हरि सहनी,संतोष कुमार सिंह शामिल हैं. जबकि भाजपा कोटे से सात विधायक मंत्री बने हैं. पहले से ही सम्राट चौधरी जो विधान परिषद के सदस्य हैं वे डिप्टी सीएम के रूप में काम कर रहे हैं. इस तरह से भाजपा के 6 विधान पार्षद मंत्री बनाए गए हैं।

जिन नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली है उनमें जेडीयू और भाजपा कोटे के नेताओं की जाति के बारे में बात करें तो अशोक चौधरी- दलित, लेशी सिंह-राजपूत, महेश्वर हजारी- पासवान, सुनील कुमार-दलित, शीला कुमारी- अति पिछड़ा, जयंत राज-कुशवाहा, रत्नेश सदा-दलित, मदन सहनी-सहनी, जमा खान- मुस्लिम हैं. इस तरह से जेडीयू कोटे से जिन 9 नेताओं को मंत्री बनाया गया है उनमें चार दलित-महादलित समाज से आते हैं।

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