आओ अब लौट चलें फिर साइकिल के पासविश्व साईकिल दिवस पर विशेष

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गणेश दत्त पाठक (वरिष्ठ पत्रकार )
साइकिल हमारे देश में सिर्फ परिवहन का साधन नहीं अपितु भावनात्मक अहसास का एक जरिया भी रहा है। अभी कुछ दिनों पहले ही एक दिल छू लेने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें एक पिता अपनी बेटी के लिए साइकिल लाता है और इस खुशी को देख हर कोई भावुक हो जाता है। अभी हाल के दिनों में मोटरसाइकिल के चलन ज्यादा बढ़ जाने से साइकिल का महत्व घटा है। लेकिन प्रदूषण, पर्यावरण अवनयन के दौर में तथा बदलती जीवन शैली के कारण बढ़ते स्वास्थ्य संकट के दौर में साइकिल का महत्व फिर से बढ़ता दिखाई दे रहा है। यूरोपीय देश नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में सिर्फ साइकिल चलाने की ही अनुमति है। पहले स्कूल कॉलेज साइकिल से ही जाना होता था। साइकिल के संग दोस्ती की दुनिया का एक निराला अंदाज रहा करता था। घर परिवारों में बच्चों की पहली फरमाइश साइकिल ही रहा करती थी और साइकिल चलाना सीखना शायद बचपन का सबसे बड़ा टास्क।
अगर इतिहास में जाए तो जर्मन आविष्कारक कार्ल वान ड्रेस ने 1817 में पहली दो पहिया साइकिल बनाई, जिसे ड्रेसिन या डन्डी हॉर्स कहा जाता था। 1820 के दशक में लोहे की साइकिल बनाई जाती थी जो बेहद भारी और असुविधाजनक हुआ करती थी। 1860 के दशक में पैडल की शुरुआत हुई फिर क्रैंक के विकास ने साइकिल को और भी सुविधाजनक बना दिया। 1880 के दशक में चैन ड्रिवन साइकिल आई जो तेज चलने लगी। 1888 में जॉन बायड डनलप ने न्यूमेटिक टायर का अविष्कार किया। जिससे साइकिल चलाना अधिक आरामदायक हो गया। 1900 से आधुनिक साइकिल अस्तित्व में आ गई।
पर्यावरण और सेहत संबंधी कारणों से साइकिल का महत्व फिर से बढ़ता देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2018 में विश्व साइकिल दिवस की घोषणा की जो हर साल 3 जून को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य परिवहन के सामान्य, सस्ते, विश्वसनीय, स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल परिवहन साधन के रूप में साइकिल को बढ़ावा देना है। साइकिल चलाना एक स्वस्थ और आनंददायक गतिविधि है, जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की क्षमता से लैस है।
साइकिल का जमाना यदि लौटता दिखाई दे रहा है तो उसके लिए कई तथ्य जिम्मेवार है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया में प्रतिवर्ष 50 लाख से अधिक लोगों की जान वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण जाती है, जिनमें से अधिकांश मौतें शहरी क्षेत्रों में होती हैं, जहां मोटर वाहन जनित प्रदूषण प्रमुख कारण है। यूरोपियन साइकिल फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार, यदि एक व्यक्ति प्रतिदिन 5 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करता है तो वह प्रतिवर्ष औसतन 300 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन से बच सकता है। इसका सीधा असर वैश्विक तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने में होता है।
साइकिल चलाने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। हृदय और फेफड़े मजबूत होते हैं। वजन प्रबंधन में सहायता मिलती है। मांसपेशियां भी मजबूत होती है। देखा जा रहा की आज के कठिन प्रतियोगिता के दौर में तनाव, अवसाद, चिंता जैसी मानसिक व्याधियां आम बात हो गई है। मनोचिकित्सक डॉक्टर पंकज कुमार गुप्ता बताते हैं कि साइकिल चलाने से एंडोर्फिन का स्तर बढ़ता है जिससे तनाव और चिंता को कम करने में मदद मिलता है। नियमित तौर पर साइकिल चलाने से नींद की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। वर्ष 2023 में यूरोप में किए गए एक सर्वे के अनुसार, उन शहरों में जहां अधिक लोग साइकिल चलाते हैं, वहां मानसिक अवसाद के मामलों की संख्या 23 प्रतिशत कम पाई गई। नियमित तौर पर साइकिल चलाने से आरोग्य बेहतर होने से आत्मविश्वास में भी वृद्धि होता है। खर्चे के हिसाब से भी साईकिल चलाना बेहद किफायती है। साइकिल चलाने से सामाजिक संबंध बेहतर होते हैं । साथ ही साइकिल चलाने से आप स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की भावना को आप संजीदगी से महसूस कर सकते हैं।
हां ये जरूरी है कि साइकिल चलाने के लिए सुरक्षित और कम यातायात वाले क्षेत्रों का चयन अनिवार्य तथ्य है। साथ ही साइकिल चलाते समय सुरक्षित रहने हेतु यातायात नियमों का पालन अनिवार्य तथ्य होता है। सरकारी स्तर पर सड़क, पुल निर्माण के समय सुरक्षित और सुविधाजनक साइकिल मार्ग प्रदान किया जाना चाहिए। साइकिल पार्किंग की व्यवस्थाओं को सहेजा जाना चाहिए। साइकिल के स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी फायदों को बताकर लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। यह अच्छी बात है कि कई देशों में साइकिल पथों का निर्माण किया जा रहा है। कई देश शहरी इलाकों में साइकिलिंग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय नीतियां और परियोजनाएं शुरू कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने ‘नेशनल नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट पॉलिसी’ को मंजूरी दी है। फ्रांस ने वर्ष 2025 तक 2500 किलोमीटर नई साइकिल लेन बनाने की योजना बनाई है। यूरोपीय संघ के ‘ग्रीन डील’ में भी साइकिल परिवहन को मुख्य रूप से स्थान मिला है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट में सुझाया गया है कि यदि विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं (जी20) अपने कुल परिवहन बजट का मात्र 10 प्रतिशत भी साइकिल अवसंरचना पर खर्च करें तो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वर्ष 2030 तक 7 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है।
अपने देश में भी दिल्ली, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, बंगलुरू, चंडीगढ़, लखनऊ, मेरठ आदि शहरों में साइकिल लेन का निर्माण किया गया है। बिहार जैसे कई राज्य सरकारें छात्र छात्राओं को बड़ी संख्या में साइकिल वितरण कर रही है। वर्ष 2024 के आंकड़ों के अनुसार भारत के केवल 12 प्रतिशत शहरी घरों में नियमित रूप से साइकिल का उपयोग होता है लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद यह चलन बदला। लॉकडाउन के समय जब सार्वजनिक परिवहन बंद था, तब लोगों ने साइकिल की ओर लौटना शुरू किया और एक नई जागरूकता उत्पन्न हुई। कई राज्यों की सरकारों ने भी ‘ग्रीन ट्रांसपोर्ट’ की दिशा में साइकिल लेन बनाने और साइकिल शेयरिंग सिस्टम को

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