मुजफ्फरपुर में स्कूल का नाम उर्दू में लिखा देखकर पोती ‘कालिख’..ग्रामीणों में भारी आक्रोश

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मुजफ्फरपुर जिले के राजखंड उत्तरी पंचायत के बसतपुर गांव के राजकीय मध्य विद्यालय पर सांप्रदायिक लोगों की नजर सी लग गई है। भवन पर उर्दू लिपि में लिखे स्कूल के नाम को कुछ असामाजिक तत्वों ने कालिख पोतकर मिटाने की कोशिश की। जब इस शर्मनाक घटना पर ग्रामीणों की नजर पड़ी तो लोग आक्रोशित हो गए। स्थानीय लोगों ने सामुदायिक सौहार्द पर हमला बताते हुए प्रशासन से दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

बता दें कि बिहार के सरकारी स्कूलों में हिंदी के साथ-साथ उर्दू लिपि में नाम लिखना कोई नई बात नहीं। यह प्रथा न केवल उर्दू भाषी समुदाय की भावनाओं का सम्मान करती है, बल्कि उर्दू बिहार की दूसरी सरकारी भाषा भी है। लेकिन बसतपुर के राजकीय मध्य विद्यालय में उर्दू लिपि में लिखे नाम को कालिख से पोत देना सामान्य शरारत नहीं, बल्कि सामाजिक एकता को खंडित करने की कोशिश है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की हरकत हुई हो, लेकिन इस बार इसका समय संदिग्ध है। बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और सियासी दल वोटबैंक की खातिर हर तरह की चाल चल रहे हैं। ऐसे में, उर्दू लिपि को निशाना बनाना साफ तौर पर माहौल बिगाड़ने की साजिश लगती है।

घटना ने बसतपुर गांव में आक्रोश की लहर पैदा कर दी है। ग्रामीणों ने इसे न केवल स्कूल की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की हरकत, बल्कि सामुदायिक सौहार्द पर हमला बताया। स्थानीय निवासी और छात्र राजद के जिला उपाध्यक्ष आकाश यादव ने इस घटना को सियासी रंग देते हुए कहा, “चुनावी समय में कुछ लोग माहौल खराब करने की साजिश रच रहे हैं। उर्दू लिपि पर कालिख पोतना सिर्फ एक दीवार को गंदा करना नहीं, बल्कि बिहार की गंगा-जमुनी तहजीब पर हमला है। इस साजिश को बेनकाब करना जरूरी है।” 

आकाश यादव का बयान सही हो सकता है, लेकिन यह भी सच है कि बिहार की सियासत में हर घटना को चुनावी चश्मे से देखने की परंपरा रही है। राजद का यह बयान विपक्षी दलों को निशाना बनाने की कोशिश हो सकता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस घटना को सिर्फ सियासत तक सीमित रखना चाहिए? ग्रामीणों की मांग साफ है—दोषियों को पकड़ा जाए, और ऐसी हरकतों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।

विद्यालय के प्रधानाचार्य मगरूर आलम ने इस घटना को गंभीरता से लिया है। उन्होंने बताया कि बुधवार, 14 मई 2025 को ग्रामीणों की एक बैठक बुलाई गई है, जिसमें इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा होगी। इसके बाद, लिखित शिकायत स्थानीय थाने में दर्ज की जाएगी। मगरूर आलम ने कहा, “यह सिर्फ स्कूल की दीवार का सवाल नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक ताने-बाने पर हमला है। हम प्रशासन से पूरी जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की उम्मीद करते हैं।

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