बिहार चुनाव 2025: ‘राजनीतिक रिश्वतखोरी’ की नई मिसाल – जब रेवड़ियों से बदला वोटों का गणित! मुफ्त योजनाओं से वोट तक: राजनीति का बदलता चेहरा

आपकी आवाज़, आपके मुद्दे

4 Min Read
बिहार में मुफ्त योजनाओं और नकद लाभ से जुड़ी रेवड़ी संस्कृति की सच्चाई
Highlights
  • • बिहार चुनाव 2025 में “राजनीतिक रिश्वतखोरी” पर बहस तेज़ • एक करोड़ महिलाओं को ₹10,000 देने पर विवाद • विपक्ष ने ₹2500 प्रति माह देने का वादा किया • न्यायालय ने रेवड़ी संस्कृति पर चिंता जताई • राज्यों का बजट घाटा बढ़ रहा है • राजनीतिक दलों की “तोहफे वाली” परंपरा जारी • लोकतंत्र में नैतिकता की कमी स्पष्ट • जनता को जागरूक होने की ज़रूरत

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बजते ही सूबे की राजनीति में एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ है — ‘राजनीतिक रिश्वतखोरी 2025’।
रेवड़ी संस्कृति यानी फ्री योजनाओं का लालच अब सीधे नकद पैसे बांटने तक पहुंच गया है।
नीतीश सरकार द्वारा एक करोड़ महिलाओं के बैंक खाते में ₹10,000 जमा कराना, एक बड़ा उदाहरण माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह “महिलाओं का सशक्तीकरण” नहीं, बल्कि “सत्ता का सौदा” है।

रेवड़ी संस्कृति: जनकल्याण या चुनावी चाल?

राजनीति में रेवड़ी संस्कृति कोई नई नहीं है।
तमिलनाडु की जयललिता ने साड़ियों से शुरुआत की थी, करुणानिधि ने ₹2 किलो चावल देकर इस परंपरा को और बढ़ाया।
आज स्थिति यह है कि हर चुनाव से पहले जनकल्याण योजनाओं की बाढ़ आ जाती है — पर उद्देश्य सिर्फ वोट होते हैं, कल्याण नहीं।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह जनता के पैसे से जनता को रिश्वत देने जैसा नहीं है?

बिहार में यह परंपरा एक नए स्तर पर पहुंच गई है।
नीतीश सरकार के बाद विपक्ष ने भी ₹2500 प्रति माह महिलाओं को देने का वादा कर दिया।
दोनों ही पक्षों का मकसद समान — “वोट पाना किसी भी कीमत पर।”

बिहार चुनाव 2025: ‘राजनीतिक रिश्वतखोरी’ की नई मिसाल – जब रेवड़ियों से बदला वोटों का गणित! मुफ्त योजनाओं से वोट तक: राजनीति का बदलता चेहरा 1

जब ‘रेवड़ियां’ बन गईं राजनीतिक हथियार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘रेवड़ी संस्कृति’ को पहले आलोचना का मुद्दा बनाया,
मगर जल्द ही खुद भी ऐसी योजनाओं को अपनाने लगे — क्योंकि यह राजनीति का सबसे आसान हथियार बन चुका है।
आज हर पार्टी “जनता को लाभ” देने की बात करती है, पर असलियत में यह “राजनीतिक लाभ कमाने का सौदा” है।

यह परंपरा न केवल राजनीतिक नैतिकता को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ डालती है।
राज्यों का बजट घाटा अब खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है।

अदालत की चेतावनी और नेताओं की अनदेखी

उच्चतम न्यायालय ने भी इस विषय में हस्तक्षेप किया था —
उसने कहा था कि ऐसी घोषणाओं को कानूनी रूप से सीमित किया जाना चाहिए।
पर सच्चाई यह है कि नेताओं को नैतिकता से ज़्यादा राजनीतिक मुनाफा प्रिय है।
बिहार में चुनाव की तारीखों के ठीक पहले अधूरी मेट्रो लाइन का उद्घाटन,
आदर्श आचार संहिता का सीधा मजाक है।

यह भी पढ़े : https://livebihar.com/m-y-samikaran-siwani-rajad-muslim-representation/

कब रुकेगी यह ‘राजनीतिक रिश्वतखोरी’?

अब यह तय है कि जब तक राजनीति में “नैतिकता” नहीं लौटेगी,
“रेवड़ी संस्कृति” खत्म नहीं होगी।
राजनीति का तकाज़ा है कि इस “राजनीतिक रिश्वतखोरी 2025” का अंत हो,
क्योंकि यह लोकतंत्र को खोखला कर रही है।
जनता को जागरूक होना होगा —
क्योंकि असली शक्ति वोटर के पास है, और अगर वही जागे तो रिश्वत की राजनीति खुद ब खुद खत्म हो जाएगी।

Do Follow us. : https://www.facebook.com/share/1CWTaAHLaw/?mibextid=wwXIfr

निष्कर्ष

बिहार चुनाव 2025 के इस दौर में “मुफ्त योजनाएं” एक बार फिर चर्चा में हैं।
यह लेख सिर्फ सवाल उठाता है — क्या जनकल्याण के नाम पर राजनीतिक रिश्वतखोरी को स्वीकार किया जा सकता है?
अगर नहीं, तो अब वक्त है नैतिक राजनीति लौटाने का।

Do Follow us. : https://www.youtube.com/results?search_query=livebihar

Share This Article