बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीतिक नारों और वादों के साथ एक और चीज़ तेजी से चर्चा में है — स्थानीय भावनाओं का इस्तेमाल। इस बार चुनावी रणनीति केवल वोट बैंक तक सीमित नहीं, बल्कि संवेदनाओं और सांस्कृतिक जुड़ाव की जंग बन चुकी है। मिथिलांचल से लेकर भोजपुर तक, हर इलाका अपने प्रतीकों के जरिए सियासत का मैदान सजाए बैठा है।
पाग, मखाना, गमछा, लिट्टी-चोखा जैसे प्रतीक अब वोटरों को लुभाने के सशक्त राजनीतिक हथियार बन चुके हैं। मगर इन प्रतीकों का इस्तेमाल जितना संवेदनशील है, उतना ही जोखिम भरा भी। क्योंकि यहां एक गलती, “सम्मान से अपमान” की दूरी तय कर देती है — और उसका राजनीतिक मूल्य बड़ा महंगा पड़ सकता है।
मिथिलांचल का गर्व — पाग, मखाना और माछ से मोदी ने साधा भावनात्मक रिश्ता

समस्तीपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के दौरान मिथिलांचल की परंपरा का शानदार प्रदर्शन हुआ।
पीएम मोदी का स्वागत पाग, मखाने की माला, सूर्य की मूर्ति और मिथिला पेंटिंग से किया गया — यह सम्मान के प्रतीक हैं जो मिथिला की पहचान को दर्शाते हैं।
मोदी ने अपने भाषण में इन सभी प्रतीकों का जिक्र करते हुए मिथिलांचल की जनता का आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि ये प्रतीक सिर्फ वस्तुएं नहीं, बल्कि “मिथिला की आत्मा” हैं।
इस भावनात्मक कनेक्शन के जरिए मोदी ने खुद को क्षेत्रीय संस्कृति से जोड़ते हुए अपने राजनीतिक दायरे का विस्तार किया।
इसके बाद जब प्रधानमंत्री ने मखाना को जीआई टैग मिलने का जिक्र किया, तो यह सम्मान मिथिला की सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ बीजेपी की राजनीतिक उपलब्धि के रूप में भी देखा गया।
पीएम मोदी ने कहा कि “भारत के मखाने को अब वैश्विक पहचान मिली है।” यह बयान सीधे तौर पर स्थानीय गौरव से जुड़ा भावनात्मक कार्ड था, जिसने मिथिलांचल में एनडीए के प्रति सकारात्मक माहौल बनाया।
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मिथिलांचल में उल्टा पड़ा भावनात्मक खेल — मैथिली ठाकुर विवाद ने बढ़ाई नाराज़गी
सांस्कृतिक प्रतीकों का यह खेल कई बार नेताओं के लिए उल्टा भी पड़ जाता है।
अलीनगर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी प्रत्याशी और लोकगायिका मैथिली ठाकुर के साथ कुछ ऐसा ही हुआ।
उनके समर्थन में आयोजित एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश की बलिया से बीजेपी विधायक केतकी सिंह ने कहा —
“मिथिला की पहचान और सम्मान ये पाग नहीं, बल्कि मैथिली ठाकुर हैं।”
यह कहते हुए विधायक ने पाग को टेबल पर फेंक दिया।
यह दृश्य वहीं मौजूद स्थानीय कार्यकर्ताओं और लोगों को गहराई से आहत कर गया।
मिथिला में पाग को सम्मान, आदर और गौरव का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में यह घटना स्थानीय भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली बन गई।
इसके बाद विवाद यहीं नहीं थमा। एक वायरल वीडियो में मैथिली ठाकुर को पाग को कटोरे की तरह उपयोग करते हुए मखाना खाते हुए दिखाया गया।
यह वीडियो वायरल होते ही मिथिला प्रेमियों और स्थानीय समुदाय में आक्रोश फैल गया।
लोगों ने इसे मिथिला संस्कृति का अपमान बताया, और यह मामला सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंचों तक गूंज उठा।
यह घटना साबित करती है कि भावनात्मक प्रतीकों का इस्तेमाल जितना शक्तिशाली होता है, उतना ही नाजुक भी — एक छोटी सी चूक, राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकती है।
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चुनावों में सांस्कृतिक जुड़ाव का ट्रेंड — ‘सम्मान’ बनाम ‘सियासत’
बिहार के चुनावों में यह कोई पहली बार नहीं है जब स्थानीय भावनाओं को साधने की कोशिश की जा रही हो।
हर इलाका अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ राजनीति को जोड़ता है।
• मिथिलांचल में पाग और मखाना सम्मान का प्रतीक हैं।
• भोजपुर में गमछा और लिट्टी-चोखा अपनेपन और संस्कृति के प्रतीक हैं।
• सीमांचल में चादरपोशी एकता और सद्भाव का भाव रखती है।
राजनीतिक दल इन प्रतीकों के जरिए “दिल से जुड़ने की राजनीति” करते हैं। यह न तो आचार संहिता का उल्लंघन है, न ही किसी नीति का विरोध, लेकिन यह एक मनोवैज्ञानिक रणनीति है — वोटर को यह महसूस कराना कि “हम तुम्हारे जैसे हैं, तुम्हारी संस्कृति हमारे लिए सम्मान की बात है।”
हालांकि, यही भावनात्मक टच कई बार नेताओं को फंसाता भी है। जब भावनाओं के प्रतीक को गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, तो यह जनता के सम्मान से जुड़ा मामला बन जाता है — और जनता इसे कभी भूलती नहीं।
लिट्टी-चोखा और गमछा की राजनीति — भोजपुरिया पहचान का नया चेहरा
भोजपुरिया इलाके में गमछा और लिट्टी-चोखा सिर्फ पहनावे या भोजन की चीजें नहीं, बल्कि पहचान और स्वाभिमान के प्रतीक हैं।
नेता जब किसी मंच से गमछा ओढ़ते हैं या लिट्टी-चोखा खाते हैं, तो वह जनता के दिलों में एक भावनात्मक पुल बनाते हैं।
यह प्रतीक बताते हैं कि चुनावी राजनीति अब भाषणों से आगे बढ़कर संस्कृति और संवेदना के मैदान में उतर चुकी है।
यहां कोई भी उम्मीदवार सिर्फ एजेंडा नहीं बेचता — वह संवेदनाओं का भरोसा जीतने की कोशिश करता है।
2025 का चुनाव ‘संवेदना बनाम रणनीति’ की जंग
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में यह साफ दिख रहा है कि स्थानीय संस्कृति अब राजनीति की धुरी बन चुकी है।
जहां प्रधानमंत्री मोदी ने पाग और मखाना के जरिए मिथिलांचल से भावनात्मक जुड़ाव बनाया, वहीं बीजेपी की ही एक विधायक की चूक ने वही प्रतीक विवाद का कारण बना दिया।
यह चुनाव अब केवल मुद्दों की लड़ाई नहीं, बल्कि सम्मान और संवेदना की जंग है।
राजनीतिक दल समझ चुके हैं कि बिहार की जनता को प्रभावित करने के लिए दिल और संस्कृति दोनों को छूना जरूरी है।
और यही कारण है कि इस बार की सियासी रणनीति में पाग, मखाना, गमछा और लिट्टी-चोखा जैसे प्रतीक मुख्य भूमिका में हैं।
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