AI Sovereignty in 2026: भारत के ‘AI प्रभाव शिखर सम्मेलन’ की तैयारी और दुनिया के सामने बढ़ती चुनौतियाँ

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दुनिया में तेज होती संप्रभु एआई की होड़ और भारत की भूमिका
Highlights
  • • भारत 2026 में ‘AI प्रभाव शिखर सम्मेलन’ आयोजित करेगा • पेरिस में हुए 2025 समिट में AI Sovereignty मुख्य मुद्दा रहा • बर्नार्ड स्टीगलर के अनुसार तकनीक “फार्माकोन” है • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बाद संप्रभु एआई की वैश्विक दौड़ तेज • भारत का AI Mission—38,000 GPU और 10,300 करोड़ का निवेश • दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड समेत कई देशों के मॉडल • बड़ी टेक कंपनियाँ संप्रभुता को “सेवा” के रूप में बेच रही हैं • मध्य-आय वाले देशों के सामने वित्तीय और सुरक्षा चुनौतियाँ

AI Sovereignty: 21वीं सदी की नई रणनीतिक शक्ति क्यों बन गई?

दुनिया भर में डिजिटल तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विस्तार जिस गति से हो रहा है, उससे यह साफ़ दिखता है कि आने वाले दशक का भविष्य एआई पर आधारित होगा। इसी बदलते परिदृश्य के बीच भारत ‘भारत एआई प्रभाव शिखर सम्मेलन 2026’ आयोजित करने जा रहा है। यह सम्मेलन सिर्फ तकनीकी कार्यक्रम नहीं, बल्कि एआई संप्रभुता की वैश्विक बहस का केंद्र बनने वाला है।

फरवरी 2025 में पेरिस में हुए AI Implementation Summit 2025 में भी AI Sovereignty ही मुख्य मुद्दा रहा था। आज निवेश, तकनीक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े निर्णय सीधे-सीधे इसी अवधारणा से प्रभावित हो रहे हैं।

दार्शनिक आधार: बर्नार्ड स्टीगलर का ‘फार्माकोन’ और साइकलोपॉलिटिक्स

फ्रांसीसी दार्शनिक बर्नार्ड स्टीगलर ने बहुत पहले ही चेतावनी दी थी कि तकनीक सिर्फ एक साधन नहीं, बल्कि ऐसी शक्ति है जो मनुष्य की सोच, व्यवहार और समाज को गहराई से प्रभावित कर सकती है।

उन्होंने ‘तकनीक’ को फार्माकोन कहा—
एक ऐसा ज़हर, जो इलाज भी है और खतरा भी।

स्टीगलर ने कहा था कि:
• या तो तकनीक हमें नियंत्रित करेगी,
• या हम तकनीक का जिम्मेदारी से उपयोग कर अपनी संप्रभुता वापस लेंगे।

यह विचार आज के एआई युग में बिल्कुल प्रासंगिक है।

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तकनीकी संप्रभुता की शुरुआत: इंटरनेट से लेकर एआई तक

AI Sovereignty in 2026: भारत के ‘AI प्रभाव शिखर सम्मेलन’ की तैयारी और दुनिया के सामने बढ़ती चुनौतियाँ 1

21वीं सदी के शुरुआती वर्षों में तकनीकी संप्रभुता पर चर्चाएँ बढ़ीं। सबसे पहले यह बहस चीन में उभरी, जहाँ इंटरनेट और डेटा पर नियंत्रण को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा गया।

बाद में कई देशों ने:
• डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर
• डेटा नियंत्रण
• घरेलू क्लाउड
• एआई विकास

को अपने राष्ट्रीय हितों का हिस्सा बना दिया।

2018 का अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर इस बहस का बड़ा कारण बना और एआई संप्रभुता की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को तेज़ किया।

AI Sovereignty: असल मायने क्या हैं?

सरल शब्दों में, एआई संप्रभुता का अर्थ है कि कोई देश अपनी एआई तकनीक, डेटा और इंफ्रास्ट्रक्चर को खुद नियंत्रित करे।

इसमें शामिल हैं—
• AI Models
• Data Storage
• Computing Infrastructure
• Algorithmic Control
• Legal-Ethical Framework

देश इस बात को लेकर सतर्क हैं कि उनकी एआई प्रणालियों पर किसी विदेशी कंपनी या देश का प्रभाव न हो, खासकर संवेदनशील क्षेत्रों में:
• सुरक्षा
• इंटेलिजेंस
• डिजिटल सेवाएँ
• वित्तीय सिस्टम

इसी वजह से Data Sovereignty और AI Sovereignty दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

भारत की भूमिका: 1.7 ट्रिलियन डॉलर की संभावना

विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट कहती है कि एआई 2035 तक भारत की अर्थव्यवस्था को 1.7 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ा सकता है।

भारत ने भी मार्च 2024 में India AI Mission लॉन्च किया।
इस प्रोजेक्ट में—
• 38,000 GPU तैनात किए जाएंगे,
• 10,300 करोड़ रुपये का निवेश,
• और लक्ष्य होगा “India में AI का निर्माण, India के लिए AI का उपयोग”।

भारत अब वैश्विक स्तर पर संप्रभु एआई का मुख्य खिलाड़ी बनकर उभर रहा है।

दुनिया के उदाहरण: किस देश ने क्या किया?

दुनिया के कई देश अपनी संप्रभु एआई तकनीक पर अरबों खर्च कर रहे हैं—

सिंगापुर का मल्टी-लैंग्वेज सरकारी मॉडल

11 भाषाओं में संवाद करने में सक्षम सरकारी फंड से बना मॉडल।

मलेशिया का ILMU Chat

स्थानीय उद्योग द्वारा बनाया गया एआई चैट मॉडल।

स्विट्जरलैंड का ‘Apertus’ मॉडल

दक्षिण कोरिया का 735 बिलियन डॉलर का निवेश

कोरियाई भाषा और डेटा आधारित एआई मॉडल विकसित करने की योजना।

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AI Sovereignty as a Service: क्या यह नया डिजिटल उपनिवेशवाद है?

एनवीडिया, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, अमेज़न जैसी कंपनियाँ दुनिया भर में ‘sovereign cloud’ और ‘AI factory’ जैसी सेवाएँ दे रही हैं।

कई विशेषज्ञ इसे आधुनिक “डिजिटल उपनिवेशवाद” भी कह रहे हैं, क्योंकि—
देशों को चिप, क्लाउड और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए इन्हीं कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है।

लंदन रिव्यू ऑफ़ बुक्स में 2025 में छपे लेख में इसे 19वीं सदी की Build-Operate-Transfer (BOT) औपनिवेशिक योजनाओं जैसा बताया गया।

मध्यम आय वाले देशों की मुश्किलें

मध्यम आय वर्ग के देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है—
• भारी वित्तीय निवेश
• डेटा सुरक्षा
• राष्ट्रीय सुरक्षा
• इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि इन देशों को मिलकर एक public multinational AI company बनानी चाहिए।

AI Sovereignty का भविष्य कैसा दिखता है? (H2)

एआई संप्रभुता केवल तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि आने वाले समय की राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा रणनीति का केंद्र बनने जा रही है।

भारत का आगामी AI प्रभाव शिखर सम्मेलन 2026 इस वैश्विक बहस में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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