Bihar Elections 2025: दलित चेहरे की सियासी ‘करवट’ से गरमाई राजनीति, तेजस्वी ने दिया ‘पावरफुल’ संदेश

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तेजस्वी यादव के साथ राजद में शामिल होते हुए ललन कुमार, बिहार चुनाव 2025 से पहले बड़ा सियासी बदलाव।
Highlights
  • • भाजपा के दलित विधायक ललन कुमार ने थामा राजद का दामन। • तेजस्वी यादव ने कहा— “मिलकर बनाएंगे नया बिहार।” • पीरपैंती सीट से उम्मीदवार चयन पर नाराज थे ललन कुमार। • भाजपा में दलित नेतृत्व पर उठे सवाल। • भागलपुर और सीमांचल के समीकरण बदलने की संभावना।

बिहार चुनाव 2025: बीजेपी के दलित चेहरे ने थामा तेजस्वी का हाथ, सियासत में मची हलचल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासी माहौल दिन-ब-दिन दिलचस्प होता जा रहा है। इस बार बड़ी राजनीतिक हलचल उस वक्त देखने को मिली जब भाजपा के दलित चेहरे और भागलपुर जिले की पीरपैंती (सुरक्षित) सीट से विधायक रहे ललन कुमार ने बुधवार को राजद का दामन थाम लिया।
यह कदम न सिर्फ भाजपा के लिए झटका साबित हुआ बल्कि तेजस्वी यादव के लिए भी एक “पावरफुल पॉलिटिकल मोमेंट” बन गया।

ललन कुमार ने छोड़ी भाजपा, थामा राजद का हाथ

तेजस्वी यादव की मौजूदगी में आयोजित एक कार्यक्रम में ललन कुमार ने राजद की सदस्यता ग्रहण की, जिसके बाद उन्होंने पार्टी सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से भी मुलाकात की।
सोशल मीडिया पर साझा की गई तस्वीरों में ललन कुमार तेजस्वी और राबड़ी देवी के साथ मुस्कुराते नजर आए।

इन तस्वीरों के साथ उन्होंने लिखा —

राष्ट्रीय जनता दल का कारवां बढ़ता रहे। आज से मैं भी हुआ शामिल। तेजस्वी मय बिहार बनाना है, हम सबने मिलकर ठाना है। तेजस्वी ही वर्तमान हैं, तेजस्वी ही भविष्य! जय भीम!!”

इस पोस्ट ने सियासी गलियारों में आग लगा दी, क्योंकि भाजपा से इस्तीफा देने के बाद उनका यह बयान साफ संकेत दे रहा था कि अब वे दलित राजनीति में तेजस्वी यादव के साथ नई भूमिका निभाने जा रहे हैं।

बीजेपी के टिकट वितरण से उपजा असंतोष

जानकारी के मुताबिक, इस बार भाजपा ने पीरपैंती (सुरक्षित) सीट से मुरारी पासवान को उम्मीदवार बनाया है। यही निर्णय ललन कुमार की नाराजगी का मुख्य कारण बताया जा रहा है।
पार्टी के अंदर पिछले कुछ महीनों से ही उनके तेवरों में “नाराजगी और असंतोष” झलक रहा था, और अंततः उन्होंने भाजपा से इस्तीफा देकर नई सियासी राह चुन ली।

अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा —

“मेरी भाजपा के साथ राजनीतिक यात्रा अब समाप्त हो गई है। वरिष्ठ नेताओं के निर्देशों का पालन करते हुए मैंने पार्टी के लिए जो कुछ किया, वह कृतज्ञता के भाव से किया। लेकिन अब लगता है कि भाजपा को मुखर दलित नेतृत्व की आवश्यकता नहीं रही।”

उनका यह बयान भाजपा के अंदर दलित नेतृत्व की स्थिति पर तीखा राजनीतिक तंज माना जा रहा है।

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तेजस्वी यादव का ‘सकारात्मक’ स्वागत संदेश

राजद में शामिल करते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा—

“हमारा दरवाज़ा उन सभी के लिए खुला है जो बिहार को एक नई दिशा देना चाहते हैं। ललन कुमार जैसे युवा और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध नेताओं का स्वागत है। मिलकर हम नया बिहार बनाएंगे।”

तेजस्वी का यह बयान स्पष्ट संकेत देता है कि आगामी Bihar Elections 2025 में राजद युवाओं, दलितों और वंचित तबकों के प्रतिनिधियों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है।
राजद के लिए यह कदम एक “पॉजिटिव स्ट्रेंथ” के रूप में देखा जा रहा है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां दलित मतदाता चुनावी समीकरण तय करते हैं।

भागलपुर से सीमांचल तक बदलेगा समीकरण

ललन कुमार की राजनीतिक हैसियत भागलपुर और सीमांचल क्षेत्र में मजबूत मानी जाती है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में पीरपैंती सीट पर भाजपा को बढ़त मिली थी, लेकिन इस बार समीकरण बदलते दिख रहे हैं।
राजद को उम्मीद है कि ललन कुमार के जुड़ने से दलित और पिछड़े वर्ग के वोटरों में बड़ा संदेश जाएगा।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह कदम भाजपा के दलित वोट बैंक पर असर डाल सकता है।
राजद के भीतर यह चर्चा तेज है कि तेजस्वी अब युवाओं और दलित वर्ग के नेताओं के जरिए “नया बिहार – न्यायपूर्ण बिहार” की नई कहानी लिखना चाहते हैं।

ललन कुमार का नया संदेश: “तेजस्वी ही भविष्य हैं”

अपने संदेश में ललन कुमार ने “तेजस्वी ही वर्तमान हैं, तेजस्वी ही भविष्य” कहकर यह संकेत दिया कि वे न केवल राजद में शामिल हुए हैं बल्कि तेजस्वी यादव को बिहार की नई राजनीति का चेहरा मानते हैं।
उनका यह बयान राजद समर्थकों के बीच भावनात्मक जोश और सकारात्मक ऊर्जा भरने वाला साबित हुआ।

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दलित राजनीति में नई करवट से गरमाई बिहार की सियासत

बिहार चुनाव 2025 से पहले यह दल-बदल भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रहा है।
ललन कुमार का भाजपा छोड़कर राजद में शामिल होना न केवल दलित नेतृत्व के प्रश्न को फिर से चर्चा में ले आया है, बल्कि तेजस्वी यादव की राजनीतिक रणनीति की मजबूती को भी रेखांकित करता है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि इस सियासी करवट का असर बिहार के मतदाताओं पर कितना पड़ता है और क्या यह राजद के लिए “वोट पावर बूस्टर” साबित होता है या नहीं।

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